Kalki Avatar Kaliyug: कलियुग और इसके अंत की कई कहानियां आपने सुनी होंगी. आज हम आपको कलियुग के अंत और इससे कल्कि अवतार के कनेक्शन के बारे में बताएंगे. कलियुग वो है जिसमें हम सब जी रहे हैं. इससे पहले तीन युग बीत चुके हैं, सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग. इन तीनों ही युगों का जिक्र हमारे धार्मिक ग्रंथों में मिलता है. पूरी काल गणना के साथ. तो क्या कलियुग के लिए भी ऐसी कोई काल गणना है? क्या कोई ऐसा समय है, जिसके बाद कलियुग का काल खत्म हो जाएगा? इस सवाल पर हमारे वैदिक ग्रंथों में कल्कि अवातार की भविष्यवाणी मिलती है. कल्कि यानी भगवान विष्णु का 10वां अवतार? क्या इसी 10वें अवतार, भगवान कल्कि के साथ कलियुग का अंत होगा? क्या हैं इसके संकेत, पहले इसे समझते हैं


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

जयपुर का राजघराना


जयपुर का राजघराना पुराने जमाने से ही ज्योतिष विद्या को प्राथमिकता देता था. राजघराने से जुड़े कई ज्योतिषाचार्य मुगलों के काल में भी मशहूर हुए. खुद राजा मान सिंह इस विद्या में इतना विश्वास करते थे, कि उन्होंने दिल्ली में जंतर मंतर जैसे कई टाइम ऑब्जरवेटरी पूरे देश में बनवाए. कहते हैं अकबर के सेनापति रहे मान सिंह ने जो 14 युद्ध जीते, उसके पीछे भी शौर्य और वीरता के साथ ज्योतिषीय गणनाओं की बड़ी भूमिका थी. तो क्या कल्कि मंदिर के पीछे कलियुग की ऐसी ही कोई काल गणना थी...?


कल्कि महाराज देवव्रत नाम के सफेद घोड़े पर सवार होंगे


जयपुर के कल्कि मंदिर को लेकर मान्यता है कि अवतार के बाद कल्कि महाराज देवव्रत नाम के सफेद घोड़े पर सवार होंगे और पूरे जयपुर भ्रमण के बाद विश्व विजय पर निकलेंगे.


कलियुग का ‘कल्कि’काल


भगवान विष्णु का 10वां अवतार कल्कि, शास्त्रों में लिखा है, जब वो सफेद घोड़े पर सवार होकर आएंगे, तब धरती पर प्रलय होगा. इस महाप्रलय के बाद एक नई सृष्टि बनेगी, भगवान कल्कि के साथ नए युग की शुरुआत होगी. जैसा कि कलियुग से ठीक पहले द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण कह चुके हैं.


“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।”


श्रीमदभगवत गीता का ये श्लोक कहता है- जब-जब इस धरती पर धर्म की हानि होती है, विनाशकारी कर्मों के साथ अधर्म आगे बढ़ता है, तब-तब ईश्वर का अवतार होता है. इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण खुद अर्जुन से कहते हैं- अधर्म का नाश करने के लिए मैं साक्षात इस धरती पर अवतार लेता हूं. इस तरह 3 युगों में भगवान विष्णु के 9 अवतार हो चुके हैं. इसमें पहला है मतस्य अवतार, दूसरा वराह अवतार, तीसरा कच्छप अवतार, चौथा नरसिंह अवतार, पांचवा वामन अवतार, छठा परशुराम अवतार, सातवां श्रीराम अवतार, आठवां श्रीकृष्ण अवतार, नौवां गौतम बुद्ध अवतार और 10वां कल्कि अवतार.


पापियों का नाश होगा..


