Assembly Elections 2023: मध्यप्रदेश में महाकौशल का इलाका चुनावी रणनीति के लिहाज से बेहद अहम माना जाता है. आदिवासी बहुल्य महाकौशल क्षेत्र के 8 जिलों में कुल 38 विधानसभा सीटें आती हैं. आदिवासी वोट बैंक को साधने की कोशिश सभी पार्टियां कर रही हैं. लेकिन ग्रामीण इलाकों में रहने वाले आदिवासियों को विकास से जोड़ने की कोशिश कितनी कारगर हुई है, हम आपको बताएंगे.


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मंडला जिले के अंतर्गत आने वाली बिछिया विधानसभा के बाघण्डी गांव में गोंड जनजाति के लोग प्रमुखता में रहते हैं. गांव के विकास की बात करें तो सड़क से लेकर प्राइमरी स्कूल तक की हालत चिंताजनक है.


बारिश में गांव हो जाता है टापू में तब्दील
करीब 600 की आबादी वाले इस गांव में लगभग 430 मतदाता है.लेकिन बारिश के समय में ये गांव टापू बनकर रह जाता है. गांव वालों के मुताबिक मुख्य मार्ग से गांव को जोड़ने वाले करीब 4 किलोमीटर लंबे रास्ते की स्थिति इतनी खराब है कि बारिश के समय में अगर किसी को अस्पताल ले जाना हो तो एंबुलेंस अंदर आने से मना कर देती है. फिर गांव वाले बीमारों, गर्भवती महिलाओं को कंधे पर मुख्य सड़क तक ले जाते हैं. कहीं कहीं बीच में कच्ची सड़क जो समतल नज़र आती है उसके लिए भी गांववालो ने खुद चंदा किया.


प्राइमरी स्कूल की भी हालत खराब
स्थिति सिर्फ सड़क की ही नहीं गांव में मौजूद इकलौते प्राइमरी स्कूली की भी खराब है. स्कूल में खाना रसोईघर के बाहर बनाया जाता है. रसोईघर की छत की हालत ऐसी है कि कभी भी भरभरा कर नीचे गिर जाए. दीवारो पर हाथ रखते ही प्लास्टर टूटकर गिरने लगता है.


खाना बनाने का काम करने वाले फागूलाल करीब 20 साल से ये काम कर रहे हैं. उनका कहना हैं कि खाना बनाते समय छत से प्लास्टर गिरता है जिसके चलते खाना खराब होता है इसलिए बाहर चूल्हा रखकर खाना बनाते हैं. कई बार लोगों को चोट भी लग चुकी है.


स्कूल की मुख्य इमारत इस कदर खस्ताहाल है कि बारिश में छत गिरने के खतरे के चलते परिसर में बने अतिरिक्त कक्षा में टीचर बच्चों को पढ़ाते हैं. मुख्य इमारत का पिछला हिस्सा बारिश के चलते ढह गया है.


पांच साल से स्कूल की मुख्य बिल्डिंग बंद
स्कूल के अध्यापक संजय मरावी 17 साल से यहां पढ़ा रहे हैं. उनका कहना है कि 5 साल से स्कूल की मुख्य बिल्डिंग बंद है. पिछली बारिश में छत का हिस्सा गिर गया था. जिसकी जानकारी भी उन्होंने उच्च अधिकारियों को दी थी. जिस इमारत में अभी स्कूल लग रहा है उसकी हालत भी अब खराब हो रही है. लाइट का कनेक्शन किया है लेकिन उसे शुरू नहीं किया गया है. पीने के पानी के लिए नल लगाए गए हैं लेकिन उनमें पानी नहीं आता इसलिए बच्चे हैंडपंप से पानी पीते हैं.


सड़क न होने से बरसात में होती है परेशानी
गांव के सरपंच रमेश कुमार सैय्याम का कहना है कि सड़क ना होने से बरसात के समय बहुत समस्या होती है. किसी को हॉस्पिटल ले जाने में या स्कूल जाने में बहुत दिक्कत होती है. बारिश के दौरान गांव बाहर से पूरी तरह कट जाता है. कई बार प्रशासनिक अधिकारीयों और जनप्रतिनिधियों के सामने शिकायत दर्ज करा चुके हैं लेकिन कोई समाधान नहीं निकला.


बिजली व्यवस्था बेहाल
अब बात करते हैं बाघण्डी गांव के अंतर्गत आने वाले दइहान टोला में बिजली व्यवस्था की. यहां बांस के पोल पर लगी बिजली की तार देखकर लगता है कि शायद टोले में रहने वाले लोगों ने अवैध बिजली के कनेक्शन लगाए हुए हैं. लेकिन कच्चे मकानों के बाहर लगे बिजली के मीटर बताते हैं कि घर में रहने वाले बिजली का बिल भी भर रहे हैं और असुरक्षित तरीके से लगाई गई तारों के बीच रहने का जोखिम भी उठा रहे हैं.


ऐसा ही एक घर है ढीलन झारिया का. 6 साल से बिजली का बिल भर रहे हैं. उनका कहना है कि लाइनमैन बिजली का मीटर लगाकर तो गए लेकिन बिजली के खम्भे गड़वाने और तार खिंचवाने के लिए सिर्फ आश्वासन भर दिया. बिजली की जो तारें टोले में दिखाई दे रही हैं उसके लिए भी टोले के 10 घरों में रहने वाले लोगों ने 10 हज़ार रुपए इकठ्ठा किए और फिर बिजली के तार लगवाए. यानि मूलभूत सुविधा पाने के लिए भी जनता खुद ही रकम अदायगी कर रही है.


क्या कहना है विधायक का?
नारायण सिंह पट्टा जो कांग्रेस से बिछिया विधानसभा के विधायक हैं वो ये तो मानते हैं कि बाघण्डी गांव के लोगों को शिक्षा सड़क बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं लेकिन इसका ठीकरा राज्य की बीजेपी सरकार पर फोड़ते हैं.


नारायण सिंह का कहना था कि हम लगातार सरकार से इसकी मांग करते आ रहे हैं. इसे लेकर हमने सड़क से लेकर सदन तक आंदोलन किया.  15 महीने में जब कांग्रेस की सरकार थी तब मेरे विधानसभा क्षेत्र में जो पहुंच विहीन गांव हैं वहां के लिए मैंने 60 ग्रेवल सड़क स्वीकृत कराई और 300 से ज़्यादातर चिट्ठीयां जिला प्रशासन को लिखी. लेकिन जैसे ही कांग्रेस की सरकार गिरी बीजेपी की सरकार के रहते एक भी सड़क की स्वीकृति हमको नहीं मिल पाई. बाघण्डी में स्कूल नहीं है, गिर चुका है जिसे लेकर कलेक्टर को पत्र लिखा बजट भाषण में इसकी मांग की लेकिन ये मांग पूरी नहीं हो पाई.