Bhishma Pitamah Story: महाभारत में भीष्म पितामह को ऐसा योद्धा माना गया है, जिन्होंने न्याय-अन्याय का भली-भांति ज्ञान होने के बावजूद राजधर्म का पालन करते हुए कौरवों का पक्ष चुना. युद्ध के दौरान, भीष्म को इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था. लेकिन, उन्होंने अपनी देह नहीं छोड़ी और बाणों की शैय्या पर 58 दिनों तक पीड़ा सहन की. यह सवाल अक्सर उठता है कि जब भीष्म के पास अपनी इच्छा से मृत्यु का अधिकार था, तो उन्होंने इतनी वेदना क्यों सही? आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं. 


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भीष्म की पराजय का रहस्य


कुरुक्षेत्र के युद्ध में भीष्म पितामह अजेय योद्धा थे, जिनकी शक्ति से पांडव चिंतित थे. रोज हजारों सैनिक उनके हाथों मारे जाते थे और कोई भी योद्धा उनका सामना करने की हिम्मत नहीं कर पाता था. तब श्रीकृष्ण ने भीष्म की मृत्यु का उपाय सुझाया. कृष्ण जानते थे कि अंबा जो अपने पूर्व जन्म में भीष्म के कारण अपमानित हुई थी और उसने शिखंडी के रूप में जन्म लिया है और वही भीष्म के अंत का कारण बनेगी.


अर्धनारी रूप शिखंडी


श्रीकृष्ण ने शिखंडी को आगे किया क्योंकि भीष्म ने शपथ ली थी कि वे केवल पुरुषों से युद्ध करेंगे. शिखंडी को अर्धनारी (स्त्री और पुरुष का सम्मिलित रूप) माना जाता था. जब शिखंडी ने भीष्म पर बाण चलाए, तो उन्होंने शस्त्र त्याग दिए. शिखंडी की आड़ में अर्जुन ने भीष्म पर बाणों की वर्षा कर दी. भीष्म पितामह अर्जुन के तीरों को पहचान नहीं पाये क्योंकि अर्जुन और शिखंडी के बाणों का रंग एक जैसा था. इस तरह, भीष्म पितामह को अनगिनत बाण लगे और वे धरती पर ठीक से लेट भी नहीं सके.


बाणों की शैय्या पर 58 दिन


अर्जुन ने अपनी दिव्य दृष्टि और शक्ति से भीष्म के लिए बाणों की शैय्या तैयार की. जिस पर भीष्म ने पूरे खरमास (सूर्य के धनु राशि में रहने का काल) तक लेटकर मृत्यु की प्रतीक्षा की. उनका मानना था कि खरमास के अशुभ समय में मृत्यु प्राप्त करना अनुचित होगा. इसलिए उन्होंने अपनी इच्छामृत्यु का प्रयोग उस समय किया जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर गया, जिसे शुभ माना जाता है.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)