Mount Kailash Mystery: माउंट एवरेस्ट से ऊंचाई में काफी छोटा है कैलाश पर्वत, फिर भी आज तक कोई उस पर चढ़ क्यों नहीं पाया?
Kailash Parvat ka Rahasya: दुनिया की सबसे ऊंची पर्वतीय चोटी माउंट एवरेस्ट है, जिस पर 7 हजार से ज्यादा लोग चढ़ चुके हैं. वहीं उससे 2 हजार मीटर कम ऊंचाई वाले कैलाश पर्वत पर आज तक कोई इंसान नहीं चढ़ पाया है.
Mystery of Mount Kailash: माउंट एवरेस्ट दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है. हिमालय पर्वत की इस सबसे ऊंची चोटी की ऊंचाई 8848 मीटर है. इस चोटी पर चढ़ना बेहद मुश्किल है. फिर भी आज तक करीब 7 हजार लोग इस दुरूह चोटी पर चढ़ने में सफल हो चुके हैं. वहीं कैलाश पर्वत भी हिमालय पर्वत श्रेणी का ही हिस्सा है और उसकी ऊंचाई एवरेस्ट से 2 हजार मीटर कम यानी 6638 मीटर ही है. इसके बावजूद आज तक कोई भी इस चोटी पर चढ़ने में सफल नहीं हो पाया है. आखिर कैलाश पर्वत में ऐसा क्या है, जो पर्वतारोहियों को उस पर चढ़ने से रोकता है. किसी भी देश का पर्वतारोही आज तक उस पर चढ़ाई करने में कामयाब नहीं हो पाया. आज इसी रहस्य को हम आपके सामने डिकोड करने जा रहे हैं, जिसे पढ़कर आप भी हैरान रह जाएंगे.
भगवान शिव का बसेरा
कैलाश पर्वत को सनातन धर्म में बेहद पवित्र माना जाता है. मान्यता है कि इसी पर्वत पर भगवान शिव, मां पार्वती, भगवान गणेश और कार्तिक का बसेरा है. भोलेनाथ इस दुरगम्य पर्वत पर हर वक्त योग में लीन में रहते हैं, जिसकी वजह से वहां पर हर वक्त अजीब सी शांति रहती है. जो श्रद्धालु कैलाश पर्वत की परिक्रमा करने गए हैं, उनका कहना है कि पर्वत के नजदीक पहुंचने पर एक अजीब सी ध्वनि निकलती हुई महसूस होती है, जो ओम की तरह लगती है.
एक अन्य कथा के मुताबिक, चूंकि कैलाश पर्वत भगवान शिव का निवास स्थान है. इसलिए कोई भी जीवित इंसान उस पर नहीं चढ़ सकता है. केवल ऐसा व्यक्ति, जिसने जीवन में कभी कोई पाप न किया हो, वही कैलाश पर्वत पर पहुंच सकता है या फिर मरने के बाद उसकी आत्मा ही कैलाश पर्वत पर भोलेनाथ की शरण में आ सकती है.
वो रहस्य, जो आज तक है अनसुलझा
क्या ये कथाएं वाकई सत्य हैं या वास्तविक वजह कुछ और है. यह एक ऐसा रहस्य है, जो दुनियाभर के पर्वतारोहियों को लंबे वक्त से परेशान करता रहा है. इस रहस्य को सुलझाने के लिए जब-तब कई कोशिशें होती रही हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 1999 में रूसी वैज्ञानिकों की एक टीम ने कैलाश पर्वत की संरचना पर शोध करने का फैसला किया. इसके लिए वैज्ञानिकों की टीम एक महीने तक कैलाश के नीचे जमी रही और कई तरह के रिसर्च किए. अपने निष्कर्ष में वैज्ञानिकों ने कहा कि कैलाश पर्वत की चोटी प्राकृतिक रूप से नहीं बनी, बल्कि वह एक पिरामिड है, जो बर्फ की मोटी चादर से ढका है. उन्होंने इस पिरामिड को "शिव पिरामिड" कहकर पुकारा.
इस रिसर्च के 8 साल बाद वर्ष 2007 में एक रूसी पर्वतारोही सर्गे सिस्टिकोव ने अपनी टीम के साथ कैलाश पर्वत पर माउंट कैलाश पर चढ़ाई की कोशिश की लेकिन वह नाकामयाब रहा. नीचे उतरने के बाद जब उसने अपना अनुभव दूसरे साथियों को बताया तो वह काफी भयावह था.
