Motivational Story: जिंदगी में आगे बढ़ने लिए कर्म करना बहुत जरूरी है. लेकिन अगर आप कर्म के साथ साथ भावनाओं का भी सम्मान करते हैं तो यह आपको और आगे ले जाएगा. वहीं अगर को व्यक्ति कर्म कर रहा है और उसे भाग्य और भावनाओं का साथ मिल जाता है तो वह शख्स उस ऊंचाई पर पहुंच जाता है जहां के बारे में कोई कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. इसलिए व्यक्ति को कर्म जरूर करते रहना चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं किसी को भाग्य के भरोसे बैठे रहना चाहिए.


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यहां पढ़ें प्रेरक कहानी


एक ऐसी ही कहानी आज मैं आपको सुना रहा हूं. इस कहानी हम आपको बता रहे हैं कि कर्म के साथ-साथ भावनाओं का क्या महत्व है.इस कहानी में हम आपको बताएंगे कि कैसे अगर आप कर्म करते है और आपकी भावनाएं ठीक नहीं है तो संपूर्ण फल नहीं मिलात है. तो चलिए पढ़ते हैं प्रेरक कहानी.


गाय नहीं खा रही थी केला


एक समय की बात है एक महिला गाय को केला खिलाने पहुंची.गाय ने जब उस महिला को देखा तो वह अपना मुंह घुमा लिया. महिला गाय के सामने जाकर फिर उसके मुंह मे केला खिलाना चाही. लेकिन, महिला के तमाम प्रयासों के बाद भी गाय ने केला नहीं खाया. महिला हर हाल में गाय को केला खिलाना चाहती थी लेकिन गाय खा नहीं रही थी.


गाय की एक्टिंग, डर गई महिला


महिला की ओर से बार बार असफल कोशिश के बाद गाय खीज गई. तब गाय ने सींग से मारने का अभिनय किया. जिसके बाद महिला डर के मारे गौमाता को बिना केला खिलाये ही चली गयी. इस दौरान वहां मौजूद एक सांड पूरे प्रकरण को देख रहा था. महिला के जाने के बाद पास खडे सांड ने पूछा- महिला आपको इतने प्यार से केला खिलाना चाह रही थी लेकिन न तो आपने केला खाया और उल्टा उसे डराकर भगा भी दिया.


गाय तो सांड को बताई पूरी बात


सांड की बात सुन गाय बोली, केला खिलाना प्यार नहीं बल्कि उस महिला की मजबूरी थी. आज एकादशी का व्रत है तो ऐसे में वह मुझे केला खिलाकर पुण्य कमाना चाहती है. वैसे कभी भी यह मुझे पूछती नहीं है. गाय बोली गलती से उसके घर के आगे चली जाती हूं तो डंडा लेकर मारती है और वहां से भगा देती है.


मैं भाव की भूखी हूं न कि केले की


गाय बोली मैं सूखी रोटी के लिए जाता हूं तो वह भगा देती है लेकिन आज जब उसकी जरूरत है तो वह केला खिलाना चाहती है. तो मैं क्यों खाऊं केला. जिसके बाद गाय ने सांड को बताया कि मैं सूखी रोटी और प्रेम की भूखी हूं न कि डंडे और केला की. तभी वहां मौजूद एक अन्य गाय कहती है कर्म के साथ भावनाओं का बहुत महत्व होता है. अगर ऐसा कोई नहीं करता है तो समझो कि उसके कर्म का अधिक फल नहीं मिलेगा.


वह कहती है कि जो केवल अपना भला चाहता है, वह दुर्योधन है, जो अपनों का भला चाहता है, वह युधिष्ठिर है और जो सबका भला चाहता है वह श्रीकृष्ण है. अर्थात कर्म के साथ-साथ भावनाएं बहुत ही ज्यादा महत्व रखती हैं.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)