Shadiya Navratri 2023: नवरात्रि में रोजाना 5 मिनट निकाल कर लें ये छोटा सा काम, धन-दौलत से हमेशा भरी रहेगी जेब
Siddha Kunjika Stotra: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मां दुर्गा को प्रसन्न करने और इनकी कृपा पाने के लिए नवरात्रि का दिन बेहद खास है. कुंडली में अशुभ ग्रहों के प्रभाव को कम करने और मुक्ति पाने के लिए नियमित रूप से ये काम करना लाभदायी रहता है. इसके साथ ही सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है.
Navratri Siddha Kunjika Stotra: सनातन धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व बताया गया है. साल में चार बार नवरात्रि मनाई जाती है. इनमें से अश्विन माह में पड़ने वाले शारदीय नवरात्रि बेहद खास है. बता दें कि नवरात्रि के ये 9 दिन मां दुर्गा को समर्पित हैं. इन 9 दिन मां दुर्गा की पूजा-उपासना और कुछ ज्योतिष उपाय भक्तों का सोया भाग्य चमका सकते हैं. बता दें कि 15 अक्टूबर से नवरात्रि की शुरुआत हुई थी और 24 अक्टूबर के दिन इनका समापन होगा.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवरात्रि में लोग दुर्गा सप्तशती का पाठ नियमित पाठ करते हैं. इससे मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और भक्तों पर जमकर कृपा बरसाती हैं. लेकिन अगर आपको दुर्गा सप्तशती का पाठ कठिन लग रहा है या फिर समय नहीं है, तो ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवरात्रि में सिद्ध कुंजिका का पाठ भी किया जा सकता है. मान्यता है कि इसके मंत्र स्वयं में सिद्ध हैं और इन्हें अलग से सिद्ध करने की जरूरत नहीं है. इतना ही नहीं, इसका फल भी दुर्गा सप्तशती के पाठ जितना ही मिलता है. जानें पाठ के जरूरी नियम.
सिद्ध कुंजिका पाठ के नियम
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सिद्ध कुंजिका पाठ की शुरुआत वैसे तो नवरात्रि के पहले दिन से ही की जाती है. लेकिन अगर आप उस दिन से नहीं कर पाएं है, तो आज से भी कर सकते हैं. इस पाठ का समापन नवमी तिथि के दिन किया जाता है. मां दुर्गा की चौकी के पास बैठकर ही इसका पाठ किया जाता है. पाठ करते समय धूप और घी का दीपक जलाएं और स्त्रोत का संकल्प लें. इसके बाद ही सिद्ध कुंजिका स्त्रोता का पाठ आरंभ करें.
सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ
॥सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्॥
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥१॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥२॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥३॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥४॥
॥अथ मन्त्रः॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।''
॥इति मन्त्रः॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥२॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥३॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥४॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥५॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥६॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥७॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
॥ॐ तत्सत्॥
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)