लंदन: ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेन वालेस (Ben Wallace) ने शुक्रवार को कहा कि अफगानिस्तान सिविल वॉर की तरफ बढ़ रहा है और क्षेत्र में हालात लगातार बिगड़ने के साथ आतंकवादी संगठन अल-कायदा (Al-Qaeda) संभवत: फिर से वापसी करेगा. यह बात उन्होंने तब बोली जब वे अफगानिस्तान में बचे ब्रिटेन के बाकी सैनिकों की सुरक्षित वापसी के लिए करीब 600 अतिरिक्त सैनिकों को भेजने के सरकार के फैसले के बारे में ब्रिटेन के मीडिया संस्थानों को जानकारी दे रहे थे.


'हम सिविल वॉर की तरफ बढ़ रहे हैं'


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वालेस ने कहा, ‘मुझे लगता है कि हम गृह युद्ध (Civil War) की तरफ बढ़ रहे हैं.’ उन्होंने अफगानिस्तान से मई महीने से अमेरिका द्वारा सैनिकों की वापसी का जिक्र करते हुए कहा, 'मुझे इस बात की बहुत चिंता है कि असफल देश इस तरह के लोगों के पनपने का केंद्र बन रहे हैं, निश्चित रूप से मैं चिंतित हूं. इसलिए मैंने कहा था कि मुझे लगता है कि यह सही समय नहीं था.' बताते चलें ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय ने घोषणा की थी कि काबुल में ब्रिटिश दूतावास में काम कर रहे कर्मियों की संख्या कम कर दी गई है और केवल जरूरी सेवाएं दी जा रही हैं.


हेलमंद सूबे पर तालिबान का कब्जा


अफगानिस्तान के जिस दक्षिणी सूबे हेलमंद को पिछले 20 साल में अधिकतर समय तालिबान से बचाने की ब्रिटिश सेना कोशिश करती रही, उस पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है. हेलमंद की राजधानी लश्कर गाह पर तालिबान के कब्जे की शुक्रवार को हुई पुष्टि की गूंज ब्रिटेन में सुनाई दी, क्योंकि अमेरिका और नाटो गठबंधन के साथ अफगानिस्तान में लड़ते हुए जिन 457 ब्रिटिश सैनिकों की मौत हुई थी, उनमें अधिकतर की जान हेलमंद प्रांत में ही गई थी. वर्ष 2006 से 2014 तक हेलमंद का कैम्प बैस्टन कॉम्प्लेक्स ब्रिटिश सैन्य अभियान का मुख्यालय रहा.


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तालिबान का दो तिहाई हिस्से पर कब्जा 


तालिबान का अफगानिस्तान के दो तिहाई हिस्से पर कब्जा हो गया है और सवाल उठ रहे हैं कि क्यों नहीं ब्रिटिश सैनिक हेलमंद में अमेरिकी सैनिकों की 11 सितंबर तक वापसी की योजना तक वहां रहे. उल्लेखनीय है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन (Joe Biden) ने अप्रैल में अमेरिकी सैनिकों को अफगानिस्तान से बुलाने की घोषणा की थी. उनके निर्णय के बाद ब्रिटेन सहित नाटो गठबंधन के देशों ने भी अपने-अपने सैनिकों की वापसी की घोषणा कर दी. ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी की पूर्ववर्ती सरकार में रक्षा मंत्री रहे और अफगानिस्तान में बतौर अपनी सेवा दे चुके जॉनी मर्सर ने कहा कि, 'बाइडन ने बड़ी गलती की है, लेकिन ब्रिटेन को उनका अनुकरण नहीं करना चाहिए था, और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल में नाटो के अन्य देशों के साथ सहयोग जुटाना चाहिए था.' मर्सर ने कहा, 'यह विचार कि हम एकतरफा तरीके से कदम नहीं उठा सकते थे और अफगान सुरक्षा बलों का समर्थन नहीं कर सकते थे, सही नहीं है. अफगानिस्तान की सुरक्षा को समर्थन करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं थी और इसकी वजह से कई लोगों की जान जाएगी. यह मेरे लिए बहुत अपमानजनक है.'


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'US का अनुकरण करने के अलावा चारा नहीं'


ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेल वालेस ने भी अफगानिस्तान की स्थिति पर चिंता व्यक्त की है, लेकिन कहा कि सरकार के पास अमेरिका का अनुकरण करने के अलावा कोई चारा नहीं था. वालेस ने दावा किया कि अफगानिस्तान में मौजूद चार हजार ब्रिटिश नागरिकों को लाने में मदद के लिए करीब 6000 सैनिकों को भेजने का फैसला अफरा-तफरी में तत्काल नहीं लिया गया, बल्कि इसकी योजना महीनों पहले बनाई गई थी. इससे पहले अमेरिका ने गुरुवार को कहा कि वह अफगानिस्तान की मदद करने और काबुल स्थित अमेरिकी दूतावास से कुछ कर्मचारियों को निकालने के लिए 3000 अतिरिक्त सैनिकों को भेज रहा है.


'सैनिकों की वापसी का फैसला खतरनाक'


गौरतलब है कि गठबंधन बलों के पुनर्गठन के तहत ब्रिटेन ने वर्ष 2006 में अपने सैनिकों को हेलमंद भेजा था. शुरुआत में उनका कार्य स्थिरता और पुनर्निर्माण परियोजनाओं को सुरक्षा प्रदान करना था, लेकिन जल्द ही ब्रिटिश सैनिक भी सैन्य अभियान में शामिल हो गए. हेलमंद का कैम्प बैस्टन ब्रिटिश ऑपरेशन हैरिक का मुख्यालय बना जहां पर करीब 9,500 ब्रिटिश सैनिक तैनात थे. येल यूनिवर्सिटी में वरिष्ठ शोधकर्ता, ब्रिटिश सरकार के पूर्व अंतरराष्ट्रीय विकास मंत्री व लेखक रोरी स्टीवर्ट ने अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी के फैसले की आलोचना की थी और इसे गैर जरूरी खतरनाक फैसला बताया था. उन्होंने कहा, इससे लाखों अफगान शरणार्थी बन जाएंगे. हमने रातोंरात एक और सीरिया बना दिया.


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