Bhadra Kaal: भद्रा मुहूर्त में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है क्योंकि इसमें कोई भी कार्य जोड़ने वाला नहीं हो सकता. भद्रा का अर्थ ही है भद्रा कर देना यानि बिगाड़ देना. विवाह, मुंडन, ग्रह निर्माण का आरंभ, ग्रह प्रवेश जैसे कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. यहां तक कि भद्रा काल में न तो भाई बहन के प्यार का प्रतीक रक्षाबंधन का पर्व तक नहीं मनाया जाता है. युद्ध के समय, बीमारी की अवस्था में डॉक्टर को बुलाने, नदी में तैरने, शत्रुओं से छुटकारा पाने, महिलाओं की सेवा करने, सरकारी वाहन की सवारी करने में भद्रा का विचार नहीं करना चाहिए. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

 


कौन है भद्रा


पुराणों के अनुसार भद्रा को सूर्य की पुत्री और शनि की बहन कहा गया है. भद्रा सूर्य की दूसरी पत्नी छाया से उत्पन्न पुत्री हैं.  


 


पृथ्वी लोक की भद्रा


मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार कुंभ और मीन तथा कर्क और सिंह राशि में जब चंद्रमा हो तब भद्रा मनुष्य लोक में निवास करती है इसलिए उस समय मनुष्य लोक में इसका अधिक अशुभ फल प्राप्त होता है. ऐसे मौके पर किए गए कार्य में सफलता की संभावनाएं बहुत ही कम रहती हैं इसलिए जब भद्रा पृथ्वी लोक में हो तो कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है. 


 


स्वर्ग लोक की भद्रा


मेष, वृष, मिथुन और वृश्चिक राशियों में चंद्रमा होने पर भद्रा स्वर्ग में रहती है, ऐसी स्थिति में पृथ्वी लोक में भद्रा का खराब फल नहीं मिलता है. भद्रा यदि स्वर्ग लोक में है तो किसी भी तरह के जरूरी कार्यों को किया जा सकता है. ऐसे में कार्यों को संपन्न करने में खराब की आशंका बिल्कुल भी नहीं रहती है. 



पाताल लोक की भद्रा


कन्या, तुला, धनु और मकर राशियों में चंद्रमा होने की स्थिति में भद्रा पाताल लोक में होता है. इस तरह भद्रा के स्वर्ग अथवा पाताल लोक में रहने की स्थिति में यदि कोई आवश्यक कार्य है और उस दिन भद्रा के कारण बाधा पहुंच रही है तो आवश्यक कार्य को किया जा सकता है, वैसे आवश्यक होने पर ही भद्रा में कोई कार्य करना चाहिए वर्ना भद्रा के हटने के बाद ही किया जाना चाहिए.