Mahashivratri 2021: शिव की जटा में गंगा, मस्तक पर चंद्रमा और हाथों में त्रिशूल धारण करने का कारण क्या है, जानें

भोलेनाथ भगवान शंकर का रूप इतना अलग और निराला क्यों है और वे अपने गंगा से लेकर चंद्रमा और भुजंग से लेकर त्रिशूल तक को धारण क्यों करते हैं, पौराणिक कथाओं से जानें उसका कारण.

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शिव के मस्तक पर चंद्रमा का रहस्य

शिव पुराण की एक कथा के मुताबिक, महाराज दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से किया लेकिन चंद्रमा को रोहिणी से ज्यादा प्यार था. तब दक्ष की पुत्रियों ने इस बात की शिकायत अपने पिता से की और दक्ष ने क्रोध में चंद्रमा को क्षय रोग से ग्रसित होने का श्राप दे दिया. इसके बाद चंद्रमा ने भगवान शिव की आराधना शुरू की. इससे भोलेनाथ प्रसन्न हो गए और चंद्रमा को क्षय रोग से मुक्ति दिलायी और चंद्रमा की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपने मस्तक पर भी धारण कर लिया.

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चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण करने की एक और कथा

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक समुद्र मंथन से निकले विष को भगवान शिव ने पी लिया था और विष के प्रभाव से उनका शरीर गर्म होने लगा. तब चंद्रमा ने भोले शंकर के सिर पर विराजमान होकर उन्हें शीतलता प्रदान करने की प्रार्थना की. जब भगवान शिव ने चंद्रमा को धारण किया तब विष की तीव्रता कम होने लगी. तभी से चंद्रमा शिवजी के सिर पर विराजमान हैं.

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शिव की जटाओं में गंगा का रहस्य

शिव पुराण के मुताबिक भागीरथ ने माता गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तप किया और उनके तप से प्रसन्न होकर मां गंगा पृथ्वी पर आने के लिए तैयार भी हो गईं. लेकिन उन्होंने भागीरथ से कहा कि उनका वेग पृथ्वी सहन नहीं कर पाएगी. तब भागीरथ ने शंकर भगवान की आराधना की. शिव उनकी पूजा से प्रसन्न हुए. तब भागीरथ ने उन्हें गंगा के संबंध में सारी बातें बतायीं. इसके बाद भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटा में धारण कर लिया और उसकी केवल एक धारा को पृथ्वी पर भेज दिया.

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गले में सर्प क्यों धारण करते हैं भगवान शिव?

क्या आपको पता है कि भगवान शिव अपने गले में सर्प क्यों धारण करते हैं और यह कौन सा सर्प है? पौराणिक कथाओं के अनुसार नागराज वासुकी भगवान शिव के परम भक्त थे. जब अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन हुआ तब वासुकी नाग को रस्सी की जगह उपयोग किया गया. उनकी इस भक्ति से भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने वासुकी नाग को अपने गले में आभूषण के तौर पर धारण कर लिया.

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हाथों में त्रिशूल धारण करने का कारण

ऐसी मान्यता है कि जब शिव जी प्रकट हुए तो उनके साथ ही रज, तम और सत- ये 3 गुण भी प्रकट हुए. सत गुण त्रिगुणों में, सबसे सूक्ष्म और अमूर्त है और इसे दैवीय तत्त्व के सबसे निकट माना जाता है. तो वहीं त्रिगुणों में सबसे कनिष्ठ तम गुण है. तम गुण वाला व्यक्ति आलसी, लोभी, सांसारिक इच्छाओं से आसक्त रहता है. रज गुण, सत और तम को ऊर्जा प्रदान करता है और व्यक्ति से कर्म करवाता है. यही 3 गुण शिवजी के 3 शूल यात्री त्रिशूल बने. इसके अलावा महादेव का त्रिशूल प्रकृति के 3 रूप- आविष्कार, रखरखाव और तबाही को भी दर्शाता है.

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