डेनमार्क के डेयरी किसानों को पृथ्वी को गर्म करने वाले उत्सर्जन के लिए प्रति गाय 672 क्रोन (96 USD/8,016.23 INR) का सालाना टेक्स देना पड़ेगा. डेनमार्क पशुधन पर कार्बन उत्सर्जन टैक्स (Carbon Emissions Tax) लगाने वाल पहला देश बन गया है.


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सरकार 2030 से गायों, भेड़ों और सूअरों द्वारा उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों पर टैक्स लगाएगी. बता दें डेनमार्क एक प्रमुख डेयरी और पोर्क निर्यातक है. कृषि देश के उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत है.


इंडिपेंडेंट के मुताबिक टेक्टेशन मिनिस्टर जेप्पे ब्रुस ने कहा कि कार्बन टैक्स लगाने का मकसद 2030 तक डेनमार्क के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 1990 के स्तर से 70 फीसदी तक कम करना है.


सरकार के फैसले से कुछ किसान नाराज
सीएनएन के अनुसार डेनमार्क की डेयरी इंडस्ट्री ने व्यापक रूप से समझौते और इसके लक्ष्यों का स्वागत किया है, लेकिन इससे कुछ किसान इससे नाराज भी हैं.


डेनमार्क सरकार द्वारा यह घोषणा ऐसे समय में की गई है जब कुछ महीने पहले ही किसानों ने यूरोप भर में विरोध प्रदर्शन किया था. प्रदर्शन कर रहे है किसानों ने ट्रैक्टरों से सड़कें जाम कर दी थीं.


किसानों ने एनवायरनमेंट रेगुलेशन और अत्यधिक लालफीताशाही के बारे में शिकायतों की एक लंबी लिस्ट को लेकर यूरोपीय संसद का घेराव किया था.


फूड सिस्टम का जलवायु संकट में बड़ा योगदान
ग्लोबल फूड सिस्टम जलवायु संकट में बहुत बड़ा योगदान देता है. यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग एक तिहाई उत्पादन करता है.


संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, पशुधन फार्मिंग 2015 में वैश्विक उत्सर्जन का लगभग 12% थी.


इस प्रदूषण का एक हिस्सा मीथेन से आता है, जो गायों और कुछ अन्य जानवरों की डकार और गोबर के माध्यम से उत्पादित एक शक्तिशाली प्लानेट-वार्मिंग गैस है.


कैसे तय होगा टैक्स?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कार्बन टैक्स के इस साल के अंत में संसद द्वारा अनुमोदित किए जाने की उम्मीद है. टैक्स के तहत देने वाली रकम को 2030 से लागू किया जाएगा और 2035 में फिर इसे बढ़ाया जाएगा. इसमें 60% टैक्स छूट भी लागू होगी.


पहले दो वर्षों में टैक्स से होने वाली इनकम का इस्तेमाल कृषि इंडस्ट्री के हरित परिवर्तन का सपोर्ट करने के लिए किया जाएगा.


एक गाय के लिए देना होगा इतना टैक्स
यह टैक्स 2030 से पशुधन से प्रति टन (1.1 टन) CO2-समतुल्य उत्सर्जन के लिए 300 क्रोन ($43) होगा. जो 2035 में बढ़कर 750 क्रोन ($107) हो जाएगा.


60% कर छूट लागू होगी, जिसका अर्थ है कि किसानों को 2030 से प्रति वर्ष पशुधन उत्सर्जन के प्रति टन 120 क्रोन ($17) का टैक्स देना होगा, जो 2035 में बढ़कर 300 क्रोन ($43) हो जाएगा.


डेनमार्क के एक ग्रीन थिंक टैंक कॉन्सिटो के अनुसार, औसतन, डेनिश डेयरी गायें, जो मवेशियों की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं, प्रति वर्ष 5.6 टन CO2-समतुल्य उत्सर्जन करती हैं.


टैक्स छूट लागू होने के बाद 120 क्रोन की दर के हिसाब से प्रति गाय 672 क्रोन या $96 (8,016.23 INR) का टैक्स लगेगा. यह टैक्स 2035 में टैक्स छूट के साथ प्रति गाय 1,680 क्रोन (241 डॉलर) हो जाएगा.


टैक्स को लेकर अलग-अलग राय
सीएनएन के मुताबिक कॉन्सिटो के मुख्य अर्थशास्त्री टॉर्स्टन हसफोर्थ ने बताया, 'टैक्स का मकसद उत्सर्जन कम करने के लिए समाधान तलाशने के लिए प्रेरित करना है. उदाहरण के लिए, किसान इस्तेमाल किए जाने वाले चारे में बदलाव कर सकते हैं.'


हालरांकि डेनिश किसानों के ग्रुप बेरेडिगट लैंडब्रग ने कहा कि ये फैसला एक 'डरावने प्रयोग' के बराबर हैं. ग्रुप के चेयरमैन पीटर कीर ने एक बयान में कहा, 'हमारा मानना ​​है कि यह समझौता पूरी तरह से नौकरशाही है. हम मानते हैं कि जलवायु संकट है... लेकिन हमें नहीं लगता कि यह समझौता समस्याओं का समाधान करेगा, क्योंकि यह कृषि के हरित निवेश के पहिये में रोड़ा अटकाएगा.’


यूरोप के सबसे बड़े डेयरी ग्रुप, अरला फूड्स के सीईओ पेडर टुबॉर्ग ने कहा कि समझौता 'सकारात्मक' है, लेकिन जो किसान 'वास्तव में उत्सर्जन को कम करने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं' उन पर टैक्स नहीं लगाया जाना चाहिए.


टुबॉर्ग ने कहा, 'यह आवश्यक है कि (कार्बन) टैक्स के लिए कर आधार पूरी तरह से उन उत्सर्जनों पर आधारित हो, जिन्हें खत्म करने के साधन मौजूद हैं.'