भगवान विष्णु के इन नौ अवतारों के साथ सतयुग, त्रेता द्वापर जैसे तीन युग और कलयुग के पांच हजार साल बीत गए. इनके साथ जो दसवां अवतार तय है, वो कलयुग के अंत के समय होने वाला है. भगवान विष्णु के उसी दसवें अवतार का नाम है कल्कि अवतार, जिसके बारे में मान्यता है इस अवतार के साथ धरती से सभी बुरे कर्मों और इसमें लिप्त पापियों का नाश होगा. धरती पर एक नई सृष्टि का जन्म होगा. अगर पौराणिक मान्यताओं के हिसाब से देखें, तो महाभारत की घटना द्वापर युग की मानी जाती है. और इसके जो पुरातात्विक साक्ष्य मिलते हैं. इस लिहाज से द्वापर के खत्म हुए करीब 5100 साल हो चुके हैं, उसके बाद जो कलियुग शुरु हुआ उसके मुताबिक 5121 साल बीत चुका है.


कलियुग खत्म होने में कितने साल हैं बाकी?


इस पूरी कालगणना का जिक्र तो कल्कि पुराण में मिलता ही है, देश में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां कलियुग की पूरी गति एक घोड़े के पांव से जुड़ी हुई मानी जाती है. दुर्लभ संगमरमर का बना ये घोड़ा है तो साढ़े तीन सौ साल पुराना, लेकिन इसके पीछे वाले दाएं पांव में जो जख्म का निशान है, वो लगातार भर रहा है. और जब ये पूरी तरह भर जाएगा, धरती पर होगा भगवान कल्कि का अवतार. यानी कलियुग का अंत.


कलियुग का काल


ब्रह्मांड की उम्र 13.7 अरब साल है. धरती की उम्र 4.6 अरब साल है. वैज्ञानिक गणना के मुताबिक 460 करोड़ साल पहले बनी धरती चार महाकल्पों से गुजरते हुए जीवन की सुगबुगाहट से भरी. धरती पर जीवन की पहली आहट आखिरी महाकल्प, यानी करीब 6 करोड़ साल पहले पहली सुगबुगाहट हुई. पहले जीव से इंसानों की उत्पति तक के 6 करोड़ सालों को भी विज्ञान छोटे-छोटे 4 कल्पों और 7 युगों में बांटता है. उसी काल को हमारी वैदिक गणना 4 युगो में बांटती है..


सतयुग- 4800 दिव्य वर्ष यानी 1 करोड़, 72 लाख साल
त्रेतायुग- 3600 दिव्य वर्ष यानी 1 करोड़, 29 लाख, 60 हजार साल
द्वापर युग- 2400 दिव्य वर्ष यानी 86 लाख 40 हजार साल
कलियुग- 1200 दिव्य वर्ष यानी 4 लाख 32 हजार साल


क्या होता है दिव्य वर्ष


इस गणना को आसानी से समझने के लिए आपको दिव्य वर्ष के बारे में बता दें- एक दिव्य वर्ष, यानी देवताओं का एक साल होता है, जिसमें 3600 मानव वर्ष होते हैं. दिव्य वर्ष का इस्तेमाल युगों को नापने के लिए एक इकाई के रूप में किया जाता है, जैसे वैज्ञानिक गणना में कल्पों और महाकल्पों का इस्तेमाल होता है. ज्योतिषीय गणना, महान गणितज्ञ आर्य भट्ट की देन मानी जाती है. ये गणना इतनी सटीक है कि सूर्य से पृथ्वी, शुक्र, बुद्ध की दूरी ठीक उतनी ही है, जिसकी पुष्टि 19वीं और 20वीं सदी का विज्ञान करता है. भारतीय वैदिक मानकों पर हुई इस गणना के मुताबिक 3 करोड़ 87 लाख साल धरती पर जीवन के पूरे हो चुके हैं. इस दौरान तीन युगों में तीन बार महाविनाश हुए, अब चौथे की बारी है. चौथे युग का अंत, यानी एक और प्रलय.


कल्कि मंदिर और कल्कि महाराज का घोड़ा देवव्रत


और उसी प्रलय का प्रतीक ये कल्कि मंदिर और कल्कि महाराज का घोड़ा देवव्रत. 1734 में जब सवाई जयसिंह ने ये मंदिर बनवाया, तो इसके पीछे कलियुग की यही कालगणना बताई जाती है. इसी आधार पर मंदिर के लिए ज्योतिषाचार्यों ने जगह तय की और कल्कि महाराज और उनके घोड़े देवव्रत को स्थापित करने का मुहुर्त निकाला गया. ज्योतिषिय गणना के मुताबिक कलियुग की पूरी अवधि 4 लाख 32 हजार साल है, जिसमें से अभी 5121 साल ही खत्म हुए हैं. तो क्या जयपुर कल्कि मंदिर के घोड़े के जख्म भरने में अभी 4 लाख 27 हजार साल लगेंगे? 


