Pitru Dosh: कुंडली में राहु की स्थिति बताती है पितृ दोष, जानिए इसे शांत करने का उपाय
Pitru Dosh: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष, पितरों को याद करने का पर्व है. इस साल 29 सितंबर से इस पक्ष का आरंभ हो रहा है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में राहु की स्थिति पितृ दोष को दर्शाती है, आइए जानते हैं पितृ पक्ष में इस दोष को शांत करने का उपाय.
Rahu-Ketu Ke Karan Pitru Dosh: व्यक्तियों के जीवन में सबसे अधिक महत्व ग्रहों की रश्मियों का होता है. जिस किसी भी ग्रह के तत्व की अधिकता होती है, उसी ग्रह की कलाओं को लेकर हमारा शरीर उत्पन्न होता है. उन ग्रहों की रश्मियां जीवन भर हमें प्रभावित करती रहती हैं. राहु केतु को ज्योतिष शास्त्र में छाया ग्रह कहा गया है. इनकी छाया से व्यक्ति में नकारात्मक प्रभाव बढ़ जाते हैं, मलिनता आने लगती है और वह जीवन भर परेशान रहता है. शास्त्रों में मातृ ऋण, पितृ ऋण, देव ऋण, ऋषि ऋण एवं मनुष्य ऋण आदि पांच प्रकार के ऋण बताए गए हैं. किसी की कुंडली में किस पूर्वज का दोष उत्पन्न हो रहा है, उनका आशीर्वाद क्यों नहीं प्राप्त हो रहा है, इसको बताने में राहु केतु मुख्य भूमिका निभाते हैं.
धार्मिक मान्यता
मान्यता है कि पूर्वज सूक्ष्म शरीर से अपने परिवार को देखते हैं. यदि उनके परिवार के लोग उन्हें किसी भी स्थिति में याद नहीं करते हैं. तो ये आत्माएं दुखित होकर श्राप दे देती हैं. इसी को पितृ दोष कहते हैं. कुंडली में राहु और केतु की स्थिति पितृ दोष को दर्शाती है. ऐसे दोषों को दूर करने के लिए पितृपक्ष में अवश्य ही पितरों के लिए श्राद्ध करना चाहिए. ज्योतिष के अन्य उपायों के अनुसार महानारायण, गायत्री मंत्र और श्रीमद्भागवत का पाठ कराने से पितृ दोष शांत होते हैं. वहीं षोडष पिंड श्राद्ध, सर्प पूजा, ब्राह्मणों को गौ दान, कन्यादान के अलावा पीपल, बरगद आदि के पेड़ लगवाने से भी पितृ दोष शांत हो जाते हैं.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन स्थितियों में होता है पितृदोष
राहु चंद्र की युति पुत्र की आयु के लिए हानिकारक होती है तथा यह ग्रहण योग होता है. यह जिस भी भाव में होता है, उस भाव के फल को नष्ट कर देता है.
वृहत पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार 1, 5वें भाव में किसी भी प्रकार से सूर्य, मंगल व शनि स्थित हो तथा 8 और 12वें भाव में राहु व गुरु हो तो यह पितृ दोष का सूचक है.
महर्षि पाराशर कहते हैं कि पंचम भाव या माता के स्थान चतुर्थ भाव पर शनि-राहु आ जाएं तो मातृ दोष होता है.
अगर भाई के स्थान में राहु की युति बन जाये तो भातृत्व दोष हो जाता है.
माता के भाव में अगर मंगल राहु की युति बन रही है तो मातुल यानी मामा को दोष माना जाता है.
स्त्री के सप्तम स्थान में अगर पापग्रह उपस्थित हैं और राहु की युति हो रही है तो स्त्री दोष के द्वारा पितृ दोष माना जाता है.
गुरु के साथ राहु की युति यह बताती है कि ब्राह्मण यानी ज्ञानी एवं सम्मानित व्यक्ति को अपशब्द कहे गए हैं जिसके कारण कष्ट प्राप्त होता है.