Raja Dashrath Kaikeyi Dialogue: अपनी दासी मंथरा की सलाह पर रानी कैकेयी कोपभवन में चली गईं. इधर शाम के समय राजा दशरथ आनंदित वातावरण में उनके महले की तरफ चले, उन्हें सूचना मिली की रानी तो कोपभवन में हैं. कोपभवन का नाम सुनते ही वह सहम गए, उनके पैर ठहर गए. स्त्री का क्रोध सुनकर वह मन ही मन  कई तरह की शंकाओं से घिर गए. राजा डरते-डरते कैकेयी के पास पहुंचे. उनकी दशा देखकर राजा को बड़ा दुख हुआ. कैकेयी जमीन पर पड़ी हैं और उन्होंने अपने सारे आभूषण उतारकर कक्ष में इधर-उधर फेंक दिए हैं. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

राजा दशरथ ने पूछा कारण 


राजा धीरे-धीरे पग बढ़ाते हुए रानी के निकट पहुंचे और जमीन पर बैठकर पूछा-हे रानी तुम किसलिए रूठी हो. उन्होंने अपने हाथों से रानी को स्पर्श किया तो रानी ने उनके हाथ को झिटक दिया. रानी ने क्रोध में भरी हुई नागिन की तरह उन्हें घूरा.


इन नामों से किया संबोधित


गोस्वामी तुलसीदास जी राम चरित मानस में लिखते हैं कि राजा ने प्राणप्रिये, सुमुखी, सुलोचनी, कोकिलबयनी, गजगामिनी आदि नामों से संबोधित करते हुए कहा कि मुझे अपने क्रोध का कारण तो बताओ. किसने तुम्हारा अनिष्ट किया है, आखिर यमराज किसको अपने लोक में ले जाना चाहते हैं. बताओ किस कंगाल को राजा बना दूं और किस राजा को देश से बाहर निकाल दूं.


देवताओं को भी होगा मरना


महाराज दशरथ ने कैकेयी से कहा कि यदि तुम्हारा शत्रु कोई देवता है तो मैं उसे भी मार दूंगा. बेचारे कीड़े-मकोड़े के समान नर-नारी तो कोई चीज ही नहीं हैं. हे सुंदरी तू तो मेरे स्वभाव को जानती है कि मेरा मन सदा तुम्हारे चंद्रमा रूपी मुख को चकोर की तरह देखा करता है.


राम की ली सौगंध


उन्होंने कहा कि मेरी प्रजा, कुटुम्बी, संपत्ति, पुत्र यहां तक कि मेरे प्राण भी तुम्हारे अधीन हैं. उन्होंने इस बात को राम की सौ बार सौगंध खाते हुए कहा. उन्होंने कैकेयी से कहा कि तुम प्रसन्नतापूर्वक अपनी मनचाही बात मांग लो और अपने मनोहर अंगों को आभूषणों से सजा लो. तुम इस अवसर को तो समझो और जल्दी से इस बुरे वेश को त्याग दो. यह सुनकर कैकेयी हंसती हुई उठी और गहने पहने लगी. 
ये ख़बर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर