Kunjum Mata Temple Mystery: 4590 मीटर की ऊंचाई पर ‘चमत्कार’! क्या है कुंजुम मंदिर में `सिक्के चिपकने` का रहस्य?
What is Kunjum Mata Temple Mystery: हिमाचल प्रदेश में बर्फ से लदी रहने वाली स्पीति घाटी में कुंजुम माता का मंदिर है, जिसमें सिक्के से जुड़ा एक बड़ा रहस्य आज तक कोई सुलझा नहीं पाया है.
Kunjum Mata Mysterious Temple: हिमालय की दुर्गम घाटियों, बर्फीली चोटियों और जोखिम भरे रास्तों को पार करते हुए जी न्यूज की टीम पहुंची देवी के एक ऐसे दरबार में, जहां चमकता है आपकी किस्मत, आपकी मन्नत का सिक्का. यह एक ऐसा दैवीय चमत्कार है, जिसका रहस्य आज भी दुनिया भर से हजारों लोगों को अपनी तरफ खींचता है. हिमालय के दुर्गम रास्तों से गुजरते हुए लोग एक ऐसे देवी मंदिर में पहुंचते हैं, जहां अगर आपका सिक्का दीवार से चिपक गया, तो समझिए आपकी किस्मत का सिक्का चमका, क्या है देवी क इस चमत्कारी शक्ति के पीछे पूरा रहस्य, पढिए ये रिपोर्ट.
सिक्का चिपका तो समझिए मनोकामना पूरी
जहां हवाएं पहुंचकर बर्फीली हो जाती हैं. जहां बर्फीली चोटियों और सूनी सी घाटी में इस देवी मंदिर के सिवा कुछ भी दिखाई नहीं देता. वहां आपकी एक आपकी मनोकामना, आपकी मन्नत और किस्मत का सिक्का खनकता है. ये कोई चुंबक नहीं, बल्कि देवी के दरबार में रहस्यमयी पत्थर है, जहां अगर सिक्का चिपक गया, तो समझिए, आपकी मनोकामना पूरी हुई.
जी न्यूज ने इस पूरे चमत्कार को अपने कैमरे में कैद किया. कोई जरूरी नहीं, सबका सिक्का देवी मां के इस चमत्कारी पत्थर पर चिपक जाए, जैसे इस वीडियो में आप देख रहे हैं. हमने सिक्के के इस रहस्य के दोनों पहलुओं को अपनी आंखों से देखा. एक श्रद्धालु का सिक्का तो चिपक गया, लेकिन दूसरे का रह गया. सिक्के के इसी रहस्य को समझने के लिए जी न्यूज की टीम ने एक बेहद ही मुश्किल यात्रा की.
क्या है कुंजुम मंदिर में सिक्के का रहस्य?
तो चलिए, जी न्यूज की टीम के साथ शुरू करते हैं देवी कुंजुम के मंदिर का सफर. यहां आपको बता दें, कि करीब 4600 मीटर कीं उंचाई पर स्थित इस देवी मंदिर के बारे में ये मान्यता है, कि यहां वही श्रद्धालु पहुंच पाता है, जिसको मां का बुलावा होता है. ये मंदिर है हिमाचल प्रदेश की स्पीती वैली में, जो भारत का कोल्ड डेजर्ट, यानी शीत मरुस्थल कहा जाता है.
ये मंदिर कुंजुम दर्रे के उस तिमुंहे रास्ते पर स्थित है, जो स्पीति को लाहौल, मनाली और किन्नौर से जोड़ता है. मंदिर की इस भौगोलिक स्थिति से आपको थोड़ा थोड़ा अंदाजा हो गया होगा, यहां तक की यात्रा कितनी रोमांचकारी और जोखिम भरी होती है. लेकिन मां का बुलावा था, तो जी न्यूज की टीम निकल पड़ी अपने दर्शकों को सिक्के का रहस्यमयी चमत्कार दिखाने के लिए.
नवंबर का महीना है, पहाड़ों में मौसम बदलने लगा है, बर्फ तो नहीं, लेकिन बर्फीली हवाओं का जोर बढ़ने लगा है. मौसम की इस चुनौती के बीच कुंजुम देवी मंदिर के लिए हमारी ये यात्रा शुरु होती है मनाली से. सफर रोमांचकारी भी है, और कदम कदम पर जोखिम भरा भी, लेकिन इसका सामना करने का हौसला लिए निकल पड़े हैं जी न्यूज के संवाददाता संदीप सिंह, अपने साथी कैमरामैन प्रेम के साथ.
यात्रा का पहला पड़ाव रोहतांग दर्रा
रोहतांग दर्रे को इस यात्रा का पहला पड़ाव कह सकते हैं. यहां पहुंचते ही आगे के सफर की मुश्किलों का आभास हो जाता है. रोहतांग पास से आगे 50 किलोमीटर का रास्ते में तो फिर भी मुश्किलें कम है, लेकिन यहां से आगे...? यहां से आगे न मौसम का भरोसा, और ना ही सड़क का. कब कहां मुड़ जाए और कब कहां बंद हो जाए, कोई ठिकाना नहीं.
बीआरओं के इस बोर्ड के बाद से शुरु होती है असली ऑफ रोड जर्नी. ऐसी जर्नी, जिसमें इंसान के हौसले के साथ एक मजबूत गाड़ी का भी इम्हितान हो जाए. इस रास्ते से गुजरते हुए आपको गाड़ियां न के बराबर दिखेंगी, आपको अकेले ही अपनी मंजिल की तरफ चलते जाना है, लेकिन सावधानी कदम कदम पर.
अभी कुंजुम देवी के मंदिर का आधा रास्ता ही पूरा हुआ है, लेकिन गाड़ी का टेंपरेंचर इतना हाई हो चुका है, कि यहां हमें रुकना पड़ेगा. मन में ख्याल देवी मां का है, उनक मंदिर में चमत्कार से जुड़ी हुई जिज्ञासा भी. लिहाज रास्ते में हमें जो भी मिला, उसे पूछ लिया.
देवी के आगे माथा टेककर बढ़ते हैं आगे
देवी कुंजुम के सिक्कों वाले चमत्कार के चर्चे पूरे रास्ते हमें मिलते हैं. इस रास्ते जो भी गुजरता है, वो बिना कुंजुम मंदिर में मत्था टेके, आगे नहीं बढ़ता.
इतने बियाबान, सुनसान में हमारी टीम की बस एक ही मन्नत है, देवी कुंजुम मंदिर तक पहुंचना, क्योंकि मनाली से निकले हुए करीब 8 घंटे हो चुके हैं, मौसम बदल रहा है और सड़क किसी भूल भुलैया की तरह उलझ रही है. हमने भी ये मुश्किल सफर आगे जारी रखा. यहां से आगे न तो कोई गांव दिखता है और ना ही कस्बा.
कुछ राहगीरों से पूछने के बाद पता चला, कुंजुम दर्रे से कुछ दूर पहले एक ढाबा मिलेगा, जो पूरे इलाके में इकलौता और अनूठा है.
इतनी मुश्किल लोकेशन पर दोर्जी खाम्पा अपनी पत्नी के साथा पिछले 40 साल से ढाबा चला रहे हैं, इसके पीछे वो देवी कुंजुम की ही कृपा मानते हैं. इनके लिए ये कारोबार नहीं, बल्कि बर्फीले रेगिस्तान में लोगों की सेवा है. वो बताते हैं, बॉलीवुड के कई सितारे भी उनके ढाबे पर आ चुके हैं.
4600 मीटर की ऊंचाई पर बसा कुंजुम दर्रा
चाचा-चाची के मशहूर ढाबे के बाद हमारी टीम का अगला पड़ाव था कुंजुम दर्रा. ये दर्रा करीब 4600 मीटर की उंचाई पर स्थित है. यहां पहुंचते ही कुजुंम माता का जयकारा सुनाई देने लगता है. देवी माता की कई कहानियां, कई मान्यताएं इस पूरे इलाके में कही सुनी जाती हैं. कुंजुम दर्रा पहुंचते ही यहां जो दृश्य दिखता है, उसका एहसास अपने आप में दिव्य होता है.
धार्मिक लिहाज से देखें, तो लाहौल स्पीति बौद्ध धर्म बहुल इलाका हैं, लेकिन इस इलाके में कुंजुम माता की महिमा विशेष रूप से व्याप्त है. जैसा कि कुंजुम माता मंदिर से ठीक पहले का ये साइन बोर्ड बताता है, इस रास्ते से गुजरने वाले हर शख्स को मंदिर की परिक्रमा करनी जरूरी है.
इसके बारे में हमने जानकारी जुटाई तो पता चला, कि ये मान्यता इस रास्ते पर होने वाली दुर्घटनाओं की वजह से बलवती हुई. मंदिर की देखभाल करने वाली कमेटी ने बताया कि परिक्रमा के बाद जो भी मुसाफिर आगे के सफर पर निकलता है, उसकी रक्षा मां की शक्ति करती है.
शिला से चिपक गया रिपोर्टर का सिक्का
कुंजुम मंदिर मे इसी चमत्कार को देखने की जिज्ञासा हमारे अंदर सबसे ज्यादा थी, हम ये देखना चाहते थे कि आखिर वो कैसी शिला है, जिस पर कांसे से बने सिक्के चिपक जाते है...
ये चमत्कार अपने आप में वैज्ञानिक नियमों से परे है. क्योंकि हमारे यहां के सिक्के निकेल, कॉपर और चिंग से बनते हैं. ये धातु चुंबक से नहीं चपकते, तो फिर मंदिर की दीवार में ये कैसी शिला है, जिससे कोई कोई सिक्का चिपक जाता है, और कोई नीचे गिर जाता है...
यहां एक बात बता दें, शिला के बारे में वैज्ञानिक तथ्य ये है, कि ये मैग्नेटिक यानी चुंबकीय शक्ति वाला नहीं है, तो फिर ये कैसे मुमकिन होता है. ये जानने के लिए हमारे संवाददाता संदीप सिंह ने भी एक सिक्का निकाला. संदीप सिंह ने जो सिक्का मंदिर की शिला से लगाया, वो कुछ सेकेंड बाद शिला से चिपक गया.
कुछ ही महीने खुलता है ये मंदिर
यानी मंदिर की मान्यता के मुताबिक हमारे संवाददाता ने सच्चे दिल से जो मनोकामना की थी, वो पूरी होगी. यही इस मंदिर के बारे में विख्यात है. यहां जो भी जाता है, वो इसी अरमान के साथ जाता है. हमारी ये मंदिर यात्रा भी चमत्कार के साक्षातकार के साथ खत्म होती है. देवी कुंजुम की कृपा आप सभी पर बनी रहे.
कुंजुम माता का मंदिर साल के कुछ महीने ही खुला रहता है. नवंबर महीने से लेकर मार्च तक यहां का रास्ता बंद होता है, इसलिए यहां स्थानीय लोग ही पूजा पाठ करते हैं. उम्मीद है ये रिपोर्ट और हमारी ये पहल आपको अच्छी लगी होगी.