Pran Pratishtha of Idol: अयोध्या में बन रहे राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा और इससे जुड़े कार्यक्रमों का आयोजन 16 से 24 जनवरी के बीच होना है. इस दौरान भगवान के पांच वर्ष की आयु के स्वरूप वाली मूर्ति की स्थापना होगी. हिंदू धर्म में किसी भी मंदिर में की जाने वाली भगवान की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा बहुत बड़ा धार्मिक अनुष्ठान होता है. मंदिर में भगवान की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा के बिना उनका पूजन अधूरा माना जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं कि भगवान की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा क्यों की जाती हैं और इसका क्या महत्व है. 


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जब भी हम किसी मंदिर में जाते हैं तो मन में यही कामना होती है, भगवान उनकी फरियाद को सुनकर उसे पूरा करें. मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा वाली भगवान की मूर्ति सजीव रूप मानी जाती है. यही कारण है कि भगवान अपने दुख-दर्द लेकर उनके दरबार में पहुंचते हैं. 


किसी भी भगवान की मूर्ति या चित्र उस समय से पूजनीय हो जाती है,जब उसकी प्राण-प्रतिष्ठा होती है. प्राण-प्रतिष्ठा के अनुष्ठान के बाद ही मंदिर में भगवान की प्रतिमा स्थापित की जाती है और उनकी पूजा की जाती है. मंदिर में स्थापित की जाने वाली मूर्ति प्राण-प्रतिष्ठा से पहले महज एक पत्थर या मिट्टी की प्रतिमा मात्र होती है, लेकिन जब उनमें प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है तो ऐसा माना जाता है कि भगवान का उसमें वास हो जाता है. 


प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में विद्वान, पंडित और कर्मकांडी पूजा, मंत्रों का जाप, स्नान के जरिए भगवान की मूर्ति को स्थापित करते हैं. प्राण प्रतिष्ठा के समय जो पुजारी भगवान की प्रतिमा लेकर मंदिर में प्रवेश करता है तो सबसे पहले उस पुजारे के पैर धोए जाते हैं. इसके बाद मूर्ति को स्नान कराने के बाद वस्त्र पहनाए जाते हैं.


इसके बाद भगवान की मूर्ति का ख पूर्व दिशा की ओर करने स्थापित किया जाता है और फिर मंत्रों के जरिए मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठित किए जाते हैं. इसके बाद भगवान की प्रतिमा के चारों तरफ सुगंधित जल का छिड़काव कर उनको फूल अर्पित किए जाते हैं. 


जानकारों का कहना है कि गृहस्थ जीवन में घर में बने मंदिर में स्थापित किए जाने वाले भगवान की मूर्ति या तस्वीरों का प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान नहीं होता है. यह कार्य केवल मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्ति के लिए किया जाता है, क्योंकि जिस मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठित किए जाते हैं, फिर कई सारे नियमों का पालन करना जरूरी होता है, जो रोजाना घरों में किया जाना लगभग असंभव होता है.


उनका कहना है कि प्राण प्रतिष्ठित किए जाने के बाद खुद भगवान उस प्रतिमा में उपस्थित हो जाते हैं. प्राण-प्रतिष्ठा का अनुष्ठान के लिए शुभ तिथि और मुहूर्त का होना अनिवार्य है. पंचाग देखकर, जिसके पांच अंग हैं. यानी कि नक्षत्र, तिथि, वार, योग कर्म देखकर ही शुभ कार्य किए जाते हैं. 


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)