Nag Panchami Katha: नागपंचमी के पर्व को हिंदू धर्म में बड़े त्योहार के रूप में देखा जाता है. सावन मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाए जाने वाले इस त्योहार में लोग सर्पों से अपनी रक्षा के लिए नाग देवता की पूजा करते हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नाग को पंचमी तिथि का स्वामी बताया गया है, इसलिए इस दिन नागों की पूजा का विशेष महत्व होता है. सपेरे बीन बजा कर लोगों को सर्पों के दर्शन करा पूजन कराते हैं. इस दिन भूमि नहीं खोदनी चाहिए और कालसर्प से पीड़ित लोग इसी दिन दोष निवारण के लिए पूजन कराते हैं. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और कथा पढ़ने से भी व्यक्ति को सर्प दोष से मुक्ति मिलती है. इस बार यह पर्व 21 अगस्त सोमवार को है. 


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इस तरह किया जाता है पूजन


पंचमी के दिन चांदी, सोने, लकड़ी या फिर मिट्टी की कलम से हल्दी और चंदन की स्याही अथवा कोयले के दूध में घिसकर रुई की फुरेरी से पांच या सात फन वाला सांप बना कर पूजन करना चाहिए. उन्हें पंचामृत, खील, नैवेद्य, धूप दीप, पुष्प आदि अर्पित करें. नागदेवता से अपनी और परिवार की रक्षा की प्रार्थना करें. खीर बना कर ब्राह्मण को दक्षिणा के साथ दें और बाद में स्वयं भी ग्रहण करें.  


यह है कथा-


प्राचीन काल में एक ब्राह्मण की सात बहुएं थी. सावन लगते ही छह बहुओं के भाई उन्हें मायके ले गए. इस पर सातवीं दुखी हो गई कि उसका कोई भाई नहीं है. उसने शेषनाग को भाई के रूप में याद किया तो वह बूढ़े ब्राह्मण के रूप में पहुंचे और अपने साथ लिवा लाए. कुछ दूर चलने के बाद उन्होंने अपना असली रूप धारण किया और पाताल लोक में ले गए जहां पर रहने लगी. इसी बीच बहुत से नाग बच्चों ने जन्म लिया जो उधर विचरण करते थे. इस पर शेषनाग रानी ने बहू को एक पीतल का दीपक दिया और कहा कि इसकी रोशनी में तुम सब कुछ देख सकोगी. हाथ में दीपक लेकर चलते हुए एक दिन वह नीचे गिर गया और कुछ नाग बच्चों की पूंछ कट गई. इधर सावन खत्म होते ही शेषनाग ने उसे वापस ससुराल भेज दिया. अगले वर्ष सावन आने पर छह बहुएं फिर मायके चली गईं तो सातवीं पंचमी के दिन दीवार पर नाग परिवार को अंकित कर विधिविधान से पूजा करने लगी. इधर नाग बच्चों को बड़े होने पर जानकारी मिली कि किस कारण उनकी पूंछ कट गई. क्रोधित नाग बालक बदला लेने के लिए उसके घर पहुंचे लेकिन जब देखा कि यहां तो उन्हीं की पूजा हो रही है तो वह शांत हो प्रसन्न हो गए. उन्होंने तब दूध पिया और नागकुल से निर्भय रहने का आशीर्वाद दिया.