Science News In Hindi: वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग के दौरान, धातु को खुद-ब-खुद ठीक होते हुए देखा है. अगर इस प्रक्रिया को पूरी तरह से समझा और नियंत्रित किया जा सके, तो इंजीनियरिंग के एक नए युग की शुरुआत हो सकती है. पिछले साल छपी एक स्टडी में, सैंडिया नेशनल लेबोरेटरीज और टेक्सास A&M यूनिवर्सिटी की एक टीम धातु के लचीलेपन का परीक्षण कर रही थी. इसमें धातु के सिरों को हर सेकंड 200 बार खींचने के लिए एक विशेष ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप तकनीक का उपयोग किया गया था. फिर उन्होंने वैक्यूम में सस्पेंडेड प्लैटिनम के 40-नैनोमीटर मोटे टुकड़े में बेहद छोटे पैमाने पर सेल्फी-हीलिंग को देखा.


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इस तरह के तनाव से पैदा हुई दरारों को फेटीग डैमेज के रूप में जाना जाता है. बार-बार तनाव और गति के कारण सूक्ष्म दरारें पड़ जाती हैं, जिसके कारण आखिरकार मशीनें या संरचनाएं टूट जाती हैं. आश्चर्यजनक रूप से, लगभग 40 मिनट के बाद, प्लैटिनम में दरार फिर से जुड़ने लगी और खुद ही ठीक होने लगी. सैंडिया नेशनल लेबोरेटरीज के मैटेरियल्स साइंटिस्ट ब्रैड बॉयस ने स्टडी के नतीजों की घोषणा पर कहा, 'इसे पहली बार देखना बहुत ही आश्चर्यजनक था.'


कैसे खुद को ठीक कर सकती हैं धातुएं?


बॉयस ने कहा, 'हम निश्चित रूप से इसकी तलाश नहीं कर रहे थे. हमने जो पुष्टि की है वह यह है कि धातुओं में खुद को ठीक करने की अपनी अंतर्निहित, प्राकृतिक क्षमता होती है, कम से कम नैनोस्केल पर फेटीग डैमेज के मामले में.' हम अभी तक नहीं जानते कि यह कैसे हो रहा है या हम इसका इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं.


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यह घटना अभूतपूर्व है, लेकिन यह पूरी तरह से अप्रत्याशित नहीं है. 2013 में, टेक्सास A&M यूनिवर्सिटी के मैटेरियल साइंटिस्ट माइकल डेमकोविज ने एक स्टडी में भविष्यवाणी की थी कि इस तरह की नैनोक्रैक हीलिंग हो सकती है. यह हीलिंग धातुओं के अंदर मौजूद छोटे क्रिस्टलीय कणों द्वारा तनाव के जवाब में अपनी सीमाओं को अनिवार्य रूप से बदलने के कारण होती है.


डेमकोविज ने इस स्टडी पर भी काम किया. उन्होंने अपडेट किए गए कंप्यूटर मॉडल का उपयोग करके यह दिखाने के लिए किया कि नैनोस्केल पर धातु के सेल्फ-हीलिंग व्यवहार के बारे में उनके दशक पुराने सिद्धांत, यहां जो जो हो रहा था, उससे मेल खाते हैं.


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धातु के भीतर रिपेयरिंग की प्रक्रिया कमरे के तापमान पर हुई, यह इस रिसर्च का एक और आशाजनक पहलू है. धातु को अपना रूप बदलने के लिए आमतौर पर बहुत अधिक गर्मी की जरूरत होती है, लेकिन प्रयोग निर्वात में किया गया था. अभी यह देखना बाकी है कि क्या पारंपरिक धातुओं में एक सामान्य वातावरण में यही प्रक्रिया होगी.


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