Why do bad things happen to good people: आपने देखा होगा या महसूस किया होगा आपके आसपास धर्म, पूजा-पाठ करने वाले लोगों की जिंदगी भी खुशहाल नहीं होती, जितनी की अधर्मी लोगों की होती है. ये सब देखकर आपके मन में भी कभी ना कभी सवाल जरूर उठा होगा कि आखिर अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है. इसका उत्तर श्रीमद्भभवगदगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने दिया है. 


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बता दें कि श्रीमद्भभवगदगीता एक ऐसा धर्म ग्रंथ है जिसमें मनुष्य के मन में उठने वाले हर प्रश्न का हल विस्तार से बताया गया है. श्रीमद्भभवगदगीता में वर्णित कथा के अनुसार, अर्जुन के मन में जब भी कोई दुविधा उत्पन्न होती थी तो वो उसके समाधान के लिए श्रीकृष्ण के पास पहुंच जाते थे. ऐसे ही एक दिन अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण के पास आए और उनसे बोले हे वासुदेव मुझे दुविधा ने घेर रखा है और इसका समाधान आप ही बता सकते हैं. तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि हे धनंजय अपने मन की दुनिधा विस्तार से बताओ. तब मैं तुम्हें उसका हल बताऊंगा. 


अच्छे लोगों के साथ क्यों होता है बुरा? 


अर्जुन बोले, हे नारायण, मुझे ये बताइए कि अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है. अर्जुन की बात सुनकर श्रीकृष्ण बोले, हे पार्थ मनुष्य जैसा देखता है या महसूस करता है वैसा कुछ नहीं होता.बल्कि अज्ञानता में वो सच्चाई को नहीं समझ पाता. श्रीकृष्ण की बातें सुनकर अर्जुन हैरान हो गए और बोले हे नारायण आप क्या कहना चाहते हैं, मेरी समझ में नहीं आया.श्रीकृष्ण बोले कि मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूं, जिससे जानने के बाद तुम समझ जाओगे कि हर हरेक इंसान को उसके कर्म के अनुसार ही फल मिलता है. अर्थात जो बुरा कर्म करता है उसे बुरा फल मिलता है और जो अच्छा कर्म करता है उसे अच्छा फल मिलता है. क्योंकि अच्छा और बुरा कर्म तो मनुष्य पर निर्भर करता है.


श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उदाहरण से समझाया. वो बोले कि एक नगर में दो पुरुष रहा करते थे. उसमें एक व्यापारी था जो धर्म को बहुत महत्व देता था. वो पूजा पाठ और भगवान में बहुत विश्वास करता था. वहीं दूसरा पुरुष पहले वाले से बिल्कुल विपरीत था. वो मंदिर तो जाता था, लेकिन पूजा-पाठ के उद्देश्य से नहीं, बल्कि मंदिर के बाहर जुते-चप्पल चुराने के लिए. इसी तरह समय बीतता गया. उस नगर में जोर की बारिश हो रही थी. उस दिन मंदिर में पंडित के अलावा कोई नहीं था. ये बात जब दूसरे पुरुष को पता चली तो उसके मन में ख्याल आया ये सही मौका है मंदिर के धन को चुराने का. 


वो मंदिर पहुंच गया और मंदिर में रखा सारा धन चुरा लिया. उसी समय धर्म-कर्म में विश्वास रखने वाला व्यापारी भी मंदिर पहुंचा और भगवान के दर्शन किए. लेकिन मंदिर का पुजारी उस भले व्यक्ति को चोर समझ बैठा और शोर मचाने लगा. इतने में मंदिर में भीड़ जुट गई और लोग उस व्यापारी को चोर समझ बैठे. 


व्यापारी बचता हुआ उस मंदिर से तो निकल गया लेकिन दुर्भाग्य ने उसका साथ नहीं छोड़ा. बाहर निकलते ही वो एक गाड़ी से टकरा गया और घायल हो गया. वह किसी तरह अपने घर जा रहा था तब ही रास्ते में उसकी मुलाकात उस व्यक्ति से हुई जिसने मंदिर का धन चोरी किया था. व्यापारी को देख वह व्यक्ति क्रोधित हो गया और घर पहुंचते ही भगवान की सारी तस्वीर निकालकर फेंक दी. वह भगवान से नाराज होते हुए अपना जीवन व्यतित करते लगा. 


कुछ समय बाद दोनों ही व्यक्तियों की मृत्यु हो गई और दोनों यमराज की सभा में पहुंचे. उस व्यक्ति ने अपने बगल में खड़ा देख यमराज से पूछ लिया कि मैं सिर्फ अच्छे कर्म करता था लेकिन इसके बावजूद पूरा जीवन मुझे अपमान ही मिला. इसपर यमराज ने व्यापारी को बताया कि पुत्र तुम गलत सोच रहे हो.जिस दिन तुम्हें गाड़ी से टक्कर लगी थी उस दिन तुम्हारे जीवन का आखिरी दिन था.लेकिन तुम्हारे अच्छे कर्म की वजह से ही तुम्हारा एक्सीडेंट एक छोटे चोट में परिवर्तित हो गई और इस व्यक्ति के बारे में जानना चाहते हो तो बता दें कि इसकी किस्मत में राजयोग था. 


श्रीकृष्ण अर्जुन को ये कथा सुनाने के बाद पूछते हैं कि पार्थ तुम्हें तु्म्हारे प्रश्न का उत्तर मिल गया. ऐसा सोचना कि भगवान किसी के अच्छे कर्म को नजरंदाज कर रहे हैं तो ये बिल्कुल गलत है.भगवान हमें किसी रूप में दे रहा है ये समझ में नहीं आता. लेकिन अगर आप अच्छे कर्म करते हैं तो भगवान का आशीर्वाद सदैव आप पर बना रहता है. इस कहानी से ये मालूम पड़ता है कि हमें कभी भी अपने कर्मों को नहीं बदलना चाहिए. क्योंकि आपके कर्मों का फल आपको इसी जीवन में मिलता है बस उसका पता नहीं चलता.


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