प्रयागराज, (अवधेश मिश्र): कुंभ भारत की पहचान है, कुंभ भारतीय संस्कृति ही नहीं विश्व की धरोहर है और कुंभ एक ऐसा रहस्यलोक है. जहां पग-पग पर आश्चर्य से भर देने वाली तस्वीरें देखने को मिलेंगी. गंगा की गोद में सजे कुंभ में धर्म ही नहीं सुरक्षा के भी मजे हुए खिलाड़ी आपको मिल जाएंगे. हालांकि, नागा सेना और उनके सामान्य इतिहास से सभी परिचित हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि अखाड़ों का भी अपना इंटेलीजेंस होता है. अखाड़ों का भी अपना प्रोटोकॉल होता है, अखाड़ों के भी अपने सिक्योरिटी ऑफिसर होते हैं और अखाड़ों के पास भी कोड वर्ड वाली व्यवस्था होती है. 


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रात को 9 बजे यहां पर पहरा की पुकार दी जाती है और इसकी जिम्मेदारी कोठारी की होती है. डेढ़ महीने के लिए कुंभ में लगाए गए अखाड़े के शिविर की सुरक्षा के लिए आज भी सदियों पुरानी कुंभ सुरक्षा की पद्धति का इस्तेमाल हो रहा है. पारंपरिक सुरक्षा व्यवस्था का सहारा लिया जाता है, जो सदियों से कुंभ की परंपरा का हिस्सा है. रात 9 बजे शुरू हुआ पहरा दो चरणों में होता है. पहला पहरा रात को 9 बजे से लेकर साढ़े 12 बजे तक और साढ़े 12 बजे रात से सुबह 4 बजे तक. 


बड़ा उदासीन अखाड़ा के श्रीमहंत दिव्यामंबर महाराज ने बताया कि पहरेदारी की इस परंपरा में पहरेदारों की चूक माफ नहीं है. अगर उनसे गलती हुई और पहरे देते समय वो सोए या उनका भाला जमीन पर गिरा तब उनके लिए बैठक होती है, श्रीमहंतों के सामने उन्हें पेश किया जाता है और उन्हें सजा की जगह सेवा करने वाली किसी प्रक्रिया में भेजा जाता है. सेवा के जरिए उन्हें सबक सिखाने की कोशिश होती है.


आज का दौर सीसीटीवी का है, वायरलेस का है. लेकिन इस दौर में भी कुंभ और कुंभ में अखाड़ों की सुरक्षा उसी पद्धति से हो रही है, जिस पद्धति से सदियों पहले भी होती थी. कुंभ में इस सुरक्षा प्रणाली को इसलिए लाया गया था, क्योंकि पहले के जमाने में अंधेरा होने के बाद डकैतों का खतरा होता था. जमाना बदल गया, कुंभ बदला गया, कुंभ का स्वरूप बदल गया, लेकिन सुरक्षा व्यवस्था वही बनी हुई है. जो कुंभ के रहस्यलोक को और भव्य करती है.