Ramayan Story of Sri Ram reached Agastya Muni’s Ashram: वनवास में मुनि सुतीक्ष्ण प्रभु श्री राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण जी के दर्शन कर उनके चरणों में गिर पड़े तो प्रभु ने उन्हें उठा कर हृदय से लगा लिया. फिर तो मुनि उन्हें अपने आश्रम में ले गए और कई तरह से उनका आदर सत्कार किया. मुनि सुतीक्ष्ण ने श्री राम की तुलना अग्नि, सूर्य, शेर और बाज से की तो भक्त वत्सल भगवान श्री रघुनाथ ने मुनि से वर मांगने को कहा. मुनि बोले दासों को सुख देने वाले प्रभु आपको जो अच्छा लगे वही दे दीजिए. इस पर श्री राम ने उन्हें प्रगाढ़ भक्ति, वैराग्य, विज्ञान औस समस्त गुणों तथा ज्ञान के निधान होने का वरदान दिया. मुनि ने फिर कहा कि आपको जो देना था वह तो दे दिया अब आप मुझे एक वरदान दीजिए कि आप माता सीता और लक्ष्मण जी के  साथ मेरे हृदय में वास करें. प्रभु श्री राम ने इस पर भी एवमस्तु कहा और वह मुनि सुतीक्ष्ण के साथ उनके गुरु अगस्त्य ऋषि के आश्रम की ओर चल दिए.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

श्री राम को  देखते ही अगस्त्य मुनि की आंखों से बहने लगी आंसुओं की धारा


आश्रम में पहुंचते ही सुतीक्ष्ण मुनि सीधे अपने गुरु अगस्त्य के पास पहुंचे और उन्हें दंडवत प्रणाम कर कहा कि अयोध्या के राजा दशरथ के कुमार जगत के आधार श्री राम चंद्र जी अपने छोटे भाई लक्ष्मण जी और पत्नी सीता जी के साथ आपसे मिलने आए हैं जिनका जाप आप दिन रात किया करते हैं. यह सुनते ही अगस्त्य मुनि उठ कर दौड़े और भगवान को देखते ही उनके नेत्रों में प्रेम और आनंद के आंसू बहने लगे. दोनों भाई मुनि के चरणों में गिर पड़े तो ऋषि ने बड़े ही प्रेम से उन्हें उठा कर गले लगा लिया. ज्ञानी मुनि ने कुशलक्षेम पूछने के  साथ ही आदरपूर्वक उन्हें श्रेष्ठ आसन पर बिठाकर बहुत प्रकार से पूजन किया और बोले, आज मुझसे भाग्यवान कोई दूसरा नहीं है. उनके आश्रम में जितने भी अन्य मुनिजन थे वह भी प्रभु श्री राम के दर्शन कर हर्षित हो गए. सभी मुनि उन्हें टकटकी लगा कर देखते रहे.


रघुनाथ जी के प्रश्न को सुनकर मुस्कुराने लगे अगस्त्य मुनि


श्री राम ने मुनि से कहा कि  हे प्रभो आपसे कुछ छिपा तो है नहीं, मैं जिस कारण से आया हूं वह सब आप जानते हैं. इसीलिए हे गुरुदेव मैंने आपसे इस बारे में कुछ भी नहीं कहा. अब आप मुझे वही सलाह दें जिससे मैं मुनियों के द्रोही राक्षसों का संहार कर सकूं. प्रभु श्री राम के वचन सुन कर मुनिश्रेष्ठ अगस्त्य ऋषि मुस्कुराए और स्वयं ही उनसे पूछने लगे कि आपने क्या सोच कर यह प्रश्न किया है. हे पापों का नाश करने वाले रघुनाथ जी, मैं तो आप ही के भजन के प्रभाव से आपकी बहुत थोड़ी सी महिमा जानता हूं. आपकी माया तो गूलर के विशाल वृक्ष के समान है जिसके फल अनेकों ब्रहमांडों के समूह हैं. जिस तरह उन ब्रह्मांड रूपी गूलर के फलों के भीतर चर अचर जीव बसते हैं और वह अपने छोटे से जगत के सिवा और कुछ नहीं जानते हैं, उसी तरह मैं भी हूं.


 


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 


 


ये ख़बर आपने पढ़ी देश की सर्वश्रेष्ठ हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर