Gulf Stream Current: बिन मौसम बारिश, बिन मौसम गर्मी या बिन मौसम ठंड का सामना दुनिया के कई देश कर रहे हैं..इन सबके बीच अटलांटिक महासागर में हो रही हलचल से मौसम विभाग के जानकार हैरान हैं. हम सब अक्सर ना सिर्फ सुन बल्कि मौसमी बदलावों का गवाह भी बन रहे हैं, अब यहां सवाल यह कि आखिर अटलांटिक में क्या हो रहा है..दरअसल गल्फ स्ट्रीम के बारे में खबर है कि 2025 तक उसके सर्कुलेशन सिस्टम में बदलाव आ सकता है..इसका अर्थ यह है कि समंदर का अपना इकोसिस्टम बदलेगा और उसका असर वैश्विक स्तर पर पड़ेगा. गल्फ स्ट्रीम को अटलांटिक ओवरटर्निंग मेरिडोनियल सर्कुलेशन(Amoc) भी कहा जाता है.जानकार बताते हैं कि करीब 1600 साल पहले ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से एमॉक कमजोर पड़ा था. गल्फ स्ट्रीम के पैटर्न में 2021 में ही बदलाव देखा गया था. नए विश्लेषण के मुताबिक 2025 से 2095 के बीच इसके वजूद पर खतरा आएगा.


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क्या है एमॉक
अटलांटिक महासागर में इक्वेटर से ध्रुवों की तरफ गर्म धारा बहती है, जो ठंडी होकर नीचे बैठती है. इसकी वजह से अटलांटिक में करेंट का निर्माण होता है. लेकिन ग्रीनलैंड की बर्फ के पिघलने की वजह से गल्फ स्ट्रीम के सर्कुलेशन पैटर्न पर असर पड़ रहा है. यदि यह सिलसिला यूं ही चलता रहा तो वैश्विक स्तर पर बारिश के पैटर्न पर असर पड़ेगा. इससे यूरोप में अधिक तूफान आएंगे और तापमान ठंडा होगा, उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट पर समुद्र का स्तर बढ़ेगा और अमेज़ॅन वर्षावन और अंटार्कटिक बर्फ की चादरें और खतरे में पड़ जाएंगी.


असर के बारे में जानकारी


इसकी वजह से भारत भी प्रभावित होगा. एक दफा बारिश के पैटर्न में बदलाव का मतलब यह है कि खेती-किसानी प्रभावित होगी. यदि ऐसा होता है तो उद्योग धंधों पर बुरा असर पड़ेगा. लोगों के सामने खाने पीने की दिक्कत होगी. भूखमरी का भी सामना करना पड़ेगा. 115,000 से 12,000 साल पहले के हिमयुग चक्रों के दौरान अमोक ऐतिहासिक रूप से ढह गया और फिर से शुरू हो गया. आज, यह सबसे चिंताजनक जलवायु परिवर्तन बिंदुओं में से एक बना हुआ है क्योंकि वैश्विक तापमान में वृद्धि जारी है.हाल के शोध से पता चलता है कि अब तक अनुभव किए गए 1.1 डिग्री सेल्सियस वैश्विक तापमान के कारण पांच खतरनाक टिपिंग बिंदु पहले ही पार हो चुके हैं. नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित अध्ययन में समय के साथ अमोक ताकत में बदलाव के प्रॉक्सी के रूप में 1870 से समुद्री सतह के तापमान डेटा का उपयोग किया गया. शोधकर्ताओं ने इस डेटा को एक विशिष्ट प्रकार के टिपिंग बिंदु तक पहुंचने वाले सिस्टम के पथ पर मैप किया, जिसे "सैडल-नोड द्विभाजन" के रूप में जाना जाता है. विश्लेषण ने डेटा और टिपिंग बिंदु पथ के बीच एक करीबी फिट दिखाया जिससे टिपिंग बिंदु के संभावित समय का अनुमान लगाने के लिए एक्सट्रपलेशन की अनुमति मिली.