Naga Naga Sadhu: मोह माया से दूर, फिर क्यों करते हैं 17 श्रंगार? नागा संन्यासियों का वो बड़ा रहस्य, जिसे आप शायद ही जानते होंगे
Who are Naga Sadhu: प्रयागराज में अगले साल होने जा रहे महाकुंभ में नागा साधु भी मां गंगा में स्नान करते नजर आएंगे. इन साधुओं को मोह माया से दूर माना जाता है. फिर भी ये प्रतिदिन 16 श्रंगार करते हैं. आखिर इसके पीछे रहस्य क्या है.
How to become Naga Sadhu: नागा साधुओं की जिंदगी ऊपर से देखने पर बैराग की लगती है. मोह-माया, दीन दुनिया और तमाम भौतिक वस्तुओं से एकदम बेलाग. नागा साधु क्यों करते हैं सत्रह श्रृंगार? हमारी परंपरा में श्रृंगार तो 16 बताए गए हैं, फिर नागाओं की जिंदगी में 17 शृंगार का कैसा विधान? ये सवाल जितना दिलचस्प है, उतने ही रहस्यमयी हैं नागा साधुओं की जिंदगी के विधान. सबकुछ आपके सामने होगा...
ये सनातनी परचम के पुरातन प्रहरी हैं. नागा साधु...नागा का शाब्दिक अर्थ देखें, तो मतलब होता है खाली, जिनके पास कुछ भी नहीं. निर्वस्त्र, दीन-दुनिया और लोक लिहाज की सांसारिक परिभाषा से अलग नंग-धड़ंग... शिव सी जटा, हाथ में डमरू, त्रिशूल. शरीर पर भस्म, बिना वस्त्र ये अवधूत.
नागा का दूसरा अर्थ आध्यात्मिक
नागा का जो दूसरा अर्थ आध्यात्मिक है, उसके मुताबिक नागा यानी सनातन धर्म में सिद्धि प्राप्त आत्माओं का एक समूह... हाथो में चिलम और कश लगाता. दीन-दुनिया से अलग धुनी रमाता. ऐसे बेलाग संन्यासियों को देख कर आम आदमी एकबारगी हैरत में पड़ जाता है. लगता है जैसे भगवान शिव के गणों का समूह साक्षात हो गया...
शिव के साधक, नागाओं का ये समूह आम साधू संतों की तरह दिखाई नहीं देता, मगर जब कुंभ या अर्धकुंभ में ये उमड़ता है, तो सबकी नजरे कौतूहल से भर उठती हैं. कुम्भ में नागा साधु सिर्फ आकर्षण का केन्द्र ही नहीं, बल्कि इसलिए भी खास होते हैं, क्योंकि शाही स्नान मे सब से पहले स्नान का अधिकार नागाओं को ही मिलता है.
नागा संन्यासी करते हैं पूरे 17 श्रृंगार!
शाही स्नान में सबसे आगे नागाओं का समूह ऐसे दिखाई देता है, जैसे ईसा पूर्व के काल में राजा इन्हें युद्ध के मोर्चे पर आगे रखते थे. वही परंपरा शाही स्नान में भी दिखाई देती है. गंगा में डुबकी और स्नान तो सब देखते हैं, मगर इसके बाद नागाओं के एकांत में शुरू होता है ऐसा रहस्यमयी श्रृंगार, जिसे नागा बेहद गुप्त रखते हैं.
ठीक वैसे ही, जैसे कोई स्त्री अपने श्रृंगार के पलों में एकांत चाहती है, वैसे नागा अपने श्रृंगार की गोपनीयत बरतती है, बल्कि स्त्री से भी ज्यादा. क्योंकि नागा करते हैं 16 नहीं 17 श्रृंगार.
जिनके तन पर पूरे कपड़े नहीं, वो श्रृंगार की 16 कलाओं से भी कैसे ऊपर है? यही जानने की जिज्ञासा हमें नागा सन्यासियों के बीच ले गई. जानकारों ने बताया कि नागा साधु ये अनूठा श्रृंगार अपनी साज सज्जा के लिए नहीं, बल्कि अपने अराध्य शिव के लिए करते हैं.
स्वभाव से उग्र होते हैं नागा संन्यासी
नागा साधु स्वभाव से उग्र होते हैं. एक बार किसी बात के लिए मना कर दें, तो फिर उस पर बातचीत बंद. खासतौर पर स्नान के बाद श्रृंगार के दौरान. अवस्था में नागा साधु अमूमन मौन रहते हैं, जैसे जिसके लिए वो श्रृंगार करते हों, उसकी अराधना में लीन हों. यही श्रंगार की परंपरा भी है, चाहे वो श्रृंगार महिलाओं का हो, या फिर नागा सन्यासियों का. तो चलिए, स्पेशल इस रिपोर्ट के हिस्से में समझते हैं, क्या है वो 17वां श्रृंगार, जिसे दुनिया से छिपाकर करते हैं नागा संन्यासी.
तन में शिव, मन में शिव, साधना-अराधना में शिव!
नागाओं के लिए भी श्रंगार का मतलब वही होता है, जो किसी आम महिला के लिए होता है, मगर इसका मकसद दिखावा नहीं, बल्कि उस साज-श्रंगार को अपने भीतर महसूस करना होता है..अपने ईष्टदेव शिव को प्रसन्न करना होता है. नागाओं की दुनिया में 16 श्रृंगार की परंपरा वही है, बस इनके साधन अलग है. अपने इष्ट भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए नागा सन्यासी भी वैसे ही श्रृंगार करते हैं, जैसे कोई सजनी अपने सजना के लिए.
