Ramlila: हनुमान जी ने किया था लंका विजय का आगाज, लंकिनी राक्षसी को एक घूंसे से किया था घायल
Mahasangram: भगवान श्रीराम का आशीर्वाद पाकर हनुमान जी माता सीता की खोज में लंका गए. वहां से ही उन्होंने लंका विजय का आगाज कर दिया था.
Ram Ravana Mahasangram: प्रभु श्रीराम और रावण के युद्ध के लंका विजय की गाथा बहुत ही रोचक, कौतूहल पैदा करने वाली और अधर्म पर धर्म की विजय के सिद्धांत को पैदा करने वाली है. लंका तक जाने के लिए सेतु का निर्माण और फिर भालू और वानरों की सेना के जरिए रावण की लंका के अभेद दुर्ग पर हमला कर उसके सहित उसके पुत्र-पौत्रों का संहार करना श्री रघुनाथ जी के अतुल्य बल और अदम्य साहस का परिणाम है. फिर भी हनुमान जी द्वारा लंका तक जाना और वहां पर रावण तथा उसके महाबली योद्धाओं को प्रभु श्रीराम के दूत के रूप में अपनी शक्ति का आभास कराना ही लंका विजय का आगाज था.
सुरसा की परीक्षा पास हनुमान जी ने पाया प्रमाण पत्र
सभी जानते हैं कि लंका तक जाकर सीता माता का पता लगाने का दायित्व जब जामवंत जी ने हनुमान जी को देने के साथ ही उनके अतुलित बल और साहस की भी याद दिलाई, तभी तो वह एक छलांग में लंका को पार कर गए. देवताओं ने उन्हें विश्राम करने के लिए मैनाक पर्वत से आग्रह किया, किंतु हनुमान जी तो मन में श्रीराम की आज्ञा मानने का संकल्प ले चुके थे, इसीलिए उन्होंने पर्वत की चोटी को छूकर यह कह दिया कि 'राम काज कीन्हें बिना मोहिं कहां विश्रााम.' सर्पों की माता सुरसा के मुख में अति सूक्ष्म रूप रखकर प्रवेश करना और फिर सकुशल बाहर आकर उन्होंने अपने बौद्धिक कौशल का परिचय देते हुए बता दिया कि उन्हें जिस उद्देश्य से लंका भेजा जा रहा है, वह उसे पूरा करने में सक्षम हैं. तभी तो सुरसा ने उनकी परीक्षा लेने के बाद इस बात का प्रमाण पत्र जारी करते हुए आशीर्वाद भी दिया कि वह प्रभु श्रीराम का काम संतोषपूर्वक पूरा करने में सक्षम हैं.
छाया राक्षसी को मारकर हनुमान जी दिया बुद्धि का परिचय
समुद्र के ऊपर आकाश में उड़ने वाले जीव-जंतुओं को उनकी छाया देख खाने वाली राक्षसी को पहले ही पहचान कर हनुमान जी ने मारकर यह संकेत कर दिया कि उनकी राह में कोई भी बाधा आए, वह उसे पार कर ही जाएंगे. लंका की अद्भुत सुरक्षा व्यवस्था देख, उन्होंने मच्छर के समान अति लघु रूप रखकर प्रवेश करने का प्रयास किया.
लंकिनी राक्षसी ने बताई ब्रह्मा जी की भविष्यवाणी
लंका के मुख्य द्वार पर प्रहरी के रूप में सजग लंकिनी राक्षसी ने टोक दिया कि बिना मेरी अनुमति के लंका में कोई नहीं घुस सकता है. हनुमान जी के एक ही घूंसे से वह जमीन पर लुढ़क गई और खून की उलटी करने लगी. किसी तरह से अपने को संभालकर लंकिनी उठी और उसने कहा कि अब राक्षसों के विनाश का समय आ गया है. उसने स्पष्ट किया कि जब रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया था तो चलते समय उन्होंने मुझे पहचान बता दी थी कि जब किसी बंदर के मारने से तू व्याकुल हो जाए तो समझ लेना राक्षसों का संहार होने वाला है.