लाहौर: मुंबई में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों की ओर से 166 लोगों की हत्या करने की घटना के नौ साल गुजर गए, लेकिन पाकिस्तान ने किसी संदिग्ध को अब तक सजा नहीं दिलाई है. पर्यवेक्षकों का कहना है कि 26/11 हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद की पिछले दिनों हुई रिहाई से भी साफ संकेत मिलते हैं कि यह मामला पाकिस्तान के लिए कभी प्राथमिकता नहीं रहा. नवंबर 2008 में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी समुद्र के रास्ते कराची से मुंबई आए थे और समन्वित हमला किया था. इसमें 166 लोग मारे गए थे और 300 से ज्यादा लोग जख्मी हो गए थे.


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एक वरिष्ठ वकील ने बताया, "इस्लामाबाद में एक आतंकवाद निरोधक अदालत 2009 से ही मुंबई हमले के मामले में मुकदमा चला रही है. देश में शायद ही किसी आतंकवाद निरोधक अदालत में ऐसा कोई मामला हो जिसमें आठ साल बीत जाने के बाद भी लंबित हो. आतंकवाद निरोधक अदालत का गठन तेजी से मुकदमा चलाने के लिए हुआ, लेकिन इस मामले में यह किसी सत्र अदालत की तरह काम कर रही है, जिसमें मुकदमों पर फैसले में बरसों लग जाते हैं."


26/11 हमले की नौवीं बरसी से पहले पाकिस्तान की ओर से हाफिज की रिहाई के दो दिन बाद बातचीत में इस वकील ने नाम का खुलासा नहीं करने की शर्त पर बताया, "ऐसा लगता है कि सरकार इस मामले पर फैसले की जल्दबाजी में नहीं है, क्योंकि मामला इसके ​चिर-प्रतिद्वंद्वी भारत से जुड़ा है." उन्होंने कहा कि यदि यहां के संबंधित अधिकारी गंभीर होते तो इस मामले पर कब का फैसला हो चुका होता.


पाकिस्तान ने हाफिज की रिहाई को सही ठहराते हुए कहा कि अपने संवैधानिक कर्तव्य को देखते हुए अदालतें सभी नागरिकों के लिए कानून का शासन एवं उचित प्रक्रिया बरकरार रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं. सुप्रीम कोर्ट के वकील मोबीन अहमद काजी ने बताया कि चूंकि यह मुकदमा आतंकवाद निरोधक अदालत में चल रहा है, इसलिए इस पर बहुत पहले फैसला हो जाना चाहिए था.


काजी ने कहा,"इतने लंबे समय में ऐसे मामलों में सबूत नष्ट कर दिए जाते हैं. मुझे हैरत हो रही है कि पाकिस्तान इस आपराधिक मामले पर फैसला करने में इतना वक्त क्यों लगा रहा है. यदि भारत ठोस सबूत नहीं देता है तो उसे मामले पर तुरंत फैसला करना चाहिए और संदिग्धों को संदेह का लाभ देकर उन्हें बरी करना चाहिए." उन्होंने कहा, "ऐसा लगता है कि पाकिस्तान पर इस बात का दबाव है कि वह बगैर साक्ष्य के ही मुंबई हमलों के संदिग्धों को जेल में रखे."