भारत अपने दोनों तरफ ऐसे देशों से घिरा हुआ है, जो शायद ही उसे लेकर कभी साजिश करने से चूकते हों. ऐसे में आत्मनिर्भर भारत के तहत अब न सिर्फ तीनों सेनाओं को आधुनिक बनाया जा रहा है बल्कि टेक्नोलॉजी के लेवल पर भी भारत आगे बढ़ रहा है. 


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पहले भारत दुनिया के बाकी देशों से हथियार खरीदा करता था. लेकिन वक्त बदला है और भारत खुद के दम पर न सिर्फ हथियार बना रहा है बल्कि दूसरे देशों को सप्लाई भी कर रहा है. किसी जमाने में अंतरिक्ष और रक्षा जैसे सेक्टर्स प्राइवेट प्लेयर्स के लिए खुले नहीं थे. लेकिन अब लोकल प्लेयर्स भी खुलकर मार्केट में सामने आ रहे हैं. बीते कुछ वर्षों में ड्रोन का चलन तेजी से बढ़ा है. चाहे जंग का मैदान में हो या फिर जासूसी या फिर शोज.  


मोदी सरकार जब दूसरे कार्यकाल में वापस आई तो साल 2021 में उसने ड्रोन और उसके पार्ट्स स्थानीय स्तर पर बनाने के लिए 120 करोड़ रुपये की प्रोडक्शन-लिंक्ड इंन्सेंटिव स्कीम शुरू की थी. सरकार को उम्मीद थी कि अगले तीन वर्षों में ड्रोन मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर 5000 करोड़ का निवेश जुटाएगा और इस समयावधि में 30 हजार करोड़ का रेवेन्यू जनरेट होगा. आज हम आपको कुछ शानदार ड्रोन्स और अंडरवाटर नेगिवेशन सिस्टम के बारे में बताते हैं. 


एक्वानेव


एक्वानेव एक अंडरवाटर नेविगेशन सिस्टम है जिसके जरिए गहरे समंदर में जाकर AUV मुश्किल मिशन को पूरा कर पाते हैं. एक्वानेव के साथ, AUV खुद से नेविगेट करने के अलावा सटीक वेपॉइंट नेविगेशन और खराब मौसम की स्थिति में कोर्स करेक्शन कर सकते हैं. एक्वानेव में कई शानदार खासियतें हैं जैसे मिशन सिमुलेशन के लिए वर्चुअल टेस्ट बेड, अहम हार्डवेयर की निगरानी के लिए बिल्ट-इन टेस्ट, और रियल टाइम स्टेटस अपडेट और डेटा विज़ुअलाइजेशन. 


एयरोस्टेटिक ड्रोन


एयरोस्टेटिक ड्रोन एक शानदार तकनीक है जो अपनी ऊंचाई उछाल से हासिल करते हैं. यही खासियत उनको पारंपरिक ड्रोन से अलग बनाती है. पारंपरिक मल्टीरोटर ड्रोन कुछ मिनटों तक हवा में रह सकते हैं जबकि एयरोस्टेटिक ड्रोन कई घंटों तक हवा में रह सकते हैं. उड़ते वक्त भी इनकी आवाज बेहद कम होती है और इनका कार्बन फुटप्रिंट बहुत कम है. एयरबोटिक्स टेक्नोलॉजी ने दो एयरोस्टेटिक ड्रोन, एयूएम और एयरविज़न बनाए हैं. इन दोनों ड्रोन में अधिकतम पेलोड के साथ 3 घंटे की ज्यादा सहन क्षमता है, जिसे 24 घंटे तक बढ़ाया जा सकता है.


साल 2022 में आई एयरबोटिक्स टेक्नोलॉजी ने इस ड्रोन्स और AUV सिस्टम को बनाया है. हाल ही में इस कंपनी ने डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) के Countermeasures for Drones and Swarm of Drones कैटेगरी के डेयर टू ड्रीम कॉन्टेस्ट जीता है. गुरुग्राम की इस कंपनी ने सिविल और डिफेंस सेक्टर में हाई परफॉर्मेंस और विश्वसनीय ड्रोन्स बनाए हैं और कम ही समय में अपने इनोवेशन से खुद को मार्केट प्लेयर के तौर पर साबित किया है. 


कंपनी के सीईओ और डायरेक्टर और भारतीय सेना में कर्नल रह चुके राजेश गांधी ने कहा,  अगले 1-2 साल में कंपनी का फोकस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ड्रोन शो करने और मानवरहित उपकरणों को बनाने पर रहेगा.


कंपनी ने अपने स्वॉर्मिंग ड्रोनों की फॉर्मेशन फ्लाइट के लिए ट्रैजेक्टरी प्लानिंग एल्गोरिदम में भी शानदार तरक्की की है और अपने स्वदेशी रूप से डिजाइन हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के जरिए 5 सेमी की सटीकता हासिल की है. अपनी क्षमता साबित करते हुए एयरबोटिक्स टेक्नोलॉजी ने दिखाया कि ड्रोन्स को उनकी तय सीमाओं से भी आगे ले जाया जा सकता है. भारतीय सेना की II कॉर्प्स के सामने अंबाला में कंपनी ने अपना पहला ड्रोन शो आयोजित किया था. तब से अब तक राष्ट्रीय और सांस्कृतिक मौकों पर पूरे भारत में 30 से ज्यादा ड्रोन शो कराए जा चुके हैं.



नेवी को मिलेंगे AUV


डिफेंस इनोवेशन ऑर्गनाइजेशन iDEX स्कीम के तहत ऑटोनॉमस अंडरवाटर व्हीकल्स (AUV's) के लिए अंडरवाटर नेगिवेशन सिस्टम भी बनाए गए हैं और जल्द ही इनको भारतीय नेवी में शामिल किया जाएगा. पूर्वोत्तर भारत के घने जंगलों में निगरानी और जंगली जानवरों पर नजर रखने के लिए ज्यादा क्षमता वाले एयरोस्टैटिक ड्रोन्स बनाए गए हैं, जो भारत में अपने स्तर पर पहले हैं.