Dusshera: पुतला फूंकने के बजाय करते हैं रावण की आरती, महाराष्ट्र के इस गांव में विचित्र तरीके से मनाते हैं दशहरा
Vijaydashmi: जब पूरे देश में रावण पर भगवान राम की विजय की खुशी मनाई जाती है और राक्षसराज के पुतले जलाए जाते हैं तो वहीं महाराष्ट्र का एक गांव ऐसा भी है जहां दशहरा थोड़ा अलग अंदाज में होता है. यहां रावण की पूजा-आरती की जाती है.
Dusshera Celebration: हमारे देश में हर त्योहार बड़ी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है. हर जगह त्योहार मनाने की अलग रीति और अलग नियम है. बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा भी पूरे देश में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. दशहरा पर हर जगह रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं. महाराष्ट्र में एक जगह दशहरे का त्योहार विचित्र तरीके से मनाया जाता है. यहां रावण दहन के बजाय रावण की आरती की जाती है. आइए जानते हैं इसके पीछे की वजह क्या है.
कहां करते हैं रावण की पूजा
विजयदशमी के दिन रावण की पूजा करने की परंपरा महाराष्ट्र के अकोला में है. अकोला जिले के एक छोटे से गांव संगोला में रावण को महात्मा मानकर उसे पूजा जाता है और दशहरे के दिन महाआरती का उत्सव मनाया जाता है. गांव के बीच में रावण की एक लंबी मूर्ति है. ये मूर्ति काले पत्थर की बनी हुई है. रावण की मूर्ति के 10 सिर हैं. दशहरे का उत्सव यहां धूमधाम से मनाया जाता है.
रावण को मानते हैं विद्वान
यहां के लोगों का मानना है कि रावण के आशीर्वाद से ही गांव में खुशहाली है. लंका नरेश की कृपा की वजह से ही यहां के लोगों की आजीविका चल रही है और जिंदगी खुशहाल है. संगोला के लोग रावण को विद्वान मानते हैं. वे महात्मा मानकर ही लंकापति की पूजा करते हैं. लोगों का मानना है कि रावण विद्वान था. उसने सीता माता का अपहरण भी खराब नियत की वजह से नहीं बल्कि राजनीतिक कारणों से किया था. लोगों का विश्वास है कि रावण ने सीता माता की पवित्रता को बनाए रखा.
300 सालों से चली आ रही है परंपरा
स्थानीय मंदिर के पुजारी हरिभाऊ लखड़े का परिवार कई पीढ़ियों से रावण की पूजा करता आ रहा है. वे रावण को विद्वान और तपस्वी मानते हैं और इसी वजह से उसकी पूजा करते हैं. पुजारी ने दावा किया कि गांव में सुख, शांति और खुशहाली लंका के राजा की वजह से है. लंका पति को पूजने की परंपरा पिछले 300 वर्षों से गांव में चल रही है.
क्या भगवान राम में भी है आस्था?
गांव के लोग लंका पति रावण में गहरी आस्था रखते हैं. हर खुशहाली के लिए यहां के निवासी रावण को ही धन्यवाद देते हैं. ग्रामीण भलें ही रावण की जोर-शोर से पूजा करते हों, लेकिन भगवान राम में विश्वास करते हैं. रावण को पूजने के लिए दशहरे पर उसका पुतला नहीं जलाया जाता है।
देशभर से आते हैं लोग
गांव में हर साल दशहरे के मौके पर देश भर से लोग लंका पति की पूजन देखने के लिए आते हैं. कुछ लोग पूजा देखने का मजा लेते हैं, तो कुछ पूरी श्रद्धा के साथ पूजा करते भी हैं. दशहरे के दिन महा-आरती के साथ रावण की मूर्ति की पूजा का भव्य उत्सव मनाया जाता है.
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