हॉन्ग कॉन्ग: दुनिया में ऐसा कोई काम नहीं है, जिसे महिलाएं न कर सकती हों. अब हॉन्ग कॉन्ग (Hong Kong) की एक महिला टीचर ने ऐसा कारनामा कर दिखाया है. जिसके बारे में जानकर हर महिला गर्व करेगी. 


Tsang Yin-hung ने किया कारनामा


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जानकारी के मुताबिक हॉन्ग कॉन्ग (Hong Kong) की रहने वाले Tsang Yin-hung ने केवल 25 घंटे 50 मिनट में एवरेस्ट की चोटी (Mount Everest) को फतह करने का अनूठा कारनामा करके दिखाया है. इतनी तेजी के साथ दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर चढ़ने वाली वे दुनिया की पहली महिला हैं.



जानकारी के मुताबिक 44 साल की Tsang Yin-hung ने अपने इस सपने को पूरा करने के लिए 4 साल तक पर्वतारोहण की गहन ट्रेनिंग ली. उसके बाद वे एवरेस्ट की चोटी (Mount Everest) को फतह करने के लिए निकली. आखिरकार 23 मई को उन्होंने करीब 26 घंटे में दुनिया की इस सबसे ऊंची चोटी को  छू लिया.


अचीवमेंट से बेहद खुश- Tsang Yin-hung


Tsang Yin-hung ने अपना अनुभव बताते हुए कहा, 'इस अचीवमेंट के बाद मैं बहुत खुश और रिलैक्स हूं. मैंने करीब 4 साल पहले यह टारगेट तय किया था, जिसे मैंने हासिल कर लिया है. मैं हमेशा अपने स्टूडेंट्स और दोस्तों को कहती थी कि अगर आपके इरादे ऊंचे हों और उन्हें पूरा करने की इच्छाशक्ति हो तो आप कुछ भी हासिल कर सकते हैं. मैंने इस बात को साबित कर दिखाया है.'


अधिकारियों के मुताबिक Tsang Yin-hung ने इस उपलब्धि के लिए कड़ी मेहनत की. उन्होंने मई में अपना अभियान शुरू किया था और वे पहले ही प्रयास में 8,755 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच गई. इसी बीच ऊपर मौसम अचानक काफी बिगड़ गया, जिसके चलते उन्हें बाकी साथियों के साथी नीचे उतरने को मजबूर होना पड़ा.



बना दिया पर्वतारोहण का नया वर्ल्ड रिकॉर्ड


माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) की ऊंचाई 8848 मीटर है और वे 8,755 मीटर तक पहुंच चुकी थी. लक्ष्य के इतना करीब पहुंच चूक जाने से उन्हें थोड़ी निराशा तो हुई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने वहीं रहकर कुछ दिन बाद दोबारा से एवरेस्ट पर चढ़ने का फैसला किया. आखिरकार 23 मई को उन्होंने एक वर्ल्ड रिकॉर्ड के साथ एवरेस्ट को फतह कर ही लिया. 


11 साल की उम्र में ले रही थीं ट्रेनिंग


Tsang Yin-hung बताती हैं कि वे जब 11 साल की थी, तभी से उन्होंने पर्वतारोहण की ट्रेनिंग शुरू कर दी थी. उन्होंने इस ट्रेनिंग को एक खेल और मनोरंजन के रूप में लिया. वे बताती हैं कि वे पहाड़ों पर दौड़ने जाती थीं. वहां पर बॉस्केटबॉल और दूसरे खेल खेलती थीं. इसके चलते उनके मन में पहाड़ों का डर दूर होता चला गया. 


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