Encroachment On The Fort: चित्तौड़गढ़ की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी पहचान है इसका दुर्ग. ये दुर्ग कई सदियों से यूं ही खड़ा हुआ है. इस पर ना जाने कितने आक्रमण हुए, ना जाने कितनी बार यहां की महिलाओं ने इसी दुर्ग में जौहर किया. अब चित्तौड़गढ़ के इसी दुर्ग के आस-पास टूरिज्म की सारी इंडस्ट्री घूमती है लेकिन समय के साथ ये दुर्ग खुद सरकारी रवैए का शिकार बन रहा है. लोकल लोगों के मुताबिक दुर्ग के शुरुआत में ही एक शराब की दुकान खोल दी गई है. जब शहर के बाहरी हिस्सों में शराब की दुकानें खुली हुई है तो फिर दुर्ग की ऐतिहासिकता से ये शराब की दुकान खोल कर क्यों खिलवाड़ किया जा रहा है?


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यहां 10 साल से गाइड के तौर पर काम करने वाले कुलदीप के मुताबिक इस दुर्ग के दो द्वार हैं. पहला राम पोल जहां से इस वक्त पर्यटक आते भी है और जाते भी हैं. इसकी वजह से जब पर्यटकों के आने का सीजन होता है तो इस दुर्ग पर बुरी तरह ट्रैफिक जाम लग जाता है, जबकि दूसरा गेट है सूरज पोल. काफी समय से इस गेट को भी खोलने की मांग होती रही है लेकिन इस पर कभी किसी भी सरकार या प्रशासन ने गौर नहीं फरमाया.


इस दुर्ग को अब धीरे-धीरे अतिक्रमण का भी शिकार बनना पड़ रहा है. लोकल गाइड कुलदीप मुताबिक दुर्ग के निचले हिस्से पर अवैध तरीके से अतिक्रमण किया जा रहा है. मजार पिछले 15 से 20 सालों में धीरे-धीरे फैलाया जा रहा है. इसके लिए जानबूझकर घने पेड़ों का इस्तेमाल किया जा रहा है. इस पर फॉरेस्ट डिपार्टमेंट से लेकर लोकल नेताओं ने सभी ने इन अतिक्रमणकारियों को संरक्षण दिया है.


इसी दुर्ग में 600 साल पुराना विजय स्तंभ भी मौजूद है, लेकिन अब इसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ता जा रहा है. आस-पास के इलाके में सीमेंट कंपनियों के लिए इस इलाके में खनन का काम किया जाता है जिसके लिए ब्लास्ट किया जाता है. ब्लास्ट के झटकों की वजह से विजय स्तंभ पर अब दरारें आने लगी हैं. विजय स्तंभ वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल है.


एक और समस्या है जो दुर्ग की ऐतिहासिकता पर कालिख पोत रही है. दुर्ग के कुछ इस हिस्से है जहां शाम ढलते ही कुछ लोग आकर शराब पीना शुरू कर देते हैं. आपको इस इलाके में दुर्ग के अंदरूनी हिस्से में शराब की बोतले बिखरी हुई मिल जाती है. यहां पर ऐसे में पर्यटकों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाती है. इसी दुर्ग में कई सदियों से कई सारे परिवार रहते आए हैं. चूंकि ये चित्तौड़ का दुर्ग वर्ल्ड हेरिटेज में आता है. इसीलिए यहां पर किसी तरह का कोई कंस्ट्रक्शन का काम नहीं किया जा सकता है. 


लोगों की दिक्कत अब ये हैं कि यहां के मकान पुराने और जर्जर होते जा रहे हैं. कई बार तो खराब मौसम में घरों के टूटने का भी खतरा बना रहता है लेकिन प्रशासन इन्हें मकानों की हालत सुधारने नहीं देता है. ऐसे में कई लोग अपनी जान जोखिम में डाल कर इन्हीं घरों में रहने के लिए मजबूर हैं. इस दुर्ग पर इस शहर की आबादी का बड़ा हिस्सा रोजगार के लिए आश्रित है, उससे जुड़ा टूरिज्म इंफ्रास्ट्रक्चर इस इलाके में खड़ा नहीं किया गया है, ना यहां पर ढंग के होटल हैं, ना बाकी की सुविधाएं. ऐसे में इस इलाके में घूमने आने वाले पर्यटक दुर्ग देखकर वापस लौट जाते हैं जिससे इस इलाके की इकोनॉमी को कोई खास फायदा नहीं मिल पाता है.