2014 के बाद भारत-अमेरिका के संबंधों बड़ा बदलाव आया. जो अमेरिका, भारत को दुश्मन के तौर पर देखता था वहीं अमेरिका अब कदम से कदम मिला कर आगे बढ़ रहा है. लेकिन सत्तर के दशक की शुरुआत में बात ऐसी नहीं थी और उसके पीछे एक शख्स हेनरी किसिंजर को जिम्मेदार माना जाता था. उस दौरान अमेरिका-चीन संबंधों को आकार देने में अहम भूमिका निभाने वाले में  किसिंजर का नाम खास था. सवाल यह है कि वो चर्चा में क्यों है, दरअसल अब वो इस दुनिया में नहीं हैं. साल 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार किसिंजर भारत के साथ मजबूत संबंधों की वकालत कर रहे थे.


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पीएम मोदी के प्रशंसक बन गए थे किसिंजर


कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि वह पिछले कुछ साल में प्रधानमंत्री मोदी के बड़े प्रशंसक बन गए थे. जब मोदी इस साल जून में आधिकारिक राजकीय यात्रा पर अमेरिका पहुंचे थे तो किसिंजर अच्छी सेहत नहीं होने के बावजूद उप राष्ट्रपति कमला हैरिस और विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की संयुक्त मेजबानी में विदेश विभाग में आयोजित समारोह में मोदी का भाषण सुनने के लिए वाशिंगटन तक आए थे. किसिंजर को तब विदेश विभाग के फॉगी बॉटम मुख्यालय में सातवीं मंजिल पर स्थित ऐतिहासिक बेंजामिन फ्रेंकलिन रूम तक व्हीलचेयर पर लाया गया था. भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने लिफ्ट में उनका अभिवादन किया. दोपहर के भोज पर आयोजित इस कार्यक्रम में बुजुर्ग अमेरिकी राजनेता ने प्रधानमंत्री मोदी के भाषण को पूरे धैर्य के साथ सुना और उनसे बातचीत भी की. 


अमेरिका की सुरक्षा नीति पर असर

अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति पर किसिंजर का अत्यधिक प्रभाव माना जाता है. उन्होंने जून 2018 में ‘यूएस इंडिया स्ट्रेटेजिक एंड पार्टनरशिप फोरम के पहले स्थापना दिवस के मौके पर संस्थान से जुड़े जॉन चैंबर्स के साथ उपस्थित होकर भारत को लेकर अपने रुख को सार्वजनिक किया. उनकी बातचीत में मीडिया आमंत्रित नहीं था, लेकिन वहां उपस्थित अन्य लोग याद करते हुए बताते हैं कि किस तरह किसिंजर ने पुरजोर तरीके से भारत-अमेरिका संबंधों की वकालत की थी. किसिंजर ने जून 2018 में यूएसआईएसपीएफ के पहले वार्षिक नेतृत्व सम्मेलन में अपनी दुर्लभ उपस्थिति के दौरान कहा था कि जब मैं भारत के बारे में सोचता हूं तो मैं उनकी रणनीति की प्रशंसा करता हूं. भारत के साथ उनके संबंध 1970 के दशक में तनावपूर्ण हो गए थे जब वह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और विदेश मंत्री के रूप में तत्कालीन अमेरिकी प्रशासन में थे. लेकिन चीन की ओर रुख करने से पहले उनकी पहली प्राथमिकता भारत को लेकर थी. उन्हीं के परामर्श पर यूएस चैंबर्स ऑफ कॉमर्स ने 70 के दशक में अमेरिका भारत व्यापार परिषद की स्थापना की थी. 


इंदिरा के साथ खट्टे अनुभव

किसिंजर के 1972 के आसपास के एक कूटनीतिक संवाद के अभिलेखों से पता चलता है कि उन्होंने भारत और जापान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने का समर्थन किया था. इतिहासकार बताते हैं कि किसिंजर और तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते नहीं रख पाए थे और उनका ध्यान चीन की ओर था. कई जानकार कहते हैं कि इसके बाद का बाकी सब इतिहास है ही. शीत युद्ध के समापन के बाद और पिछले 10 दशक में भारत के मजबूती से उभरने के साथ भारत को लेकर किसिंजर के विचार बदल गए थे और बाद की सरकारों के संदर्भ में वह भारत के साथ मजबूत संबंधों की वकालत करते रहे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान उनसे मुलाकात की थी. 


किसिंजर ने करीब चार साल पहले यूएसआईएसपीएफ के एक और कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि बांग्लादेश संकट ने दोनों देशों को ‘टकराव की कगार’ पर पहुंचा दिया था. किसिंजर ने इसके बाद नयी दिल्ली में कहा था, भारत एक ऐतिहासिक विकासक्रम की शुरुआत में था और संबंधित सारी समस्याएं भारत के लिए समान महत्व की नहीं थीं. भारत अपने खुद के विकास क्रम में और तटस्थता की नीति में पूरी तरह शामिल था. अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा अब गोपनीयता के दायरे से बाहर किए जा चुके कुछ दस्तावेजों के अनुसार 16 दिसंबर, 1971 को बांग्लादेश के अलग देश बनने के बाद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को किसिंजर ने बताया था कि उन्होंने ‘पश्चिम पाकिस्तान को बचा लिया है. 


(एजेंसी इनपुट- भाषा)