Saptarishi Mata Parvati Dialogue: शिवजी को पति के रूप में वरण करने के लिए पार्वती जी जंगल में कठोर तप कर रही थीं, तभी शिवजी के कहने पर सप्तऋषि उनके प्रेम की परीक्षा लेने पहुंचे. ऋषियों ने तरह तरह से उन्हें समझाया कि शिव किसी भी तरह से उनके योग्य नहीं हैं. शिव जी को अवगुणी बताते हुए उन्होंने पार्वती जी का मन उनसे हटाने के लिए यहां तक कहा कि तुम्हें उनके साथ पत्नी के रूप में रहते हुए कोई सुख नहीं मिलेगा. नारद जी के बहकावे में आने की जरूरत नहीं है. शिव तो भीख मांग कर खा लेते हैं और कैसे भी सो जाते हैं. पंचों के कहने पर शिव ने सती से विवाह किया था, फिर उसे त्याग कर मरवा डाला. ऐसे लोगों के घरों में भला क्या कभी कोई महिला टिक सकती है.


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रामचरित मानस के बालकांड में तुलसी बाबा लिखते हैं कि फिर ऋषियों ने कहा, “हमने तुम्हारे लिए बहुत अच्छा वर तलाशा है, वह सुंदर, पवित्र, सुखदायक और सुशील भी है. उसका यश और लीला वेद भी गाते हैं. वह लक्ष्मी का स्वामी और बैकुंठपुर का रहने वाला है. हम सब ऐसे वर से तुम्हारा विवाह करा देंगे”. 


ऋषियों के प्रस्ताव को सुनने के बाद पार्वती जी ने कहा, “आप ने सही कहा कि मेरा शरीर पर्वत से उत्पन्न हुआ है, इसलिए जिद्द मेरे स्वभाव में है. पत्थर से ही सोना निकलता है, जो जलाए जाने पर भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता है, इसलिए मैं भी नारद जी के वचनों को नहीं छोड़ूंगी. चाहे मेरा घर बसे या उजड़े, आप यह कठोर वाणी कहीं और जाकर बतलाएं”.


इतना सुनते ही ऋषिगण बोले, “हे जगज्जननी. हे भवानी! आपकी जय हो आप माया हैं और शिव जी भगवान हैं“. इतना कह उनके चरणों में सिर नवाते हुए ऋषि वहां से चले गए और सारी कथा शिवजी के पास जाकर उनको सुनाई. शिवजी मां पर्वती जी के इस रूप को सुनकर मुस्कुराएं और ध्यानमग्न हो गए. 


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