नई दिल्‍ली: शिया मुसलमानों (Shia Muslim) के लिए मुहर्रम का महीना (Muharram Month) मातम का महीना होता है. साथ ही यह महीना इस्‍लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है. इसी महीने में कर्बला में जंग हुई थी, जिसमें पैगंबर मोहम्‍मद के नाती इमाम हुसैन (Imam Hussain) और उनके 72 साथियों की मौत हो गई थी. तब से ही इस महीने को मातम के महीने के तौर पर मनाया जाता है.


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यह जंग करीब 1400 साल पहले हुई थी. यह जंग एक मुस्लिम शासक की खलीफा माने जाने की लालसा और उसके द्वारा इमाम हुसैन पर किए गए बेरहम अत्‍याचार के कारण हुई थी. हुसैन की शहादत मुहर्रम महीने की 10 तारीख को हुई थी जो इस साल 20 अगस्‍त को पड़ रही है. इसी दिन मुहर्रम मनाया जाता है. 


मुस्लिमों पर राज करना चाहता था यजीद 


माना जाता है कि मदीना से इस्लाम (Islam) की शुरुआत हुई. यहीं से कुछ दूरी पर मुआविया नाम का एक शासक राज करता था. जिसके बाद उसका बेटा यजीद गद्दी पर बैठा. यजीद अत्‍याचारी था और इस्‍लाम को अपने मुताबिक चलाना चाहता था. जबकि आवाम ऐसा नहीं चाहती थी. इस पर यजीद ने सोचा कि यदि पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन उसको अपना खलीफा मान लें तो बाकी इस्‍लाम समर्थक भी उसे स्‍वीकार लेंगे, लेकिन हुसैन ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. उन्‍होंने तय किया कि वे मदीना छोड़ कर चले जाएंगे. 


मदीना से निकलकर पहुंचे कर्बला 


मुहर्रम महीने की 2 तारीख को हुसैन कर्बला पहुंचे. उनके साथ औरतों, छोटे बच्चों समेत कुल 72 लोग थे. तभी यजीद ने इमाम हुसैन के काफिले को घेर लिया और खुद को खलीफा मानने के लिए उन्हें मजबूर किया. हुसैन तब भी अपनी बात पर डटे रहे. यजीद के सिपाहियों से घिरे हुसैन के काफिले के पास खाने का सामान खत्‍म हो गया. यजीद ने उनका पानी भी बंद करा दिया. काफिला 3 दिन तक भूखा-प्‍यासा रहा, तब भी हुसैन ने जंग लड़ी और ना यजीद को खलीफा माना. मुहर्रम की 10 तारीख को यजीद की फौज ने हुसैन और उनके काफिले पर हमला कर दिया. जाहिर है लाव-लश्‍कर वाले यजीद ने हुसैन और उनके पूरे काफिले को एक झटके में ही कत्‍ल कर दिया. 


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हुसैन का बेटा भी मारा गया 


इस जंग में हुसैन का 6 महीने का बेटा अली असगर, 18 साल के अली अकबर और 7 साल के उनके भतीजे कासिम (हसन के बेटे) भी शहीद हो गए थे. इसीलिए मुहर्रम की 10 तारीख सबसे अहम होती है. उनकी कुर्बानी को याद करते हुए मुहर्रम के महीने में मातम मनाया जाता है. इस दौरान शिया मुसलमान ना तो कोई खुशी मनाते हैं और ना ही चमक-धमक वाले कपड़े पहनते हैं. वहीं सुन्नी मुस्लिम इस महीने में रोजे रखते हैं, ताजिया निकालते हैं. 


(नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. Zee News इनकी पुष्टि नहीं करता है.)