Ram Ravana Mahasangram: सुबेल पर्वत पर डेरा जमाने के बाद प्रभु श्रीराम ने अपने प्रमुख सहयोगियों की बैठक बुलाई, जिसमें बालि के पुत्र युवराज अंगद को दूत के रूप में रावण के दरबार में भेजने का निर्णय हुआ. श्रीराम का आशीर्वाद लेकर अंगद ने लंका में प्रवेश किया तो उनकी मुलाकात रावण के एक पुत्र से हो गई, जो वहीं पर खेल रहा था. बात-बात में दोनों में झगड़ा बढ़ गया और युद्ध शुरु हो गया. उसने अंगद पर लात उठाई तो अंगद ने उसे पकड़ लिया और घुमाकर जमीन पर पटक दिया. इस दृश्य को देख रावण के पुत्र के साथ खेल रहे दूसरे राक्षस भाग खड़े हुए. पूरे नगर में इस बात का शोर मच गया कि वही बंदर फिर से उत्पात मचाने आ गया है, जिसने पहले लंका को जला दिया था. अब तो सारे लोग उसके बिना पूछे ही रावण के दरबार का रास्ता दिखाते हुए मार्ग से पीछे हटने लगे.


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अंगद के हाथ पटकने से गिरा रावण का मुकुट


रावण के दरबार में अंगद पूरे साहस और आत्मविश्वास के साथ पहुंचे तो वहां उपस्थित सभासद अपने आसन से खड़े हो गए, जिसे देख रावण और भी क्रोधित हो गया. पूछने पर अपना परिचय देते हुए अंगद ने बताया कि वह बालि का पुत्र और श्रीराम के दूत हैं. अंगद ने कहा कि तुमने एक पराई स्त्री का हरण कर पाप किया है. लंबा वाद-विवाद हुआ और दोनों ने एक दूसरे की ताकत को चुनौती दी. रावण ने कहा कि तेरे जैसे बंदरों को मेरे राक्षस यूं ही चबा जाते हैं तो क्रोधित अंगद ने अपने दोनों हाथ जमीन पर जोर से पटके, जिससे पृथ्वी कांपने लगी. सभासद अपने आसनों से गिर गए और रावण का सिंहासन भी हिल गया और उसका मुकुट जमीन पर गिर पड़ा. उनमें से कुछ मुकुट उठाकर अंगद ने श्रीराम के डेरे की तरफ फेंक दिया.


मेघनाद भी अंगद के पैर को नहीं हिला सका


अंगद ने रावण की सभा में प्रण करके कहा कि यदि तुम्हारे दरबार में किसी ने भी मेरा पैर अपने स्थान से हटा दिया तो श्रीराम यह कहकर लौट जाएंगे कि मैं सीता को हार गया. इस पर तो एक एक कर सभी वीरों ने प्रयास किया किंतु वह अंगद का पैर न हिला सके. इसके बाद रावण का महाबली पुत्र मेघनाद उठा, किंतु वह भी निराश होकर अपने स्थान पर बैठ गया. अंगद के ललकारने पर रावण खुद उठा और अंगद के पैर छूने लगा तो अंगद ने कहा, पैर पकड़ना ही है तो श्रीराम के पकड़ो, वही तेरा उद्धार करें, मेरे चरण पकड़ने से तेरा कुछ नहीं होगा. तब अंगद ने नीति की कई बातें कहीं, किंतु रावण को कुछ समझ में नहीं आया.


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