‘देवव्रत’ जिंदा है!


पूरी दुनिया में आपने कहीं सुना है, जिस भगवान का अवतार नहीं हुआ हो, उसकी पूजा ऐसे हो रही हो? भगवान कल्कि इसके अपवाद है. अवतार से पहले ही ना सिर्फ उनका नाम जपा जाता है, बल्कि उनकी सवारी भी देवव्रत के रूप में पहले से तय है. देवव्रत नाम के इस घोड़े को वैसे ही बनाया गया है, जैसा जिक्र कल्कि पुराण में मिलता है. दुर्लभ सफेद संगमरमर से बना देवव्रत नाम का घोड़ा सवाई जयसिंह के अश्वमेघ यज्ञ का हिस्सा था. माना जाता है कि महाभारत काल के अश्वमेध यज्ञ के बाद महाराजा जय सिंह का अश्वमेध धरती पर हुआ सबसे भव्य धार्मिक अनुष्ठान था.


सवाई जयसिंह और अश्वमेध यज्ञ


महाराजा जय सिंह ने वो अश्वमेध यज्ञ नए-नए बसे जयपुर की सुरक्षा के लिए कराया था. इसमें बड़े-बड़े ज्योतिषाचार्य आए थे. इन्हीं ज्योतिषाचार्यं ने अपनी गणना के आधार पर कहा था- भगवान विष्णु का दसवां अवतार धरती के इसी हिस्से पर होगा. इसी सलाह के बाद सवाई जय सिंह ने भगवान कल्कि का मंदिर बनवाया और 1739 ईस्वी में अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा मंदिर में स्थापित किया. मंदिर और घोड़े की स्थापना में एक दिलचस्प बात और है. इस मंदिर से हरिद्वार में गंगा के उतरने की जगह जहां 51 किलोमीटर है, वहीं महाकाल की नगरी उज्जैन 501 किलोमीमटर की परिधि में. माना जाता है, कल्कि भले ही विष्णु का अवतार होंगे, लेकिन इसमें शक्ति भगवान शिव के तांडव वाली होगी.


कल्कि और तांडव


भगवान कल्कि के इसी अवतार को रेखांकित करता है जयपुर का ये  मंदिर, और बगल के कक्ष में बंधा हुआ उनका घोड़ा देवव्रत. घोड़े के पिछले वाले जिस दाहिने पांव में जख्म जैसा जो गड्ढा दिख रहा है, उसके बारे में मान्यता है कि वो समय के साथ भर रहा है. यानी इस गड्ढ़े की चौड़ाई कम हो रही है. संगमरमर से बने घोड़े के पांव का गड्ढा कैसे भरेगा, इसे लेकर आपके मन में भी सवाल होंगे. यहां एक वैज्ञानिक तथ्य ये है, संगमरमर पर मौसम में होने वाले बदलावों का असर होता है. ये बदलाव सामने आने में हजारों साल का समय लगता है.


सैंड क्लॉक का कॉन्सेप्ट


तो क्या इस घोड़े के पांव में छेद किसी गणना के आधार पर बनाया गया था, जैसे सैंड क्लॉक का कॉन्सेप्ट है, कि शीशे के जार में भरी इतनी रेत इतनी देर में दूसरे बॉक्स में गिरेगी, उसी तरह घोड़े को बनाने वालों को क्या पता था, इसके पांव में बना गड्ढा इतने बरसों बाद भरेगा? तो क्या ये मान्यता इसी गणना के आधार पर बनी, कि जिस दिन देवव्रत के पांव का गढ्ढा पूरी तरह से भर जाएगा, उस दिन कलियुग खत्म होगा और इसके साथ होगा भगवान कल्कि का अवतार. जयपुर के कल्कि मंदिर के पुजारी कृष्ण मुरारी शर्मा कहते हैं कि जब घोड़ा ठीक हो जाएगा तो रैंप से मंदिर तक जाएगा और कल्कि को लेकर जाएंगे.