नई दिल्ली: महाकवि तुलसीदास का जन्म श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मनाया जाता है. इस बार तुलसीदास जी की जयंती 27 जुलाई सोमवार के दिन मनाई जा रही है. तुलसीदास जी प्रभु श्री राम के परम भक्त थे. उन्होंने कवितावली, दोहावली, हनुमान बाहुक, पार्वती मंगल, रामलला नहछू आदि कई रचनाएं कीं लेकिन उनके द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस हिंदू धर्म के लोगों के लिए बहुत मायने रखती है. 


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कैसे हुए प्रभु के भक्त
तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के बादा जिले के राजापुर (चित्रकुट) गांव में हुआ था. इनके माता-पिता का नाम हुलसी और आत्माराम दुबे है। तुलसीदास के जन्म दिवस को लेकर जीवनी लेखकों के बीच कई विचार है. इनमें से कई का विचार है कि इनका जन्म विक्रम संवत के अनुसार वर्ष 1554 में हुआ था लेकिन कुछ का मानना है कि तुलसीदास का जन्म वर्ष 1532 हुआ था. 


तुलसीदास जी की माता की मृत्यु हो जाने पर उनके पिता ने उन्हें अशुभ मानकर उनका त्याग कर दिया था. इनका पालन दासी ने किया था. हालांकि जब दासी ने भी उनका साथ छोड़ दिया, तब उन्हें अपने जीवन में काफी कष्ट उठाने पड़े. इतनी विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष ने ही उनके अस्तित्व को बचा कर रखा था. तुलसी अपनी रचनाओं को ही माता-पिता कहने वाले विश्व के प्रथम कवि माने जाते हैं.


तुलसीदास जी का विवाह रत्नावली से हुआ था. उनके जीवन में अपना कहलाने लायक सिर्फ उनकी पत्नी ही थीं. वे अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करते थे. एक बार उनकी पत्नी मायके गई हुई थीं. रात में खूब तेज बारिश हो रही थी और उसी बीच तुलसीदास जी पत्नी से मिलने उनेक मायके जा पहुंचे थे. उनकी पत्नी विदुषी महिला थीं. उन्हे अपने पति के इस कृत्य पर काफी लज्जा महसूस हुई थी. उन्होंने तुलसीदास जी को ताना मारते हुए कहा- 


हाड़ माँस को देह मम, तापर जितनी प्रीति।
तिसु आधो जो राम प्रति, अवसि मिटिहि भवभीति।।


इसका अर्थ है: जितना प्रेम हाड़ मांस के शरीर से है, अगर उतना प्रेम प्रभु श्री राम से किया होता तो भवसागर पार हो गए होते. पत्नी की इस बात ने तुलसीदास के जीवन की दिशा ही बदल दी थी और तब से ही वे राम की भक्ति में रम गए थे.


रामचरितमानस से मिली प्रसिद्धि
तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना की थी और इसी के साथ वे अमर भी हो गए. तुलसीदास जी की रामचरितमानस की चौपाइयां मात्र शब्द नहीं हैं, बल्कि किसी की भी पीड़ा खत्म करने की शक्ति रखती हैं. उनके अलग-अलग दोहे और चौपाइयां कष्ट कम करने के काम आते हैं.


विद्या के लिए
गुरु गृह गए पढ़न रघुराई!
अल्प काल विद्या सब आई!!


- अपने ज्ञान में बढ़ोतरी करना हो या प्रतियोगिता में अच्छे अंक लाने हों, इस चौपाई का जाप जरूर करें.


शत्रु भी बनेगा मित्र
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई!
गोपद सिंधु अनल सितलाई!!
- अगर आप अपने किसी शत्रु से परेशान हैं तो रोज सुबह इस चौपाई का जाप करें, वह आपका मित्र बन जाएगा.


दूर होगी विवाह की अड़चन
तब जन पाई बसिष्ठ आयसु ब्याह! साज सँवारि कै!!
मांडवी, श्रुतकी, रति, उर्मिला कुँअरि लई हंकारि कै!!
- इस चौपाई का 108 बार जाप करने से विवाह संबंधी परेशानियों के खत्म होने का योग बनता है.


मनोकामना होगी पूरी
भव भेषज रघुनाथ जसु, सुनहि जे नर अरू नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहि त्रिसिरारि।।
- अगर आप सच्चे दिल से कोई मनोकामना पूरी करवाना चाहते हैं तो घर पर रोजाना रामचरितमानस की इस चौपाई का जाप जरूर करें.


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