वाशिंगटनः धरती पर कई प्रजाति समय के साथ समाप्त हो गए. हालांकि, नई प्रजाति का जन्म भी हुआ. जो प्रजाति धरती से विलुप्त हो गए, उनके पीछे की वजह उल्कापिंडों का धरती पर गिरना था. इनकी वजह से लाखों साल पहले पृथ्वी से डायनासोर का अंत हो गया था. हालांकि, इंसान को अभी तक इस तरह की घटना का सामना नहीं करना पड़ा है. वहीं, शोधकर्ताओं का मानना है कि इस तरह की घटना धरती पर कहर ढा सकती है और मानव संस्कृति खत्म हो सकती है.


1500 साल पहले अमेरिका में गिरा था धूमकेतु का मलबा


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हमारी सहयोगी वेबसाइट विऑन में छपी खबर के अनुसार, माना जाता है कि पूर्वी अमेरिका में 1500 साल पहले एक ऐसी ही खगोलीय घटना हुई थी. हालांकि, वह एस्ट्रायड नहीं, बल्कि एक कॉमेट था, जिसने वहां की एक स्थानीय संस्कृति का अंत कर दिया. इस दौरान वहां 9200 वर्ग मील इलाके में एक कॉमेट का मलबा गिरा, जिससे क्षेत्र में आग लग गई. शोधकर्ता पूर्वी अमेरिका में होपवेल कट्योर (स्थानीय संस्कृति) के अंत के कारणों का अध्ययन कर रहे हैं. हालांकि, इस संस्कृति के खत्म होने के पीछे युद्ध और जलवायु कारकों को कारण माना गया है, लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि हो सकता है कि पृथ्वी के नजदीक हुए कॉमेट ब्लास्ट की इसमें बड़ी भूमिका रही हो.


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यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किया अध्ययन 


शोधकर्ताओं ने 11 होपवेल पुरातात्विक स्थलों पर असामान्य मात्रा में इरिडियम और प्लेटिनम पाया. ये तत्व उल्कापिंड के टुकड़ों के कहानी के संकेत हैं. यहां जमीन पर उल्कापिंड के अवशेष पर चारकोल की परत तीव्र गर्मी की तरफ इशारा करती है. सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की टीम ने अनुमान लगाया है कि पृथ्वी के निकट हुए धूमकेतु विस्फोट के मलबे से इन जनजातियों के अस्तित्व पर असर पड़ा हो. इसका उल्लेख वहां की लोक कथाओं में भी मिलता है.


लोककथाओं में भी मिलता है जिक्र


जनजातियों के लोककथाओं के अनुसार, उस दौरान आकाश में एक विशाल सर्प दिखा था. वह धूमकेतु हो सकता है, क्योंकि कॉमेट की पूंछ सी दिखाई देती है. हालांकि, उस समय के लोगों के पास कॉमेट नामक शब्द नहीं था. वहीं, कुछ अन्य जनजातियों के किस्सों में एक 'स्काई पैंथर' की बात की जाती है, जो जंगलों को फाड़ने की शक्ति रखता है. यह बात शायद यह हवाई विस्फोट के कारण फैली आग के संदर्भ में है. वहीं, शोधकर्ताओं का कहना है कि एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है. 


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