Pradosh Vrat Significance: यूं तो पूरा सावन का महीना ही भगवान भोले शंकर के नाम है और वह तो एक लोटा जल से भी प्रसन्न हो कर भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं किंतु यदि इस माह प्रदोष का व्रत किया जाए तो भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. महादेव तो देवता ही दैत्यों की भी पूजा से प्रसन्न होकर मनवांछित वरदान दे देते हैं.  अपने भक्तों में भेद नहीं करते और जो भी सच्चे मन से उनकी आराधना करता है, उसे अवश्य ही मन में चाहा आशीर्वाद देते हैं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

कब से शुरू करें प्रदोष व्रत 


यह बहुत ही प्रभावशाली व्रत है. प्रदोष शब्द का अर्थ है रात का शुभारंभ, इसी वेला में व्रत का पूजन होने के कारण यह प्रदोष के नाम से विख्यात है. हर माह के दो पक्ष होते हैं, कृष्ण पक्ष तथा शुक्ल पक्ष. प्रत्येक पक्ष में त्रयोदशी को होने वाला यह व्रत मुख्यतः संतान कामना प्रधान है. इसलिए प्रायः स्त्रियां इस व्रत को अधिक रहती हैं. किसी भी माह के कृष्ण पक्ष के शनिवार को पड़ने वाला शनि प्रदोष व्रत विशेष पुण्यदायी होता है. इस दिन से प्रदोष व्रत की शुरुआत की जा सकती है. इसी प्रकार भगवान शंकर के दिन यानी सोमवार को पड़ने वाले सोम प्रदोष से भी इस व्रत को प्रारंभ कर सकते हैं. 


सावन का पहला प्रदोष व्रत 25 जुलाई को कृष्ण पक्ष का सोम प्रदोष होगा इसलिए जो लोग प्रदोष व्रत का प्रारंभ करना चाहते हैं, इस दिन से कर सकते हैं. इसके बाद सावन मास में 9 अगस्त को भौम प्रदोष होगा. प्रदोष के दिन रुद्राभिषेक करना भी विशेष फलदायी रहता है. माना जाता है कि प्रदोष के दिन भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर अपने भवन में नृत्य करते हैं और सभी देवता उनकी स्तुति करते हैं. इसलिए इस दिन भगवान शंकर की पूजा करने से वह प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल  देते हैं.


महादेव के पूजन के साथ इस कथा को भी पढ़ें 


प्राचीन काल में एक गरीब ब्राह्मणी अपने पति की मृत्यु के बाद भीख मांगकर अपना और अपने पुत्र का जीवन निर्वाह करने लगी. अपने साथ वह अपने बेटे को भी ले जाती थी. एक दिन भिक्षाटन करते उसकी भेंट विदर्भ देश के राजकुमार से हुई जो अपने पिता की मृत्यु और राजपाट छिन जाने के कारण मारा-मारा फिर रहा था. ब्राह्मणी उसे भी अपने घर ले आई और दोनों को पालने लगी. एक दिन ब्राह्मणी दोनों बालकों को लेकर शांडिल्य ऋषि के आश्रम में गई तो उन्होंने भगवान शंकर के पूजन और प्रदोष व्रत की विधि बताई.


लौट कर वह प्रत्येक प्रदोष के दिन व्रत रख भोलेनाथ की पूजा करने लगी. एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तो राजकुमार कुछ गंधर्व कन्याओं को खेलता देख रूक गया और एक कन्या से बात करने लगा. दूसरे दिन फिर राजकुमार वहीं पहुंचा तो कन्या अपने माता पिता के साथ बैठी थी, कन्या के पिता ने उसे पहचान लिया और बताया कि उसका नाम धर्मगुप्त है. 


हां कहने पर गंधर्व कन्या अंशुमति से उसका  विवाह कहां दिया और गंधर्व राज विद्रविक की विशाल सेना लेकर राजकुमार ने विदर्भ पर चढ़ाई कर विजय प्राप्त की. धर्मगुप्त अपनी पत्नी के साथ वहां राज करने लगा तथा ब्राह्मणी को भी पुत्र सहित महल में अपने साथ रखा, जिससे उनके सभी दुख दूर हो गए. अंशुमति के पूछने पर राजकुमार ने बताया कि यह सब प्रदोष व्रत के पुण्य का फल है.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 


ये ख़बर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर