Science News in Hindi: वैज्ञानिक दशकों तक यह मानते रहे कि उन्हें अरुण ग्रह (Uranus) के बारे में काफी कुछ पता है. ऐसा होता भी क्यों न! आखिर 1986 में NASA का Voyager 2 यूरेनस के पास से गुजरते हुए उसके बारे में बहुत सारी जानकारी इकट्ठा कर रहा था. उसने जो तस्वीरें खींची और जो डेटा भेजा, वह यूरेनस के बारे में हमारी समझ का आधार बना. Voyager 2 के डेटा से पता चला कि यूरेनस का मैग्नेटोस्फीयर अनोखा था. वैज्ञानिक तभी से ग्रह के इतिहास के बारे में जानने में लगे हैं. हालांकि, Nature Astronomy में छपे नए रिसर्च पेपर के अनुसार, जब वॉयेजर 2 यूरेनस के पास से गुजरा, उस समय सौर हवाओं के चलते ग्रह का चुंबकीय क्षेत्र सौर हवा के कारण असामान्य रूप से दबा हुआ था.


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यूरेनस का रहस्य


नया एनालिसिस NASA की जेट प्रपल्शन लैबोरेटरी में स्पेस प्लाज्मा फिजिसिस्ट, जेमी जेसिंस्की और उनकी टीम ने किया है. उन्होंने पाया कि Voyager 2 का फ्लाईबाई शायद उस दौरान हुआ था, जब सौर गतिविधि यूरेनस के साथ छेड़छाड़ कर रही थी. इससे Voyager 2 द्वारा जुटाए गए डेटा में गड़बड़ी आ गई. टीम ने रिसर्च के दौरान पाया कि फ्लाईबाई होने से ठीक पहले गतिशील सौर वायु दबाव 20 गुना बढ़ गया था.


1986 में Voyager 2 द्वारा ली गई यूरेनस की तस्वीर (Voyager 2, NASA, Erich Karkoschka/U. Arizona)

इसका मतलब है कि सूर्य से निकलने वाले कणों की धाराएं फ्लाईबाई के दौरान बढ़ गई थीं. इस वजह से यूरेनस के आसपास एक ऐसा वातावरण बना जो 5 प्रतिशत से भी कम समय तक मौजूद रहता है. रिसर्चर्स के मुताबिक, 'वॉयेजर 2 ने यूरेनस के चुंबकीय क्षेत्र को असामान्य, संकुचित अवस्था में देखा.'


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नई स्टडी से क्या पता चला


जेसिंस्की और उनकी टीम ने पाया कि यूरेनस का चुंबकीय क्षेत्र वास्तव में अन्य गैसीय ग्रहों बृहस्पति, शनि और नेपच्यून के जैसा है. उनके एनालिसिस के मुताबिक, यह संभव है कि यूरेनस के चंद्रमा टाइटेनिया और ओबेरॉन चुंबकीय क्षेत्र के बाहर परिक्रमा करते हों, जिससे वैज्ञानिकों को यह देखने में मदद मिलेगी कि क्या चंद्रमाओं पर महासागर हैं.


जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से ली गई यूरेनस, उसके रिंग्स और कुछ चंद्रमाओं की फोटो  (NASA, ESA, CSA, STScI)

Voyager 2 इकलौता स्पेसक्राफ्ट है जो यूरेनस और नेपच्यून पर गया है. इसे 1977 में लॉन्च किया गया था और यह वर्तमान में पृथ्वी से 20 बिलियन किलोमीटर से अधिक दूर है.


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