Rajasthan Election 2023: एक और धरती पकड़ : मिलिए तीतर सिंह से... 78 साल की उम्र में 32वीं बार चुनाव लड़ रहे, ऐसा रहा सियासी सफर
Rajasthan Chunav Titar Singh: दलित समुदाय से आने वाले तीतर सिंह 72 साल की उम्र में 30 से ज्यादा बार चुनाव लड़ चुके हैं. लेकिन हर बार वो संख्या बल और संसाधनों की कमी से हार जाते रहे हैं. हार तय है फिर भी क्यों चुनाव लड़ते हैं? इसका जवाब भी बड़ा दिलचस्प है.
Dharti Pakar titar singh Rajasthan Assebly Election: देश में चुनाव चल रहा हो और सियासी रंगों से जुड़ी दिलचस्प कहानियां सामने न आएं भला ये कैसे हो सकता है. यहां बात राजस्थान की माटी के लाल और धरतीपकड़ तीतर सिंह की जिन्होंने 72 साल की उम्र में 32वीं बार किसी चुनाव लड़ने के लिए नामांकन दर्ज कराया है. तीतर सिंह 1970 के दशक से लेकर अब तक ग्राम पंचायत से लेकर लोकसभा तक 31 चुनाव लड़े हैं और हर बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बावजूद उनके हौसले बुलंद हैं, और जज्बे में कहीं कोई कमी नहीं आई है.
31 बार हारे पर हिम्मत नहीं हारी
तीतर सिंह कोई करोड़पति शख्स नहीं हैं जो टाइम पास करने के लिए 50 साल से चुनावी समर हैं. उनकी सियासी कहानी दिलचस्प है, जो आपको हैरान कर देगी. तीतर सिंह दिहाड़ी मजदूर हैं. वो राजस्थान के गंगानगर जिले में रहकर बड़े-बड़े सूरमाओं को चुनौती देते आए हैं. हौसला देखिए, 31 बार हारे लेकिन हिम्मत नहीं हारी. फिलहाल वो करणपुर विधानसभा सीट से विधायकी का चुनाव लड़ रहे हैं.
करणपुर एक छोटे से गांव में रहने वाले तीतर सिंह की चुनाव लड़ते लड़ते उम्र बीतने को है. तीतर सिंह अब तक लोकसभा के 10, विधानसभा के 10, जिला परिषद डायरेक्टर के 4, सरपंची के 4 और वार्ड मेंबरी के भी 4 चुनाव लड़ चुके हैं. हालांकि जिन अधिकारों की लड़ाई के लिए वो 50 साल से चुनावी अखाड़े में ताल ठोक रहे हैं, वो उन्हें अबतक नहीं मिले हैं.
'लोकप्रियता जुटाना या रिकॉर्ड बनाना मकसद नहीं'
चुनाव लड़ना उनके लिए सुर्खियां बटोरने या रिकॉर्ड बनाने का जरिया नहीं है, बल्कि अपने हकों को हासिल करने का वो हथियार है, जिसकी धार समय और उम्र बीतने के बाद भी कुंद नहीं पड़ी है. चुनावी सीजन में जब पत्रकार उनसे एक वही सवाल बार-बार पूछते हैं, तो वो इरीटेट नहीं होते. वो बुलंद आवाज में शालीनता से जवाब देते हुए कहते हैं कि सरकार उन्हें जमीन थे, सभी मूलभूत अधिकार और सुख-सुविधाएं दे, ये नाजायज मांग नहीं. हक की लड़ाई है. इसलिए जब तक मांगे पूरी नहीं होती, वो चुनाव लड़ते रहेंगे.