जान लीजिए नागा साधुओं के 17 श्रृंगार
1- बिंदी- की जगह तिलक
2- सिंदूर- की जगह चंदन
3- मांगटीका- गुथी हुईं जटाएं
4- काजल- काजल
5- नथ- चिमटा डमरू या कमंडल
6- हार- रुद्राक्ष की माला
7- कर्णफूल- कुंडल
8- मेहंदी- रोली का लेप
9- चूड़ियां- कड़ा
10- बाजूबंद- रुद्राक्ष या फूलों की माला
11- अंगूठी- अंगूठी
12- केश सज्जा- पंचकेश
13- कमरबंद- रुद्राक्ष या फूलों की माला
14- पायल- लोहे या चांदी का कड़ा
15- इत्र- चंदन
16- वस्त्र- की जगह लंगोट पहनते हैं
ईष्टदेव शिव को प्रसन्न करने का प्रयास
अपने ईष्टदेव शिव को प्रसन्न करने के लिए 16 श्रृंगार पर घंटों की मेहनत करते हैं नागा सन्यासी. इसके बाद ही सधता है नागा सन्यासियों का ये बैरागी रूप. नागा संन्यासियों का यही वो श्रृंगार है, जो उनके बदन पर दिखता तो सरेआम है, लेकिन इसका महाम्य खुद नहीं बताते. ये चुप्पी कुछ वैसी ही है, जैसे श्रृंगार में स्त्रियां सिंदूर को लेकर बरतती हैं.
सनातन परंपरा में सिंदूर जैसे सुहागनों को उनके विवाहित होने की याद दिलाता है, वैसे ही बैराग का प्रतीक भस्म नागा संन्यासियों को हर पल याद दिलाता है कि ये अपना श्राद्ध और पिंडदान जीते जी कर चुके हैं. यानी ईश्वर के दिए हुए दुनियादारी रूप का त्याग कर चुके हैं. नागाओं की रहस्यमयी दुनिया में इस त्याग का भी इम्तिहान होता है. इस कठिन परीक्षा में पास होने के बाद ही नागा के रूप में सिद्ध संन्यासी की उपाधि मिलती है.
शिव और अग्नि के भक्त माने जाते हैं नागा संन्यासी. मुख्य तौर पर नागा परंपरा में संन्यासी पुरुष ही होते हैं, लेकिन अब कुछ महिलाएं भी नागा साधु बनने लगी हैं. हालांकि महिला नागा संन्यासी दिगंबरं की तरह नग्न नहीं रहती, बल्कि भगवा वस्त्र धारण करती हैं. नागाओं की दुनिया में ये नई परंपरा है, मगर नागा साधु बनने की शर्तें वही हैं, जो आदिकाल से चली आ रही है.
कैसे बनते हैं नागा साधु?
नागा साधु बनने की पूरी प्रक्रिया 12 साल की होती है. इसमें पहले का 6 साल संन्यासियों के लिए अहम होता है. इस दौरान संन्यासियों को लंगोट के सिवा कुछ भी इजाजत नहीं होती. शुरुआती दौर में ही इन्हें ब्रह्मचर्य का अभ्यास करना होता है. ब्रह्मचर्य में सफल होने के बाद इन्हें महापुरुष की दीक्षा दी जाती है. इसके बाद यज्ञोपवीत और बिजवान की प्रक्रिया पूरी करनी पड़ती है. बिजवान में संन्यासियों में को अपना श्राद्ध और पिंडदान करना होता है.
12 साल की इस पूरी प्रक्रिया में सफल होने के बाद ही कोई संन्यासी नागा समूह में शामिल होता है. इस के बाद नागाओं को पूरी उम्र कठिन साधना से गुजरना होता है. सर्दी और गर्मी के हिसाब से अपने शरीर को साधना होता है. ये कभी शैय्या पर नहीं सोते, जमीन ही ठिकाना होता है.
खान पान में इन्हें दिन में एक ही बार भोजन करना होता है. इसके लिए अगर भिक्षा मांगनी पड़े, तो एक दिन में नागा साधु सिर्फ 7 घरों से ही भीक्षा मांग सकते हैं. इस रहन सहन से अलग देखें, तो ये समूह स्वभाव से उग्र होता है. एक तरह से ये समूह संत समाज का सैन्य पंथ है यानी युद्ध करने वाला.
अब्दाली से लड़े थे 40 हजार संन्यासी
इतिहास में ऐसे कई युद्धों का वर्णन मिलता है जिसमें जीत नागा संन्यासियों की वजह से सुनिश्चित हुई. जैसे अहमद शाह अब्दाली का मथुरा-वृन्दावन और गोकुल पर आक्रमण. अब्दाली के सेना के खिलाफ 40 हजार नागा साधुओं ने मोर्चा संभाला था. इस तरह इन्होंने गोकुल की रक्षा की थी. ऐसे आक्रमण के लिए नागा संन्यासियों को ट्रेनिंग अखाड़ों में ही दी जाती थी. ये अपने अपने अखाड़ों में किसी सैन्य रेजीमेंट की तरह बंटकर रहते हैं.
ये संन्यासी अपने साथ त्रिशूल, तलवार और भाले हमेशा रखते हैं. देश की आजादी के बाद अखाड़ों ने अपना सैन्य चरित्र त्याग दिया. तब से नागा साधु दर्शन के सनातनी मूल्यों के साथ एक शांत जीवन व्यतीत करते हैं.