Mangla Gauri Chalisa: सावन के महीने में मंगलवार का दिन विवाहित मां गौरी को समर्पित है. इस दिन विवाहित स्त्रियां और अवविवाहित लड़कियां मंगला गौरी व्रत रखती हैं. इस दिन जगत जन्नी मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा का विधान है. मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से मां गौरी प्रसन्न होती हैं और भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण करती हैं. मंगला गौरी व्रत करने से स्त्रियों को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. वहीं. विवाहित महिलाओं के पति की आयु लंबी होती है. कुंडली में व्याप्त मंगल दोष दूर होते हैं.  

 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार महिलाओं को सावन में मंगला गौरी व्रत अवश्य करने चाहिए. अगर आप भी भगवान शिव और मां गौरी को प्रसन्न करना चाहते हैं और उनका आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो विधि विधान के साथ सावन के मंगलवार को मंगला गौरी व्रत करें. इतना ही नहीं, पूजा के समय पार्वती चालीसा का पाठ करें और आरती करें. इसके बाद ही आपकी पूजा पूर्ण मानी जाएगी.  

 

मां पार्वती चालीसा

 

दोह

 

जय गिरी तनये दक्षजे शम्भू प्रिये गुणखानि।

 

गणपति जननी पार्वती अम्बे! शक्ति! भवानि।

 

चौपाई

 

ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे, पंच बदन नित तुमको ध्यावे।

 

षड्मुख कहि न सकत यश तेरो, सहसबदन श्रम करत घनेरो।।

 

तेऊ पार न पावत माता, स्थित रक्षा लय हिय सजाता।

 

अधर प्रवाल सदृश अरुणारे, अति कमनीय नयन कजरारे।।

 

ललित ललाट विलेपित केशर, कुंकुंम अक्षत् शोभा मनहर।

 

कनक बसन कंचुकि सजाए, कटी मेखला दिव्य लहराए।।

 

कंठ मंदार हार की शोभा, जाहि देखि सहजहि मन लोभा।

 


 

 

बालारुण अनंत छबि धारी, आभूषण की शोभा प्यारी।।

 

नाना रत्न जड़ित सिंहासन, तापर राजति हरि चतुरानन।

 

इन्द्रादिक परिवार पूजित, जग मृग नाग यक्ष रव कूजित।।

 

गिर कैलास निवासिनी जय जय, कोटिक प्रभा विकासिनी जय जय।

 

त्रिभुवन सकल कुटुंब तिहारी, अणु अणु महं तुम्हारी उजियारी।।

 

हैं महेश प्राणेश तुम्हारे, त्रिभुवन के जो नित रखवारे।

 

उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब, सुकृत पुरातन उदित भए तब।।

 

बूढ़ा बैल सवारी जिनकी, महिमा का गावे कोउ तिनकी।

 

सदा श्मशान बिहारी शंकर, आभूषण हैं भुजंग भयंकर।।

 

कण्ठ हलाहल को छबि छायी, नीलकण्ठ की पदवी पायी।

 

देव मगन के हित अस किन्हो, विष लै आपु तिनहि अमि दिन्हो।।

 

ताकी, तुम पत्नी छवि धारिणी, दुरित विदारिणी मंगल कारिणी।

 

देखि परम सौंदर्य तिहारो, त्रिभुवन चकित बनावन हारो।।

 

भय भीता सो माता गंगा, लज्जा मय है सलिल तरंगा।

 

सौत समान शम्भू पहआयी, विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी।।

 

तेहि कों कमल बदन मुरझायो, लखी सत्वर शिव शीश चढ़ायो।

 

नित्यानंद करी बरदायिनी, अभय भक्त कर नित अनपायिनी।।

 

अखिल पाप त्रयताप निकन्दिनी, माहेश्वरी, हिमालय नन्दिनी।

 

काशी पुरी सदा मन भायी, सिद्ध पीठ तेहि आपु बनायी।।

 

भगवती प्रतिदिन भिक्षा दात्री, कृपा प्रमोद सनेह विधात्री।

 

रिपुक्षय कारिणी जय जय अम्बे, वाचा सिद्ध करि अवलम्बे।।

 

गौरी उमा शंकरी काली, अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली।

 

सब जन की ईश्वरी भगवती, पतिप्राणा परमेश्वरी सती।।

 

तुमने कठिन तपस्या कीनी, नारद सों जब शिक्षा लीनी।

 

अन्न न नीर न वायु अहारा, अस्थि मात्रतन भयउ तुम्हारा।।

 

पत्र घास को खाद्य न भायउ, उमा नाम तब तुमने पायउ।

 

तप बिलोकी ऋषि सात पधारे, लगे डिगावन डिगी न हारे।।

 

तब तव जय जय जय उच्चारेउ, सप्तऋषि, निज गेह सिद्धारेउ।

 

सुर विधि विष्णु पास तब आए, वर देने के वचन सुनाए।।

 

मांगे उमा वर पति तुम तिनसों, चाहत जग त्रिभुवन निधि जिनसों।

 

एवमस्तु कही ते दोऊ गए, सुफल मनोरथ तुमने लए।।

 

करि विवाह शिव सों भामा, पुनः कहाई हर की बामा।

 

जो जन पढ़े यह चालीसा, धन जन सुख देइ है तेहि ईसा।।

 

दोहा

 

कूटि चंद्रिका सुभग शिर, जयति जयति सुख खा‍नि,

 

पार्वती निज भक्त हित, रहहु सदा वरदानि।

मता गौरी की आरती

 

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।

 

तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिव री।।

 

जय अम्बे गौरी,...।

 

मांग सिंदूर बिराजत, टीको मृगमद को।

 

उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको।।

 

जय अम्बे गौरी,...।

 

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।

 

रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै।।

 


 

 

जय अम्बे गौरी,...।

 

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।

 

सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःखहारी।।

 

जय अम्बे गौरी,...।

 

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।

 

कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत समज्योति।।

 

जय अम्बे गौरी,...।

 

शुम्भ निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती।

 

धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती।।

 

जय अम्बे गौरी,...।

 

चण्ड-मुण्ड संहारे, शौणित बीज हरे।

 

मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।

 

जय अम्बे गौरी,...।

 

ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।

 

आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी।।

 

जय अम्बे गौरी,...।

 

चौंसठ योगिनि मंगल गावैं, नृत्य करत भैरू।

 

बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू।।

 

जय अम्बे गौरी,...।

 

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।

 

भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पत्ति करता।।

 

जय अम्बे गौरी,...।

 

भुजा चार अति शोभित, खड्ग खप्परधारी।

 

मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी।।

 

जय अम्बे गौरी,...।

 

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।

 

श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति।।

 

जय अम्बे गौरी,...।

 

अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।

 

कहत शिवानंद स्वामी, सुख-सम्पत्ति पावै।।

 

जय अम्बे गौरी,...। 

 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)