Saudi Arabia and America Conflict: अमेरिका और सऊदी अरब के बीच पिछले कुछ दिनों से काफी तनाव बना हुआ है. दोनों देश लगातार एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं. विवाद के बीच अमेरिका में अब मांग उठने लगी है कि यूएस को सऊदी अरब के साथ हथियार, सुरक्षा उपकरणों की सप्लाई व उनके मेंटिनेंस के लिए दी जाने वाली सहायता पर रोक लगाई जाए. अमेरिका अगर इस मांग पर विचार करके इस तरह की रोक लगाता है तो इससे सऊदी अरब को बड़ा झटका लग सकता है. दरअसल, वर्तमान में सऊदी अरब डिफेंस के मामले में अमेरिका पर बहुत ज्यादा निर्भर है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

कहां से उठी है इस तरह की मांग


सऊदी अरब के साथ रक्षा मामलों में तमाम करार रद्द करने की मांग अमेरिकी सांसद रिचर्ड ब्लूमेंथल और रो खन्ना की तरफ से उठी है. इन दोनों सांसदों ने कहा है कि एक साल तक के लिए सऊदी अरब के साथ सभी तरह की कमर्शियल सेल्सऔर विदेशी मिलिट्री सेल्स पर रोक लगाने की जरूरत है. इसके अलावा सुरक्षा उपकरणों की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगाने की जरूरत है.


सऊदी अरब सेना पर इस तरह से पड़ेगा असर


अमेरिकी सांसदों ने सदन में अपने प्रस्ताव में कहा कि सऊदी अरब के अधिकतर हथियार मेड इन अमेरिका हैं. इन पर रोक लगती है तो सऊदी अरब की सेना काफी कमजोर हो जाएगी. अमेरिकी सांसद रो खन्ना का कहना है कि विकल्प के रूप में सऊदी एकदम से रूस या चीन की तरफ भी नहीं जा सकता है. अमेरिका जैसे हथियार किसी दूसरे देश से खरीदने में कम से कम 10 साल लग जाएंगे. अगर अमेरिकी टेक्नीशियन सऊदी अरब को हथियार के मामले में सपोर्ट न दें तो एक दिन में ही उनकी एयरफोर्स भी जमीन पर आ जाएगी.


वायु सेना इस तरह हो सकती है जीरो


वर्तमान में सऊदी अरब एयरफोर्स (RSAF) की सबसे बड़ी ताकत अमेरिका से खरीदे गए मॉडर्न एफ-15 फाइटर जेट्स ही हैं. लेकिन इसे चलाने के लिए वह पूरी तरह अमेरिका पर निर्भर है. उसकी निर्भरता साल 2015 में ही देखने को मिली थी, जब सऊदी अरब ने यमन युद्ध में एयर अटैक किया था तो उसके वायु सैनिकों को काफी दिक्कत हुई थी. रेडियो सिग्नल ठीक से काम नहीं करने की वजह से पायलटों को उड़ान के दौरान सैटेलाइट फोन से अमेरिकी टेक्निशियन से संपर्क करना पड़ा था. अब अगर अमेरिका इस तरह के सपोर्ट देना बंद करे तो सऊदी अरब की वायु सेना जीरो हो जाएगी.


यहां से शुरू हुआ विवाद


बीते 5 अक्टूबर को ओपेक प्लस देशों ने 20 लाख बैरल प्रति दिन तेल उत्पादन में कटौती का ऐलान किया था. ओपेक प्लस कुल 24 देशों का समूह है. खास बात यह है कि इस समूह का रूस भी एक सदस्य है. तेल का उत्पादन कम होने से तेल की कीमतें बढ़ेंगी और इससे रूस को भी फायदा होगा. अमेरिका ने ये भी आरोप लगाया है कि सऊदी अरब ने यह निर्णय रूस को फायदा पहुंचाने के लिए लिया है. ओपेक प्लस संगठन में सऊदी अरब का दबदबा माना जाता है. अमेरिका ने सऊदी अरब से कटौती न करने की अपील की, लेकिन उसने इसे अनुसाना कर दिया. इस निर्णय के बाद अमेरिका ने संगठन के मुख्य देश सऊदी अरब पर तीखा प्रहार करते हुए कहा था कि सऊदी अरब को इस फैसले के नतीजे भुगतने होंगे. इस धमकी के बाद सऊदी अरब ने भी अमेरिका को धमकी दी.


ये ख़बर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर