Vidisha Mahadev Mandir: मध्यप्रदेश में आज भी ऐसे कई प्राचीन मंदिर हैं जिसने अपने अंदर कई रहस्यों को दबा कर रखा हुआ है. ऐसा ही एक मंदिर है जो विदिशा के गंजबासौदा तहसील रेलवे स्टेशन से 22 किलोमीटर की दूरी पर उदयपुर गांव में है. नीलकंठेश्वर नाम से प्रचलित यह मंदिर अद्भुत शिल्पकारी का प्रतीक है. गुमनामी के चादर में दबा हुआ यह मंदिर प्राचीन धर्म स्थलों में से एक माना जाता है. 


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इस मंदिर की बनावट के बारे में बात करें तो यह भोपाल के नजदीक भोजपुर के महादेव मंदिर की तरह ही दिखता है. इस मंदिर की बनावट बिलकुल ही अलग और अनोखी है. इस मंदिर से जुड़ी कई रहस्मयी बातें समाने आई है कि कोई बंद कपाट में शिवलिंग की पूजा कर जाता है, जिसका सबूत है भगवान भोले पर चढ़े फूल. ये देख कर हर रोज लोग अंचभित रह जाते हैं. आइए विस्तार में जानते हैं कि इस रहस्य के पीछे असल बात क्या है!


मंदिर का निर्माण करने वाले ही करते हैं रोज पूजा


बता दें कि नील कंठेश्वर मंदिर का निर्माण परमार वंश के शासक राजा उदयादित्य ने करवाया था. जो  शिव के उपासक रहे हैं और उन्होंने अपने राज में कई मंदिरों, पाठशाला और छात्रावास का भी निर्माण कराया.


बंद कपाट में ये चढ़ाते हैं शिवलिंग पर फूल


परमार वंश के शासक राजा उदयादित्य भगवान शिव के परम भक्त थे. जिसका प्रमाण आज भी देखने को मिलता है. नीलकंठेश्वर मंदिर में यह मान्यता है कि यहां पर रोज बंद कपाट में भी कोई शिविलंग की पूजा कर जाता है, जिसके परिणामस्वरूप रोज सुबह सुबह जब मंदिर का कपाट खुलता है तो शिवलिंग पर पहले से ही ताजे फूल चढ़े मिलते हैं. आसपास के लोगों का कहना है कि बुंदेलखंड के सेनापति आल्हा और ऊदल महादेव के बहुत बड़े भक्त थे.


मंदिर में रात को प्रवेश है मना


मंदिर के इस रहस्य को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं. वहां के लोगों का कहना है कि परमार राजवंश के शासक शिव के उपासक रह हैं और उन्होंने अपने 250-300 साल के राज में कई मंदिर बनवाएं हैं. बता दें कि इस मंदिर का निर्माण परमार वंश के शासक राजा उदयादित्य ने करवाया था. 


लोगों का मानना है कि बुंदेलखंड के सेनापति आल्हा और ऊदल रोज रात को महादेव को कमल का फूल अर्पित करते हैं, जिसे रोज सुबह मंदिर खुलते ही देखा जा सकता है. जबकि मंदिर में रात को जबकि किसी को भी प्रवेश करना मना है.


मंदिर के शिखर पर दिखती है आदमी की आकृति 


नील कंठेश्वर मंदिर को लेकर एक अन्य मान्यता ये है कि इस मंदिर को एक ही व्यक्ति ने रातों रात बनाकर तैयार किया था. मंदिर का निर्माण कर वह व्यक्ति मंदिर की चोटी से उतरकर नीचे आ गया. नीचे आते ही उसका ध्यान गया कि उसका झोला ऊपर ही रह गया है. झोा लेने की लिए वे व्यक्ति फिर ऊपर चढ़ा. उसके नीचे आने से पहले ही मुर्गे ने बांग दे दी. इससे वे व्यक्ति वहीं रह गया. इसलिए आज भी उस मंदिर के शिखर पर उसकी आकृति देखी जा सकती है. 


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)