Saphala Ekadashi 2024 Katha: पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी सफला एकादशी कहलाती है. इस एकादशी का व्रत करने से हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है. इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु के अच्युत रूप की आराधना की जाती है. दीपदान करने के साथ ही रात्रि जागरण कर दूसरे दिन पारण किया जाता है. इस बार सफला एकादशी 07 जनवरी को मनाई जाएगी. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

 


जानें सफला एकादशी की कथा


 


सफला एकादशी के दिन व्रत करने के साथ ही कथा अवश्य सुनना चाहिए. प्राचीन काल में चम्पावती राज्य का राजा महिष्मत अत्यंत ही दयालु और धार्मिक प्रवृत्ति का था. वह अपने बड़े पुत्र लुम्पक को लेकर परेशान रहता था क्योंकि वह पापी, दुराचारी, नशेबाजी, झूठ बोलने में ही लगा रहता था. राजा ने उसे कई बार समझाने का प्रयास किया किंतु कोई असर नहीं हुआ. राजा ने दुखी मन से लुम्पक को अपने राज्य से ही निकाल दिया. 


 


चम्पावती राज्य से निकल कर लुम्पक एक जंगल में रहने लगा. पीपल के पेड़ के नीचे एक झोपड़ी बना ली और वहां भी दुष्कर्मों में लिप्त रहा. पौष मास के कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि की रात्रि को ठंड के कारण वह रात भर कांपता रहा और कई दिनों से भूखा होने के कारण सुबह बेहोश हो गया. दोपहर के बाद जब उसे होश आया तो उसने आसपास से फल एकत्र किए और पीपल के वृक्ष की जड़ पर रख दिए. 


 


अब वह पश्चाताप की आग में जलने लगा, रात होने पर उसने रोते हुए भगवान से प्रार्थना की, हे प्रभु! आज तक मैंने बहुत से पाप और दुष्कर्म किए हैं किंतु अब मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि सत्कर्म करते हुए धर्म के मार्ग पर ही चलूंगा. सच्चे हृदय से की गई इस प्रार्थना से भगवान विष्णु जी बहुत प्रसन्न हुए. उसके द्वारा दिन भर कुछ न खाने के कारण उपवास और रात भर जागने के कारण रात्रि जागरण माना गया. इस तरह उसने अनजाने में ही सफला एकादशी का व्रत कर लिया. 


 


परिणाम स्वरूप भगवान की कृपा से वहां पर एक दिव्य घोड़ा आया और आकाशवाणी हुई, हे राजकुमार! सफला एकादशी व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए हैं, इसलिए घोड़े पर सवार होकर अपने राज्य पहुंचो. लुम्पक के राज्य पहुंचने और जानकारी मिलने पर कि वह सुधर गया है, राजा बहुत ही प्रसन्न हुए. राजा ने उसे राजपाट सौंप कर वानप्रस्थ जीवन प्रारंभ किया. इस तरह लुम्पक को हर तरह का सुख प्राप्त हुआ.