Ramayan Story: रामायण काल में जब राम और रावण के बीच लड़ाई चल रही थी तो एक-एक करके रावण के सभी योद्धा मारे जा रहे थे. युद्ध के दौरान एक समय ऐसा आया कि कभी न विचलित होने वाला रावण हार के डर से भयभीत हो गया. एक-एक करके उसके सभी योद्धा मारे गए तब रावण को अपने बलशाली भाई कुंभकरण की याद आई. याद आने के बाद रावण ने अपने सोते हुए भाई कुंभकरण को जगाया. जगाने के बाद रावण ने पूरी कहानी कुंभकरण को बताई.


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रावण की बात मानकर युद्ध के लिए निकला कुंभकरण


पहले तो कुंभकरण ने रावण को नसीहत दी लेकिन बाद में भाई धर्म निभाते हुए राम और उनकी सेना से युद्ध करने चल पड़ा. तभी युद्ध भूमि में राम की ओर से मौजूद विभिषण कुंभकरण के सामने पहुंचा. इशारों-इशारों में विभीषण ने कुंभकरण को समझाया कि युद्ध नहीं करनी चाहिए. उसी दौरान विभीषण कुंभकरण के पास पहुंचा और उनसे वरदान मांगा. जिसके बाद कुंभकरण ने इशारों-इशारों में मना कर दिया कि वह विभीषण को वरदान नहीं देगा.


कुंभकरण ने विभीषण को समझाया


कुंभकरण ने विभीषण को कहा कि तुझे क्या आशीर्वाद दूं. चिरंजीवी होने का वरदान तो तुझे स्वयं ब्रह्मा ही दे चुके हैं. इतना सुनने के बाद विभीषण ने कहा कि भैया (कुंभकरण) मुझे इतना ही वरदान दीजिए कि मैं सदा धर्म और नीति के मार्ग पर ही चलूं. मैं कभी अधर्म के मार्ग पर न जाउं. इतना सुनते ही कुंभकरण ने कहा कि यह वरदान भी तो तुम ब्रह्मा से पा ही चुके हो. ऐसा लगता है कि अब इन बातों के पर्दे में तुम अपने धर्म विरिद्ध कार्य को छुपाने की कोशिश कर रहे हो.


सत्य ही शाश्वत धर्म है


कुंभकरण की बातों को सुनकर विभीषण ने कहा कि मैंने कोई भी धर्म विरुद्ध कार्य नहीं किया है. तब कुंभकरण ने कहा कि क्या धर्म है, क्या अधर्म इसकी व्याख्या देश और काल के अनुसार सबकी अलग-अलग होती है. तब विभीषण ने कहा कि नहीं सत्य एक ही है. और वह हर स्थान, हर काल में एक ही होता है. सत्य ही शाश्वत धर्म है. इसलिए उसकी व्याख्या भी एक ही हो सकती है. ये संवाद रमानंद सागर कृत रामायण से ली गई है.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)