नई दिल्ली: कनाडा के इंजीनियरों के अनुसार, मंगल पर पहुंचने के लिए लेजर आधारित तकनीक लाल ग्रह तक पहुंचने में लगने वाले समय को काफी कम कर सकती है. नासा के अनुमानों के अनुसार, मौजूदा हालातों में किसी व्यक्ति को मंगल पर पहुंचने में लगभग 500 दिन लगेंगे. 


"लेजर-थर्मल रॉकेट" तकनीक बनाने का दावा 


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हमारी सहयोगी वेबसाइट WION की रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि कनाडा में मैकगिल विश्वविद्यालय के इंजीनियरों ने एक "लेजर-थर्मल रॉकेट" तकनीक बनाने का दावा किया है जो हाइड्रोजन ईंधन को गर्म करने के लिए लेजर का उपयोग करती है और यात्रा के समय को कम करती हैं. 


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विशाल लेजरों का करते हैं उपयोग 


इसे "निर्देशित-ऊर्जा रॉकेट" कहा जाता है क्योंकि यह एक अंतरिक्ष यान पर सवार फोटोवोल्टिक पैनलों को शक्ति संचारित करने के लिए पृथ्वी से शूट किए गए विशाल लेजरों का उपयोग करता है, जो बिजली और पॉवर उत्पन्न करते हैं." 


परमाणु-संचालित रॉकेटों के साथ ही संभव था पहले 


पहले छह सप्ताह में मंगल पर पहुंचना केवल परमाणु-संचालित रॉकेटों के साथ ही कल्पना योग्य माना जाता था, जो अधिक विकिरण खतरे पैदा करते हैं. लेकिन अब ये दूसरी तकनीक से संभव है. 


चीन ने लाल ग्रह पर मनुष्यों को बसाने की बनाई है योजना


अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी 2030 के दशक के मध्य में मंगल ग्रह पर एक दल भेजना चाहती है. उसी समय के आसपास चीन ने लाल ग्रह पर मनुष्यों को बसाने की योजना बनाई है. 


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