नई दिल्ली: तीन बार के ओलंपिक विजेता मेजर ध्यान चंद (Dhyan Chand) के बेटे अशोक कुमार ने कहा है कि अवार्ड में राजनीतिक दखल ने उनके पिता को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान-भारत रत्न से महरूम रखा है.


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भारतीय हॉकी टीम के कप्तान रह चुके अशोक ने गुरुवार को खेल दिवस के मौके पर आईएएनएस से कहा, "पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दादा (ध्यानचंद) को भारत रत्ने देने की फाइल पर हस्ताक्षर कर दिए थे और तब के खेल मंत्री को इस बारे में बता दिया था." उन्होंने कहा, "लेकिन बाद में इस फैसले को खारिज कर दिया गया. ऐसा करके सरकार ने न सिर्फ हमें अपमानित किया है बल्कि राष्ट्र के एक बेहतरीन खिलाड़ी का भी अपमान किया."


ध्यान चंद के जन्म दिवस 29 अगस्त को खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है. उनके बेटे ने कहा, "अवार्ड मांगे नहीं जाते. अवार्ड की चाह भी नहीं होती. अवार्ड की भीख नहीं मांगी जाती. जो हकदार हैं, सरकार उन्हें अवार्ड देती है."


विश्व विजेता और ओलंपिक पदक विजेता ने कहा, "अब यह सरकार पर है कि इस पर फैसले और देखे कि ध्यान चंद को भारत रत्न मिलना चाहिए या नहीं."


आजादी के बाद विश्व के सर्वश्रेष्ठ ड्रिब्लरों में गिने जाने वाले अशोक ने कहा कि देश को ध्यान चंद का योगदान नहीं भूलना चाहिए. उन्होंने कहा, "ब्रिटिश साम्राज्य के समय उनमें इतनी हिम्मत थी कि वह अपने सूटकेस में तिरंगे को लेकर बर्लिन ओलंपिक-1936 खेलने गए थे."


उन्होंने कहा, "जब भारत ने फाइनल में जर्मनी को हराया था तब दादा ने भारत के झंडे (उस समय भारतीय झंडे में अशोक चक्र की जगह चरखा होता था.) को लहराया."


अपने पिता कि सरलता के बारे में बात करते हुए अशोक ने कहा, "70 के दशक के मध्य में दादा को झांसी में एक कार्यक्रम में बुलाया गया था. आयोजकों ने वाहन भेजने में देरी कर दी तो दादा ने अपने पड़ोसी से उन्हें वहां छोड़ कर आने के लिए कहा."


उन्होंने कहा, "पड़ोसी के पास पुरानी साइकिल थी और दादा उसके साथ समय पर कार्यक्रम में पहुंच गए. आयोजकों को इस बात के लिए शर्मिदगी हुई लेकिन उनका हैरान होना अभी और बाकी था. दादा ने कहा कि वह अपने दोस्त के साथ साइकल पर आए हैं और उसी के साथ वापस जाएंगे. यह बताता है कि वह कितने सरल और किसी भी तरह की मांग न करने वाले थे."


अशोक ने कहा कि उनके पिता के खेल को उस समय से बॉलीवुड स्टार के.एल. सहगल, पृथ्वी राज कपूर, अशोक कुमार जैसे दिग्गज लोग देखा करते थे. उन्होंने कहा, "1930 के दशक के आखिरी में, शायद 1937 में, मेरे पिता उस समय गांधी के बाद यूरोप में दूसरे सबसे चर्चित भारतीय थे. वह बॉम्बे कप में हिस्सा ले रहे थे. वह अपने मशहूर क्लब झांसी हीरोज का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. एक मैच में पृथ्वीराज कपूर और के.एल. सहगल बैठे थे. हाफ टाइम के समय सहगल ने मेरे पिता से कहा कि उनकी टीम झांसी हीरोज अपने स्तर के मुताबिक नहीं खेल रही और 1-2 से पीछे है. सहगल ने कहा कि अगर मेरे पिता गोल करते हैं तो वह हर गोल पर उनके लिए गाना गाएंगे. दादा ने 35 मिनट में नौ गोल किए."


उन्होंने कहा, "अगले दिन सहगल ने दादा और उनकी पूरी टीम को डिनर पार्टी में बुलाने के लिए अपनी कार भेजी. डिनर के बाद सहगल ने दादा को महंगी घड़ी दी. वह घड़ी मेरे पिता ने जीवन भर अपनी कलाई पर पहनी."