नई दिल्ली: उसेन सेंट लियो बोल्ट, सिर्फ एक खिलाड़ी का नाम नहीं. यह नाम खेलों की दुनिया में एथलेटिक्स और खासकर फर्राटा दौड़ के लिए पर्यायवाची बन गया है. बोल्ट ने अपनी असाधारण उपलब्धियों के जरिए साबित किया कि मेहनत, लगन और समर्पण के दम पर सफलता के अंतिम छोर तक पहुंचा जा सकता है. ओलम्पिक खेलों में आठ स्वर्ण और विश्व चैम्पियनशिप में 11 स्वर्ण सहित कुल 14 पदक. 100 मीटर, 200 मीटर और चार गुणा 100 मीटर रिले रेस में विश्व रिकॉर्ड. 2008 से 2016 तक 100 तथा 200 मीटर का ओलम्पिक चैम्पियन. यह परिचय है बोल्ट का. साथ ही यह परिचय है उस खिलाड़ी का, जिसने अपने दम पर एथलेटिक्स की लोकप्रियता को शिखर तक पहुंचा दिया और आठ साल के अंतराल में एकल उपलब्धियों के दम पर विश्व का सर्वकालिक महान एथलीट बन बैठा.


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अब बोल्ट ट्रैक पर नजर नहीं आएंगे. रियो ओलम्पिक में 100 तथा 200 मीटर का स्वर्ण अपने नाम करने के बाद बोल्ट ने कह दिया था कि लंदन में होने वाली विश्व चैम्पियनशिप उनकी आखिरी प्रतिस्पर्धी प्रतियोगिता होगी. इससे पहले बोल्ट जमैका में राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में दौड़े और विजेता बने. 2013 के बाद बोल्ट को पहली बार लंदन में 100 मीटर में पहली हार मिली. अमेरिका के जस्टिन गाटलिन ने उन्हें हराया. बोल्ट तीसरे स्थान पर रहे. इसके बावजूद उन्होंने अपनी सफलता का जश्न मनाया.


बोल्ट की शख्सियत इतनी बड़ी है कि रेस के बाद गाटलिन ने झुककर इस चैम्पियन को नमन किया. बोल्ट 200 मीटर में नहीं दौड़े. यह उनकी पसंदीदा स्पर्धा रही है लेकिन इसके बावजूद वह नहीं दौड़े क्योंकि उन्हें अच्छी तरह अहसास हो गया था कि उनका शरीर अब साथ नहीं दे रहा है. चार गुणा 100 मीटर रिले में अपने देश को स्वर्ण दिलाने के लिए वह अंतिम बार शनिवार (12 अगस्त) को दौड़े, लेकिन चोटिल हो गए. उनका गम उनकी आंसुओं के रूप में दुनिया ने देखा. एक चैम्पियन खिलाड़ी की दुखद: विदाई से पूरा खेल जगत निराश था लेकिन साथ ही वह इस बात को लेकर खुश था कि बोल्ट ने डोपिंग जैसी बीमारी को अपने करीब नहीं फटकने दिया और पाक-साफ करते हुए करियर की शुरुआत से अंत तक दौड़े. बोल्ट ने दिखाया कि मेहनत के दम पर वह सबकुछ हासिल किया जा सकता है. यही कारण है कि बोल्ट ने बार-बार खुद को 'महानतम' करार दिया.


इसके लिए किसी ने यह नहीं कहा कि बोल्ट दम्भी हैं. कारण था कि बोल्ट, गाटलिन जैसे धावकों से बिल्कुल अलग हैं जो प्रतिबंधित दवाओं के सेवन के आरोप में प्रतिबंध झेलने के बाद वापसी करते हुए विश्व चैम्पियन बने, लेकिन दुनिया भर में एक बड़े तबके ने गाटलिन को असल विश्व चैम्पियन मानने से इंकार कर दिया. उनकी नजर में बोल्ट ही असल विश्व चैम्पियन हैं और रहेंगे. सोशल मीडिया इसका गवाह है. बोल्ट ने एथलेटिक्स के लिए बहुत बड़ा योगदान दिया है. उन्हें देखकर एक पूरी पीढ़ी प्रभावित हुई है और यही कारण है कि एथलेटिक्स में कई ऐसे सितारे हैं, जो बोल्ट के नक्शे-कदम पर चलने के लिए तैयार हैं.


डोपिंग के कारण एथलेटिक्स, खासकर फर्राटा दौड़ ने अपनी साख गंवाई थी, लेकिन बोल्ट ने उस साख को फिर से स्थापित किया और यही कारण है कि आज एथलेटिक्स की प्रयोगिताओं के दौरान स्टेडियम खचाखच भरे रहते हैं. बोल्ट के बाद फर्राटा का भविष्य कैसा होगा, यह बता पाना अभी जल्दबाजी होगी लेकिन इस महान खिलाड़ी को देखकर जो पीढ़ी प्रभावित हुई है और ट्रैक पर पहुंची है, वह निश्चित तौर पर खुद उपलब्धियों की चाह में डोपिंग जैसी गंदी बीमारी की चपेट में नहीं आने देगी. बोल्ट न सिर्फ एक एथलीट बल्कि एथलेटिक्स की दुनिया में नैतिकता के प्रतीक के रूप में उनकी आंखों के सामने आते रहेंगे.