Panna, Madhya Pradesh Election 2023: पन्ना की किस्मत में तो हीरे लिखे हैं लेकिन यहां रहने वालों की किस्मत ने बस उम्मीद का दामन थाम रखा है. पन्ना की जमीन भले ही समृद्ध हो लेकिन यहां रहने वाले लोग देश के सबसे गरीब लोगों में से एक हैं. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्यूंकि जब आप पन्ना के उन इलाकों में जायेंगे जहां मिट्टी में से हीरा निकलता है तो वहां कई लोग आपको कुदाल और छन्नी लिए छोटी छोटी खदानों में हीरे तलाशते नजर आ जायेंगे.


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किस्मत पलटने के इंतजार में मेहनत करते लोग


ऐसा ही इलाका है रुंझ नदी का. कुछ समय पहले रुंझ नदी के आसपास ही मिट्टी से हीरे निकलने की बात यूं फैली की नदी के किनारे मेला लग गया था. लोग सिर्फ आसपास के इलाकों से नहीं बल्कि दूसरे शहरों से भी हीरे की तलाश में यहां डेरा डालने आए थे. जब हमारी टीम रुंझ नदी के पास सिंहपुर गांव में पहुंची तो मेला नहीं लगा था लेकिन हीरे की तलाश में तेज़ धूप में महिलाएं पुरुष खदानों में काम करते दिखाई दिए. हालांकि ये सरकारी खदान नहीं हैं ये लोग बस रातों रात किस्मत पलटने के इंतज़ार में यहां मेहनत कर रहे हैं.


छोटी खदान, मुश्किल में जान


पहले छोटी छोटी खदान बनाई जाती है, गहरे गड्ढे में उतरकर मिट्टी निकली जाती है. छन्नी वाले तसले में खुदाई में निकली मिट्टी कंकड़ पत्थर डालकर उसे नदी के पानी देर तक छाना जाता है. मिट्टी अलग होने के बाद बाकी बच्चे कंकड़ पत्थर को एक पट्टे पर रखकर बारीकी से उसमें हीरे की तलाश की जाती है. इस प्रक्रिया में काफी मेहनत लगती है और बिना किसी सुरक्षा के मिट्टी के गुबार के बीच काम करने इन लोगों की सेहत के लिए भी हानिकारक है.


केस स्टोरी- 


यहां काम करने वाले अनारीलाल करीब 10 साल से किस्मत आज़मा रहे हैं. उनका कहना है कि कुछ लोगों को हीरा मिलता भी है. रोज़गार की कमी बड़ी वजह है, लोग खाली होते हैं तो यहां चले आते हैं अगर नौकरी लग जाती है तो काम पर चले जाते हैं.


पंचम भी करीब 8-10 साल से आ जाते हैं. वो कहते हैं कि हम किस्मत आजमाने आ जाते हैं. हमारी ज़िन्दगी तो कट गई है लड़के बच्चों की अच्छी कट जाए इनका खर्चा पानी आ जाए. काम रोज़गार की कमी है कोई परमानेंट साधन नहीं है कमाई का.


बसंती ने कुछ दिन पहले ही यहां आना शुरू किया है. वो बताती हैं कि हमारे पास न खेती है न मजदूरी लगती है. जंगल जाकर लकड़ियां बेच आते हैं. क्या पता भगवान चाहें तो कुछ मिल ही जाए. बच्चे तो पालना ही है. सरकार जो औरतों को पैसा देती है वो भी नहीं मिलता.


ये दिया तले अंधेरा : सरपंच


सिंहपुर गांव के सरपंच योगेंद्र धुरिया जो प्रदेश के सबसे कम उम्र के सरपंच भी हैं उनसे जब हमने पूछा कि आखिर इस तरह से हीरे खोजने की ज़रूरत लोगों कों क्यों पड़ती है तो उनका कहना था कि ये दिया तले अंधेरा होने जैसा है. लोगों के पास सुविधा और जानकारी का अभाव है. इसमें रिसर्च की कमी है.


एक रिसर्च हो जिसमें सरकार एक जगह चिन्हित करे कि इस जगह पर ज़्यादा मात्रा में हीरे होंगे. सरकार उस जगह की टेंडेंरिंग करवाये, लोगों को समयबद्ध तरीके से पट्टे दे. इसमें कई विकल्प हैं कि रोज़गार के लिए बड़ा अवसर बनकर आएगा. स्टेट इकॉनमी और नेशनल इकॉनमी के लिए भी लाभ पहुचायेगा. बेरोज़गारी बड़ा कारण है और ये एक पार्ट टाइम जॉब भी है. सरकार अगर एक अच्छी पॉलिसी ले आए तो लोगों को बहुत फायदा मिलेगा.


बेरोज़गारी, गरीबी और कुपोषण सबसे बड़ी समस्या


इन लोगों के सामने गरीबी बेरोज़गारी सबसे बड़ी समस्या है. लेकिन ये लोग एक ऐसी परेशानी का भी सामना कर रहे हैं जिसके बारे में इन्हें शायद जानकारी भी नहीं है, वो दिक्कत है स्वास्थ्य से जुड़ी हुई. बिना किसी सुरक्षा उपाय के खुदाई करने से ज़्यादातर खदान मजदूरों में सिलिकोसिस और सांस लेने से जुड़ी दिक्कतें सामने आती हैं. लम्बे समय से पन्ना पत्थर मजदूर संघ के साथ काम कर रहे पृथ्वी ट्रस्ट की संचालक समीना युसूफ का कहना है कि खनन में काम करने वाले मजदूरों में सिलीकोसिस नाम की बिमारी हो जाती है जो असुरक्षित तरीके से काम करने से होता है. कहने के लिए ये हीरों कि धरती है लेकिन यहां का मजदूर पलायन करने को मजबूर है. हीरे के लालच में लोग स्वास्थ्य के साथ समझौता कर रहे हैं.


मजबूरी में रोज किस्मत आजमाते लोग


खदान मजदूरों के साथ लम्बे समय से जुड़े रहे राम अवतार तिवारी कहते हैं कि हीरा मिलना किस्मत पर निर्भर है लेकिन 90% लोग ऐसे ही लौट जाते हैं. लोगों को नुक्सान ही ज़्यादा हुआ है. स्वास्थ्य की दृष्टि से ये काफी नुक्सानदायक है. हीरों की धरती ज़रूर है पन्ना लेकिन मजदूरों के लिए ये किसी काम नहीं आता. कई बार ब्लैक में और कई बार दबाव बनाकर औने पौने दाम में हीरा गरीब मजदूरों से खरीद लेते हैं.