Raksha Bandhan 2023: बिहार के सीवान जिले में एक ऐसा मंदिर है जिसे भाई और बहन के प्रेम का प्रतिक माना जाता है. इस अति प्राचीन मंदिर को 'भैया-बहिनी मंदिर' नाम से जाना जाता है. रक्षाबंधन पर अपने भाइयों की सलामती, तरक्की और उन्नति के लिए बहनें यहां पूजा करने के लिए आती हैं. भैया-बहिनी नामक इस मंदिर में न तो किसी भगवान की मूर्ति है और ना कोई तस्वीर. बल्कि मंदिर के बीचोंबीच मिट्टी का एक ढेर मात्र है. बहनें इसी मिट्टी के पिंड और मंदिर के बाहर लगे बरगद के पेड़ों की पूजा कर अपने भाइयों की सलामती, उन्नति और लंबी उम्र की कामना करती हैं.


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यहां पर मौजूद है भैया-बहिनी मंदिर


भाई–बहन के पवित्र रिश्ते और प्रेम का प्रतीक यह 'भैया–बहिनी मंदिर' सीवान जिले के महाराजगंज अनुमंडल स्थित भीखाबांध गांव में मौजूद है. यह मंदिर भाई-बहन के पवित्र रिश्ते और प्रेम का प्रतिक के रूप में विख्यात है. रक्षाबंधन पर मंदिर में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लग जाता है और ये श्रद्धालु और कोई नहीं बल्कि अपने भाइयों से अटूट प्यार और स्नेह रखने वाली उनकी बहनें होती हैं. यह मंदिर चारों ओर से बरगद के पेड़ों के बीच पांच-छ बीघे के भू-खंड में बना हुआ है.


मुगल शासन काल से जुड़ी है इस मंदिर की कहानी


इस भैया-बहिनी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि मुगल शासन काल के दौरान यहां से गुजर रहे दो भाई-बहनों पर डाकुओं और बदमाशों की नजर पड़ी. भाई अपनी बहन की डोली लेकर जा रहा था. तभी कुछ मुगल सैनिक उनके पास आए और डोली को आगे जाने से रोक दिया. वे मुगल सैनिक उसकी बहन से दुर्व्यवहार कर रहे थे और उसके भाई से यह सब देखा नहीं गया तो वह मुगलों से अपनी बहन की रक्षा करने के लिए उनसे भिड़ गया. बहन की रक्षा करते-करते वह कुर्बान हो गया. यह सब देख बहन ने भगवान से प्रार्थना की और वह अपने भाई के साथ धरती में समा गई.


यहीं पर उग आया बरगद का पेड़ तो होने लगी पूजा


काफी समय बीतने के बाद दोनों की समाधियों पर दो बरगद के पेड़ उग आये जो की आपस में एक–दूसरे से जुड़े हुए थे. लोगों ने उन बरगद के पेड़ों को उन्हीं भाई-बहनों का रूप मानकर वहां एक छोटा सा मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना करनी शुरू कर दी और यह धीरे-धीरे बहनों के आस्था का केंद्र बन गया.


रिपोर्टर: अमित कुमार सिंह