Ajay Rai: PM मोदी के खिलाफ 2 बार चुनाव हारने वाले नेता पर कांग्रेस का बड़ा दांव, 2024 में कितना होगा फायदा
Ajay Rai Uttar Pradesh Congress Chief: देश के सबसे बड़े सूबों में से एक उत्तर प्रदेश की कमान अब अजय राय के हाथ में है. कांग्रेस आलाकमान के इस फैसले से क्या पार्टी को आम चुनाव 2024 में फायदा होगा या यह सिर्फ चेहरा बदलने की कवायद भर है.
Ajay Rai UP Congress Chief News: यूपी में जिस समाज को देखने के लिए सुक्ष्मदर्शी और दूरबीन की जरूरत पड़ती है उसके हाथ में कांग्रेस आलाकमान ने पार्टी की कमान सौंपी है. बात यहां अजय राय की है जिन्हे पार्टी ने यूपी कांग्रेस की कमान सौंपी है. सियासत, क्रिकेट मैच की तरह है जहां हर मौके को भुनाने या गंवाने की संभावना बनी रहती है. उन्हीं संभावनाओं को टटोलते हुए कांग्रेस ने बड़ा फैसला किया लेकिन लाख टके का सवाल यह कि क्या अजय राय जमीनी स्तर पर पार्टी में जान फूंक सकेंगे. सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि क्या है. वाराणसी के रहने वाले अजय राय की पहचान एक नेता के साथ साथ बाहुबली की है.
अपने दम पर जीत दर्ज करने का इतिहास
अजय राय बारे में कहा जाता है कि यूपी विधानसभा चुनावों पार्टी से अधिक अपनी शख्सियत के दम पर जीत हासिल करते रहे हैं. यूपी की सियासत में उनका कद तब बढ़ा जब उन्होंने मशहूर वामपंथी नेका ऊदल को कोलअसला विधानसभा(अब पिंडरा) से पराजित किया था हालांकि 2014, 2019 में वो वाराणसी संसदीय सीट से पीएम मोदी के हाथों पराजित हो गए थे. अगर सियासी लड़ाई में जीत ही किसी नेता की कामयाबी का पैमाना हो तो अजय राय के माथे पर हार का टैग लगा है तो कांग्रेस आलाकमान को उनके हाथ में यूपी कांग्रेस का भविष्य क्यों दिख रहा है. यह बड़ा सवाल है. इस सवाल के जवाब में जानकारों की राय अलग अलग है.
जानकारों की राय
जानकार बताते हैं कि अगर कांग्रेस की सियासत को देखें तो उसे सर्वसमाज का समर्थन मिलता रहा लेकिन कांग्रेस के खुद के फैसलों ने अलग अलग समय पर ना सिर्फ पार्टी के अंदर क्षत्रपों को जन्म दिया बल्कि कई और राजनीतिक चेहरे सियासत के अहम हिस्सा बन गए. यूपी में जिस गति से गैर कांग्रेसी दलों का उभार हुआ उसका सीधा असर पार्टी पर पड़ा. 1985 तक यूपी की राजनीति में जिस ग्रैंड ओल्डमैन पार्टी का बोलबाला हुआ करता था वो अब अपने अस्तित्व को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रही थी. समय के साथ साथ यूपी की राजनीतिक जमीन पर कांग्रेस फसल बोने में उस हद तक कामयाब नहीं हुई जिसका नतीजा पार्टी की सीटों में देखी जा सकती है. 2014 के आम चुनाव के बाद यूपी में कांग्रेस ने कई प्रयोग किए लेकिन उसका फायदा नजर नहीं आया. पार्टी को बड़ा झटका तब लगा जब राहुल गांधी अपनी पारंपरिक अमेठी सीट को नहीं बचा सके.
कोर वोटर्स को संदेश देने की कवायद
अजय राय का चयन अगर जातीय समीकरण के हिसाब से देखें तो यह बात सच है कि उसमें कुछ खास फिट नहीं बैठते हैं. वो जिस भूमिहार समाज से आते है उसकी संख्या ना सिर्फ कम है बल्कि प्रदेश के कुछ खास हिस्सों तक ही सीमित है. ऐसी सूरत में क्या कांग्रेस ने रिस्क लिया है, इस सवाल का जवाब आप ऐसे समझ सकते हैं. कांग्रेस के सामने इस समय सबसे बड़ी चुनौती जमीनी स्तर पर कांग्रेस को खड़ा करना है. मृत हो चुके संगठन में जान डालनी है. ऐसे में एक ऐसे नेता की जरूरत थी जो युवा और जुझारू हो. जहां तक अजय राय की बात है पीएम मोदी के खिलाफ दो बार चुनावी समर में हिस्सा लेने के बाद उनकी पहचान प्रदेश के हर हिस्से में है. इसके साथ ही अगर समाजवादी पार्टी, बीएसपी की करें तो उन्होंने अपनी राजनीति का मूल आधार पिछड़े और दलित समाज को बनाया है. इस तरह के हालात में कांग्रेस ने अपने पारंपरिक वोटर्स को यह संदेश देने की कोशिश की है कि आप के हित के बारे में सिर्फ वो ही फिक्रमंद हैं.