लंदन: लोगों को भले ही जीवन में कभी बोलने का मौका नहीं मिले लेकिन वे अपने जन्म की भाषा को याद रखते हैं। एक शोध में यह बात सामने आयी है।


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शोधकर्ताओं का कहना है कि जीवन के बेहद शुरुआती दिनों में सीखी गयी भाषा अवचेतन मस्तिष्क में दर्ज हो जाती है भले ही चेतन मस्तिष्क को उसे कभी बोलने का मौका नहीं मिले। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि अवचेतन मस्तिष्क के इस ज्ञान को लुप्त हो चुकी भाषाओं के ध्वनियों के उच्चारण से उन्हें सीखने की गति को तेज किया जा सकता है।


नीदरलैंड में रेडबोड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पाया कि गोद लिए जाने के दशकों बाद कोरियाई लोग कोरियाई भाषा को सीखने में अधिक तेज रहे। लेकिन कक्षाओं में कोरियाई भाषा सीखने वाले अन्य लोगों की गति धीमी रही। शोधकर्ताओं ने पाया कि गोद लिए जाने के समय ये कोरियाई बच्चे कुछ ही महीनों के थे।