ऊपर चढ़ते ही अंग हो जाते हैं निष्क्रिय
सर्गे सिस्टिकोव ने कहा, 'कुछ ऊंचाई पर चढ़ने के बाद मुझ समेत मेरी पूरी टीम का सिर तेज दर्द की वजह से फटने जैसा होने लगा. हमारे जबड़ों की मांसपेशियां खिंच गई और जीभ अंदर जम गई. हम बोलना चाहते थे लेकिन हमारी आवाज बंद हो गई. फिर हमारे पैरों ने भी जवाब दे दिया. हमें ऐसा लगा, जैसे कोई अदृश्य शक्ति हमारे अंगों को निष्क्रिय कर हमें सजा दे रही है. हमने इशारों में एक दूसरे को तुरंत नीचे उतरने को कहा. जब हम नीचे उतरने लगे तो हमारे सभी अंग सामान्य होने लगे. नीचे उतरने के बाद हमें आराम मिला.'
एक ब्रिटिश पर्वतारोही कर्नल विल्सन ने भी कैलाश पर्वत पर चढ़ाई की कोशिश की लेकिन दूसरों की तरह असफल रहे. विल्सन ने अपना अनुभव बयान करते हुए कहा, 'पर्वत पर बर्फ की मोटी परत जमी थी. मैं ऊपर चढ़ने के लिए जैसे ही आगे देखता, तुरंत बर्फबारी शुरू हो जाती. इसके बाद रास्ता दिखना बंद हो जाता. यह बर्फबारी काफी देर तक चलती और मजबूरी में मुझे नीचे उतरना पड़ता. ऐसा लगातार कई दिनों तक हुआ. ऐसा लग रहा था कि कोई शक्ति हमें आगे बढ़ने से रोक रही है. आखिर में मुझे अपना अभियान बंद करके वापस लौटना पड़ा.'
तेजी से बढ़ने लगती है उम्र
इसके बाद चीन ने कैलाश पर्वत के रहस्यों को सुलझाने के लिए अपने कई पर्वतारोहियों को इस पर चढ़ने के लिए कहा. लेकिन दुनियाभर में रह रहे हिंदुओं, बौद्धों और जैनियों ने इसका इतना विरोध किया कि चीन की कम्युनिस्ट सरकार को इस पर रोक लगानी पड़ गई. उसके बाद से आज तक किसी ने भी इस पहाड़ पर चढ़ने की हिम्मत नहीं दिखाई है.
कैलाश पर चढ़ाई की कोशिश करने वाले पर्वतारोहियों का कहना है कि जो भी व्यक्ति इस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश करता है, उसके सिर के बाल और नाखून तेजी से बढ़ने लग जाते हैं. उम्र तेजी से ढ़लने लगती. चेहरे पर बुढ़ापा झलकने लगता है. जो भी व्यक्ति आगे बढ़ने की कोशिश करता है, वह मतिभ्रम का शिकार होने लगता है. उसे आगे का रास्ता दिखाई नहीं देता. उसके अंग एक-एक करके निष्क्रिय होने लगते हैं. चढ़ाई करने वाले व्यक्ति का अचानक हृदय परिवर्तन होने लगता है.
पर्वत की बेहद दुरुह आकृति
कुछ पर्वतारोहियों का कहना है कि कैलाश पर्वत पर बहुत ज्यादा रेडियो एक्टिव है. ऊपर चढ़ने पर कोई भी इंस्ट्रूमेंट काम करना बंद कर देते हैं. इसके अलावा और भी कई ऐसी कठिनाइयां हैं, जिसकी वजह से कैलाश पर चढ़ना मुश्किल है. करीब 29000 फुट पर होने के बावजूद एवरेस्ट पर चढ़ना तुलनात्मक रूप से आसान है. जबकि कैलाश पर्वत पर बेहद मुश्किल है. इस पर्वत का निर्माण चारों ओर खड़ी चट्टानों और हिमखंडों से हुआ है, जिसके चलते इस पर चढ़ने का कोई रास्ता ही नजर नहीं आता. इस पर्वत का ढलान 65 डिग्री से ज़्यादा है, जो इस पर चढ़ाई के लिए दुरूह बना देता है.