वॉशिंगटन : वैज्ञानिकों ने फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर फर्जी खबरों पर नजर रखने के लिए एक वेब आधारित सॉफ्टवेयर विकसित किया है. अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मिशीगन के अनुसंधानकर्ताओं द्वारा विकसित यह टूल ‘इफ्फी कोशेंट’ नाम के प्लेटफॉर्म हेल्थ मेट्रिक का इस्तेमाल करता है जो दो बाहरी निकायों ‘न्यूजव्हिप’ और ‘मीडिया बायस/फैक्ट चैकर’ के माध्यम से फेक न्यूज को खोजने वाली क्रिया को अंजाम दे सकता है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

हजारों साइटों से यूआरएल इकट्ठा करती है कंपनी
न्यूजव्हिप एक सोशल मीडिया ट्रैकिंग कंपनी है जो हर रोज हजारों साइटों से यूआरएल इकट्ठा करती है और फिर फेसबुक, ट्विटर से जुड़ी इन साइटों से सूचना एकत्रित करती है. इफ्फी कोशेंट दोनों सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर 5000 सबसे शीर्ष लोकप्रिय यूआरएल के लिए न्यूजव्हिप से जानकारी हासिल करता है.


इसके बाद यह सॉफ्टवेयर पता लगाता है कि ये डोमेन स्वतंत्र वेबसाइट मीडिया बायस/फैक्ट चैक द्वारा चिह्नित किये गये हैं या नहीं. मीडिया बायस/फैक्ट चैक कई स्रोतों की विश्वसनीयता और उनकी तटस्थता के आधार पर उनका वर्गीकरण करती है.


2017 में फेसबुक ने शुरू किया था अभियान
Facebook ने फेक न्यूज़ और झूठी सूचनाओं पर लगाम लगाने के लिए एक पहल शुरू की थी. FB ने ऐसे पेज की कमाई रोकने के लिए विज्ञापन देना बंद करने का फैसला किया है, जो लगातार फर्जी खबरें शेयर करते हैं. वेबसाइट 'टेकक्रंच' की रिपोर्ट के मुताबिक,  सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जैसे ही किसी खबर को विवादित खबर के तौर पर पहचान की जाएगी, वैसे ही खबर के लिंक को फेसबुक के दिए जाने वाले विज्ञापन मिलने बंद हो जाएंगे.


फेसबुक के प्रोडक्ट डायरेक्टर रॉब लीथर्न ने कहा था कि फेसबुक इससे तीन तरीके से निपटने की कोशिश कर रहा है. पहला फर्जी खबरें पोस्ट करने वालों का आर्थिक लाभ खत्म कर, दूसरा इस तरह की फर्जी खबरों के फैलने की स्पीड धीमी होगी और तीसरा इस तरह की फर्जी खबरें सामने आने पर व्यक्ति को उससे जुड़ी और खबरें/सूचनाएं प्रदान करा जा सके. फेसबुक ने कहा है कि फर्जी खबरें प्रसारित करने को लेकर विज्ञापन देने संबंधी यह प्रतिबंध स्थायी नहीं है.