Rajasthan Assembly Election 2023: कांग्रेस और भाजपा के लगभग 45 बागियों के मैदान में कूदने से अटकलें तेज हो गई हैं कि क्या वे राजस्थान में किंगमेकर होंगे और दोनों प्रमुख पार्टियों के आधिकारिक उम्मीदवारों के संभावित मतदाताओं में सेंध लगाएं. कांग्रेस और भाजपा दोनों नेताओं ने पुष्टि की है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का लक्ष्य कांग्रेस और भाजपा की सीटों को 90 तक सीमित करना है, ताकि निर्दलीय अपनी बात कह सकें और वे अपनी-अपनी पार्टी में दबदबा कायम कर सकें.


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गहलोत को मिला था निर्दलीयों का समर्थन


दिसंबर 2018 में जब अशोक गहलोत और राज्य इकाई के अध्यक्ष सचिन पायलट आमने-सामने थे, तब 13 में से 10 निर्दलीय विधायकों ने "गहलोत के नेतृत्व में" कांग्रेस सरकार का समर्थन किया था. दरअसल, अपने 5 साल के कार्यकाल में गहलोत इन्हीं वफादारों पर भरोसा करते रहे हैं. पायलट की बगावत के दौरान भी उन्होंने हमेशा उनका साथ दिया है और गहलोत ने उन्हें अहम पद देकर इसका इनाम भी दिया.


पायलट ने लगाया था आरोप


हालांकि, पायलट ने इस प्रथा पर आपत्ति जताते हुए पूछा था कि कांग्रेस उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ने वालों को पुरस्कृत क्यों किया जाता है, जबकि पार्टी के ईमानदार कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज किया जाता है. अब, 25 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले, ध्यान एक बार फिर से बागियों पर है, क्योंकि कांग्रेस के लगभग 20 और भाजपा के 25 बागी निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं.


कांग्रेस की मुसीबतें


सीएम गहलोत के करीबी माने जाने वाले सुनील परिहार ने सिवाना से निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की है. यह वही सीट है, जहां से कांग्रेस ने बीजेपी के पूर्व रक्षा मंत्री जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है. 
जोधपुर के पूर्व महापौर और गहलोत के करीबी मित्र रामेश्वर दाधीच सूरसागर से टिकट नहीं मिलने के बाद पहले ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं. राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ से मौजूदा कांग्रेस विधायक जौहरीलाल मीणा टिकट नहीं मिलने के बाद बागी होकर चुनाव लड़ रहे हैं.


बीजेपी की चुनौती


सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, बीजेपी को भी इसी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि निर्दलीय उम्मीदवार उसके आधिकारिक उम्मीदवारों के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं. अधिकारियों के मुताबिक, बाड़मेर की शियो सीट सबसे ज्यादा चर्चा में है, क्योंकि यहां कांग्रेस के एक और बीजेपी के दो बागी उम्मीदवार मैदान में हैं. भाजपा के बागी जालम सिंह रावलोत और रवींद्र सिंह भाटी चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं, कांग्रेस के पूर्व जिला अध्यक्ष फतह खान भी बागी होकर मैदान में हैं. भाजपा ने शिव सीट से पार्टी जिला अध्यक्ष स्वरूप सिंह खारा को अपना उम्मीदवार बनाया है.


बिगड़ा चुनाव का समीकरण 


कांग्रेस ने 84 साल के अमीन खान को 10वीं बार टिकट दिया है. यहां के पूर्व बीजेपी विधायक आरएलपी में शामिल हो गए हैं और चुनाव लड़ रहे हैं. इस सीट पर 5 मजबूत उम्मीदवारों के मैदान में उतरने से समीकरण बिगड़ गए हैं. चित्तौड़गढ़ में बीजेपी ने अपने दो बार के विधायक चंद्रभान सिंह आक्या का टिकट काट दिया है, जो अब बागी बनकर मैदान में हैं. बागियों के कारण शिव, चित्तौड़गढ़ और बाड़मेर सीटें सबसे ज्यादा चर्चा में है. चित्तौड़गढ़ में बीजेपी के लिए हालात मुश्किल हैं, जहां आक्या की बगावत के कारण उसे हार का सामना करना पड़ सकता है. चर्चा के लिए दिल्ली बुलाए जाने के बावजूद आक्या अपने रुख पर कायम हैं. विद्याधर नगर विधायक नरपत सिंह राजवी, जो पूर्व सीएम भैरों सिंह शेखावत के दामाद हैं को बीजेपी ने यहां से मैदान में उतारा है.


बाड़मेर सीट पर मचा घमासान


बाड़मेर सीट पर भी घमासान है. बाड़मेर में प्रियंका चौधरी की बगावत से बीजेपी को झटका लगा है. पार्टी लगातार यह सीट हार रही है. आरएलपी ने भी चौधरी का समर्थन किया है, जिसके बाद पूरा राजनीतिक परिदृश्य बदल गया है. यहां से वसुंधरा राजे के वफादार यूनुस खान का टिकट कटने के बाद डीडवाना सीट पर भी कड़ा मुकाबला है. उन्होंने घोषणा की है कि वह निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे, जिससे भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगेगी. इसके अलावा शाहपुरा में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और राजे के वफादार कैलाश मेघवाल निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं.


विद्रोही निभाएंगे अहम भूमिका


कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी के बागी मैदान में हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 3 दिसंबर को जब नतीजे घोषित होंगे तो विद्रोही अहम भूमिका निभाएंगे. ये निर्दलीय दोनों पार्टियों के लिए लगभग 10 से 15 सीटों पर मायने रखेंगे. ऐसा देखा जा रहा है कि दोनों पार्टियों के प्रमुख नेताओं द्वारा विद्रोहियों का समर्थन किया जा रहा है. ऐसा लगता है कि ये नेता अपने-अपने लक्ष्यों के लिए उनका समर्थन कर रहे हैं. चुनाव के बाद जब गिनती शुरू होगी तो प्रमुख नेताओं से जुड़े ये बागी मायने रखेंगे जैसा कि दिसंबर 2018 में सरकार गठन के दौरान हुआ था और उसी के अनुसार सीएम चुना जाएगा.